धर्म

#कुरैश_की_मुख़ालफ़त : #SiratunNabiSeries Part-7

मोहम्मद सलीम
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#कुरैश_की_मुखालफ़त
#SiratunNabiSeries Post-7
हुजूर सल्ल. ने सफ़ा पहाड़ी पर तशरीफ़ ले जा कर मक्का के तमाम कबीलों को बुला कर अल्लाह का पैग़ाम पहुंचाया और साफ़-साफ़ कह दिया कि #अल्लाह_का_अजाब_करीब_आने_लगा_है,
एक अल्लाह पर ईमान ले आओ, उसपर, जो सब का पैदा करने वाला है, जो पत्थर के अन्दर रहने वाले कीडे को भी रोजी देता है, जो आग में और समंदर में रहने वाले जानवरों को भी जिंदा रख सकता है। इबादत के लायक वही है जिस ने सब कुछ बनाया है।
बुतों की इबादत छोड़ दो, उन बुतों को, जिन को नादानी से तुम और तुम्हारे बाप-दादा पूजते हैं। ये बुत न खुदा है, न खुदा के दरबार में इनकी पहुंच है। इन्हें तुम ने अपने हाथों से बनाया है। जिन्हें तुम खुद बनाओ, वह तुम्हारे खुदा कैसे हो सकते हैं ?
फिर ये बातें कब कहीं ? उस वक्त, जब कि तमाम मक्का और सारा अरब और अरब का कोना-कोना बुतपरस्ती की लानत में गिरफ्तार था।
सदियों से लोग बुतों को खुदा मान कर परस्तिश कर रहे थे। कभी किसी ने बुतपरस्ती के खिलाफ आवाज न उठायी थी, इस लिए कोई भी आदमी बुतों के खिलाफ एक लफ्ज़ भी सुनने को तैयार न था। बुतपरस्ती के खिलाफ बोलने वाले की जिंदगी भी खतरे में थी।
मगर आप सल्ल. ने किसी किस्म के खतरे की परवाह न की, इस लिए कि आप को अल्लाह पर भरोसा था। इसी भरोसे ने आप का हौसला बढ़ा दिया था। यह हौसला वो था जब आप #सफ़ा_की_पहाड़ी पर चढ़ कर इस्लाम की दावत दे रहे थे।
अगरचे आप उस वक्त कामियाब न हुए, लेकिन आप को पैग्राम पहुंचाने की खुशी भी थी।
अब मुसलमानों की तायदाद बढ़ कर चालीस हो गयी थी। इस लिए आप और आप के साथी सभी इस्लाम की तब्लीग में लग गये।

तब्लीग के लिए खाने की दावत

एक दिन आप ने हजरत अली (र.अ) से कहा कि दावत का सामान करो और तमाम करीबी रिश्तेदारों को बुला लाओ। हजरत अली ने दावत का सामान किया और तमाम रिश्तेदारों को बुला लाये। चुनांचे थोड़ी देर में लोग आना शुरू हो गये। अब्बास, हमजा, अबू लहब, अबू जहल, अबू तालिब, वलीद और बहुत से लोग आये।

सब के सामने खाना चुना गया। सब ने इत्मीनान से खाया। जब खाना खा चुके, तो हुजूर सल्ल० खड़े हुए और आप ने फ़रमाया – मेरे बुजुर्गों! जो कुछ मैं कहूं, उसे ठंडे दिल से सुनो और उस पर गौर करो। यह ख्याल न करो कि मेरी ये बातें तुम्हारे मजहब के खिलाफ पड़ रही हैं या नहीं। देखो, तुम बुतों को पूजते हो और बुतों को इंसान ने बनाया है। क्या इंसान की बनायी हुई चीज भी इंसान का खुदा हो सकती है? फिर बुत भी बहुत है? अगर दुनिया में इतने खुदा हो जाएं, तो दुनिया का निजाम कायम नहीं रह सकता। यह ख्याल भी सही नहीं है कि पत्थर के बुत खुदा के दरबार में सिफारिश करेंगे। न ये बुत बोल सकते हैं, न सुन सकते हैं, सिफारिश आखिर कैसे करेंगे? मेरा ख्याल है, एक अल्लाह ही हम सब का माबूद है, वही आसमानों और जमीन का रब है, वही जिंदगी और मौत देता है। लोगो ! तुम बहुत दिनों तक गुमराही के गढ़े में पड़े रहें, बहुत सो चुके, अब उठो, गुमराही से निकलो और एक खुदा की इबादत करो।

तमाम लोग पूरे ध्यान के साथ हुजूर सल्ल. की बातें सुन रहे थे। अबू लहब पेच व ताब खा रहा था कि कहीं लोग हुजूर सल्ल. की बातों से मुतास्सिर हो कर अपने बाप-दादा का मजहब छोड़ कर इस्लाम की गोद में न चले जाएं। इस लिए उस ने टोका-टाकी शुरू कर दी।

वह लोगों के ध्यान को हुजूर सल्ल० की बातों से मोड़ना चाहता था।

चुनांचे ऐसा ही हुआ, लोगों की तवज्जोह हट गयी। फिर अबू लहब उठ खड़ा हुआ। लोग भी खड़े हो गये और एक-एक, दो-दो करके जाने लगे। सब से आखिर में अबू लहब गया। अगरचे इस दावत से भी हुजूर सल्ल० कोई फायदा न उठा सके, लेकिन हुजूर सल्ल० ने कोई ख्याल न किया और कुछ दिनों के बाद फिर दावत की गयी।

हुजूर सल्ल० की दावत में फिर सब लोग जमा हुए। फिर हुजूर सल्ल० ने वही तकरीर फ़रमायी। इस बार अबू लहब को गड़बड़ करने की हिम्मत न हुई, खामोश सुनता रहा। दूसरे लोग भी खामोशी से सुनते रहे।

आखिर में आप सल्ल० ने पूछा, कौन है मेरे इस नेक काम में मेरा मददगार? सब चुप रहे, कोई भी न बोला। हजरत अली खड़े हुए। आप ने फ़रमाया – हुजूर सल्ल० ! अगरचे मैं सब से छोटा हूं, कमजोर हूं, मगर मैं आप का साथ दूंगा, अपनी जिंदगी की आखिरी सांस तक साथ दूंगा।

अबू लहब हजरत अली की बातें सुन कर हंस पड़ा। उस ने मजाक उड़ाते हुए कहा, (मुहम्मद ! ) अली तुम्हारा साथ देगा, अब तुझे किस बात का डर?

हुजूर सल्ल० ने कहा, तुम मजाक उड़ाते हो, तो ठीक है, कुछ दिन और उड़ा लो, फिर खुद ही रोओगे-पछताओगे।

(आप ने जोश में आकर कहा ) सुनो और कान खोल कर सुनो, एक न एक दिन पूरा अरब बुतों की पूजा छोड़ कर रहेगा और इस्लाम का सूरज चमक उठेगा।

अबू लहब हंसता हुआ उठा और चला गया। उस के साथ ही तमाम लोग उठे और चले गये। आज की दावत का भी कोई मुफीद नतीजा न निकला।

अब आप सल्ल० ने यह तरीका बना लिया कि जब नमाज का वक्त होता, खाना काबा में जाते और नमाज पढ़ने के बाद बुतपरस्ती के खिलाफ जोर-शोर से वाज फ़रमाते। इस से काफिरों में गुस्सा फैल गया। हर बुतपरस्त आप का जानी दुश्मन हो गया।

तमाम कबीलों ने मिलकर एक मज्लिसे शूरा बुलायी और यह तजवीज पास की कि हजूर सल्ल० को और उन लोगों को जो मुसलमान हो गये, जितनी भी तकलीफें दी जा सकें, दो। चुनांचे हुजूर सल्ल० पर सब से पहले सख्तियों की शुरूआत हुई।