साहित्य

कुंडी डाली, ताला मारा, सीढ़ी लगा उतरने,,,,ख़ाली पेट चला रमधनिया ईंटा गारा करने!

चित्र गुप्त
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कुंडी डाली
ताला मारा
सीढ़ी लगा उतरने
खाली पेट चला रमधनिया ईंटा गारा करने
संध्या भोजन में छोड़ा था सूखी रोटी एक
बड़ी देर से इधर उधर बस उसे रहा था देख
टाइम देखा घड़ी बजाने वाली थी जब सात
थी मजदूरों के मंडी में हलचल की शुरुआत
देर हुई तो फिर मजदूरों को पूछेगा कौन
सुरती धरी हथेली पर फिर निकल पड़ा वह मौन
गमछा बांधा
तहमद डाली
बूसट लगा पहनने
खाली पेट चला रामधनिया ईंटा गारा करने
घर से आया फोन पूछती रमरतिया कुछ खाया?
कह देता है झूठ उसे था तहरी आज बनाया।
साथी सभी गए छुट्टी वह आज अकेला सोया
सुबह हो गई मगर रह गया वह सोया का सोया
जाते ही जब काम मिल गया, गया सभी कुछ भूल
पानी पीकर रहा मिटाता अपने हिय का शूल
बालू छाना
गिट्टी डाली
ईंटें लगा पकड़ने
खाली पेट चला रमधनिया ईटा गारा करने
ज्यादा पानी पीने से फिर लगी खूब लघुशंका
जिसे देखकर धू धू जलने लगी सभी की लंका
मालिक बोला कामचोर है, संगी हंसे ठठाए
ठेकेदार मिस्त्री सबने खूब मजाक उड़ाए
कोई बोला कल से भैया साथ न मेरे आना
कोई बैठा जोड़ रहा था हरजे का हर्जाना
सूखी काया
खाली आंतें
मिलकर लगीं सिकुड़ने
खाली पेट चला रमधनिया ईंटा गारा करने।
#चित्रगुप्त