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किसी दिन अदालत की इमारत पर भी न चल जाए बुल्डोज़र : धूल में गुम होता भारतीय संविधान : रिपोर्ट

 

कहीं किसी दिन किसी अदालत की इमारत पर भी न चल जाए बुल्डोज़र! घरों की गिरती इमारतों से उड़ती धूल में गुम होता भारतीय संविधान!
उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद कि जिसका नाम अब प्रयागराज रखा जा चुका है, वहां एक कथित मुस्लिम नेता के दो मंज़िला घर को गिरा दिया है। उनपर पैग़्मबरे इस्लाम (स) के ख़िलाफ़ बीजेपी नेताओं द्वारा दिए गए बयानों के विरोध में प्रदर्शन आयोजित करने का आरोप है। क़ानून के जानकारों ने योगी सरकार द्वारा लगातार बिल्डोज़र से की जाने वाली कार्यवाहियों को क़ानून का स्पष्ट उल्लंघन बताया है।

वैसे एक ओर भारत में जहां आए दिन मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर धार्मिक भावनाओं को भड़काने वालों के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ सरकारें लगातार भारत के संविधान और क़ानून के इतर अपने स्तर पर अपनी मर्ज़ी से लागू किए गाए क़ानून के हिसाब से कार्यवाही कर रही हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर बीजेपी नेताओं द्वारा विवादित बयान मामले के बाद भारत के कई राज्यों के विभिन्न शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में कथित तौर पर पुलिस द्वारा प्रदर्शनकारियों के साथ की गई बर्बरतापूर्वक कार्यवाही से हिंसा भड़क उठी। उत्तर प्रदेश के कई शहरों में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए। सहारनपुर और प्रयागराज में पिछले हफ़्ते बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा और पत्थरबाज़ी की घटना हुई। प्रयागराज प्रशासन ने जावेद मोहम्मद के घर को बुल्डोज़र से ढहा दिया। जावेद को 10 जून को हुई हिंसा के लिए ज़िम्मेदार बताया जा रहा है। आरोप है कि उन्होंने बिना नक़्शा पास कराए बिल्डिंग बनाई थी। वैसे यह तो साफ़ है कि घर पर बुल्डोज़र क्यों चला है। मीडिया रिपोर्टों की मानें तो यूपी पुलिस का आरोप है कि शुक्रवार को नमाज़ के बाद प्रयागराज में जावेद मोहम्मद ने धरना आयोजित किया था। जबकि इस बात के पुलिस के पास कोई सबूत नहीं हैं। लेकिन जावेद मोहम्मद की य़एक ग़लती ज़रूर है वह है मशहूर छात्र नेता आफ़रीन फ़ातिमा का पिता होना। बता दें कि आफ़रीन फ़ातिमा नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे थीं। पुलिस का कहना है कि हिंसक प्रदर्शनों में उनकी भूमिका की भी जांच की जा रही है।


आफ़रीन फ़ातेमा अपने पिता मोहम्मद जावेद के साथ
इस बीच पुलिस का दावा है कि आफ़रीन फ़ातेमा का घर तोड़े जाने से पहले उनके पिता मोहम्मद जावेद को नोटिस जारी किया गया था कि उनका घर अवैध रूप से बनाया गया है। नोटिस कथित तौर पर एक दिन पहले ही जारी किया गया था। हालांकि, जावेद के वकीलों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में पुलिस द्वारा लगाए गए आरोपों से इनकार किया है। उनका कहना है कि सरकार ने इस मामले में नियमों का पालन नहीं किया और घर तोड़ा जाना अवैध था। दूसरी ओर कानपुर में 3 जून को हुई हिंसा के बाद प्रशासन ने मुख्य आरोपी के क़रीबी के अवैध निर्माण को ढहाया था। इस बीच कई राजनीतिक नेताओं और बुद्धिजीवियों ने एक बार फिर उत्तर प्रदेश सरकार के इस क़दम की तीखी आलोचना करते हुए इसे बिना किसी अदालती कार्यवाही के असंवैधानिक बताया है। क़ानून के जानकारों का मानना है कि बिना किसी सबूत के आरोप के जुर्म के साबित होने से पहले जिस तरह से उत्तर प्रदेश सरकार कार्यवाही कर रही है वह पूरी तरह असंवैधानिक है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर ने अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक साक्षात्कार में इसे पूरी तरह से अवैध क़रार दिया और कहा कि यह तकनीकी मुद्दा नहीं बल्कि क़ानून के शासन का सवाल है। उन्होंने कहा, “अगर आप एक पल के लिए भी मान लें कि निर्माण अवैध था और लाखों भारतीय ऐसे अवैध ढांचे में रहते हैं, तो रविवार को उस समय एक घर को ढहाना जायज़ नहीं है। जब उस घर में रहने वाले पुलिस हिरासत में हों।”


बाएं उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी की प्रमुख मायावती, दाएं सांसद एवं एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी
वहीं एआईएमआईएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा, “यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इलाहाबाद हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस बन गए हैं।” उन्होंने सवाल किया कि क्या वे किसी को भी दोषी ठहरा देंगे और उनका घर ढहा देंगे? इस बीच उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीएसपी की प्रमुख ने ट्वीट कर कहा, “यूपी सरकार एक समुदाय विशेष को टारगेट करके बुल्डोज़र विध्वंस व अन्य द्वेषपूर्ण आक्रामक कार्यवाही कर विरोध को कुचलने और भय व आतंक का जो माहौल बना रही है यह अनुचित व अन्यायपूर्ण घरों को ध्वस्त करके पूरे परिवार को टारगेट करने की दोषपूर्ण कार्यवाही का कोर्ट ज़रूर संज्ञान ले।” उन्होंने आगे लिखा, “इस समस्या की मूल जड़ नूपुर शर्मा व नवीन जिन्दल हैं जिनके कारण देश का मान-सम्मान प्रभावित हुआ व हिंसा भड़की, उनके विरुद्ध कार्यवाही नहीं करके सरकार द्वारा क़ानून के राज का उपहास क्यों? दोनों आरोपियों को अभी तक जेल नहीं भेजना घोर पक्षपात व दुर्भाग्यपूर्ण, तत्काल गिरफ़्तारी ज़रूरी।” वहीं सोशल मीडिया पर लोग बुल्डोज़र कार्यवाही पर तरह-तरह के सवाल पूछ रहे हैं। यूज़र्स का कहना है कि अगर देश की किसी अदालत ने ग़लती से भी योगी के ख़िलाफ़ कोई फ़ैसला सुना दिया तो यह संभव है कि यूपी के मुख्यमंत्री अदालत की इमारत पर भी बुल्डोज़र चलवा दें।

सोर्स : पारस टुडे हिंदी

लेख, रिपोर्ट में व्यक्त विचार तीसरी जंग हिंदी के नहीं हैं