साहित्य

कर्तव्यहीन जीवन व्यर्थ है : लक्मी सिन्हा का लेख पढ़िये!

Laxmi Sinha
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कर्तव्यहीन जीवन व्यर्थ है। कर्तव्य से अभिप्राय
क्रिया, धर्म-कर्म तथा भिन्न प्रकार के कर्मों से है।
कर्तव्य यदि कर्म बीज है तो अधिकार कर्मों के
फल का परिणाम है। पहले कर्तव्यों का जन्म होता
है और फिर अधिकारों की बात आती है। कर्तव्य
की भावना जीवन का यज्ञ है। माता-पिता, परिवार,
समाज तथा देश के प्रति मनुष्य के कर्तव्यों का
ज्ञान होना अति आवश्यक है। स्वार्थी मनुष्य जीवन
के उपदेश को कभी ठीक से समझ ही नहीं पाता।
वह हर चीज को लाभ-हानि के पलड़े में रखकर
आकलन करता है। अर्थात कर्तव्य से पहले ही वह
आकांक्षा करने लगता है, जो उचित नहीं है।

वस्तुत: नि:स्वार्थ भाव से किया गया प्रत्येक
कर्म जीवन की सुखद तथा शुभ यात्रा का प्रतीक
है। निर्मल मन और श्रेष्ठ कर्मों के बिना कर्तव्यबोध
कभी जागृत नहीं होता। ‘कर्तव्य’ सत्य और
सच्चाई से परिपूर्ण होता है। विकारों का जन्म मन
की अशांति तथा नकारात्मक सोच और धृणात्मक
विचारों के कारण होता है। बिना कर्मयोग और
कर्तव्य योग के उद्गार तथा जागरूकता असंभव
है। हृदय में कर्तव्य का बीज संसार में वटवृक्ष की
भांति शांति तथा समृद्धि प्रदान करता है।जो व्यक्ति
कर्तव्य की भावना और श्रेष्ठ कर्मों द्वारा स्वयं को
दूसरों के प्रति समर्पित करता है, वह सहिष्णु होने
के साथ ही अपेक्षित सफलता भी अर्जित करता है।
कर्मयोग का सार तत्व कर्तव्य है। जीव का प्रथम
कर्तव्य कर्म करना है, न कि परिणाम की चाह।
कर्तव्य ही कर्मयोग की चेतना है। हम अक्सर
अधिकारों की मांग करते हैं और अपने कर्तव्यों के
प्रति बेपरवाह और अनभिज्ञ बने रहते हैं। जबकि
‘कर्तव्य और अधिकार’किसी बैंक खाते के समान
है।कर्तव्य उसमें जमा राशि है तो अधिकार उस पर
मिलने वाला ब्याज है, जो बिना राशि के नहीं मिल
सकता। सत्य से प्रेरित कर्तव्य कर्म कहलाता है।

#Laxmi_sinha
प्रदेश संगठन सचिव सह प्रदेश मीडिया प्रभारी
महिला प्रकोष्ठ राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (बिहार)