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कोई इसकी वजह प्रेम प्रसंग बता रहा तो कोई इन्हें पागल कह रहा है….ये दो क़िस्से पढ़िए…!

पहले ये दो किस्से पढ़िए…

रात 10 बजे का वक्त। परिवार के सभी लोग सो रहे थे। 40 साल की मीनू ने अपने 7 साल के बच्चे को गोद में उठाया और घर के बाहर कुएं में डाल दिया। फिर वह तेजी से अंदर आई और 9 साल की बेटी को गोद में उठाकर कुएं में डाल दिया। इसके बाद वह खुद भी कुएं में कूद गई। एक झटके में तीन जिंदगियां खत्म।

सुबह 11 बजे का वक्त। 30 साल की एक महिला खेत जाने के लिए घर से निकली। साथ में अपने दो छोटे-छोटे बच्चों को भी ले गई। शाम ढलने के बाद भी जब वो नहीं लौटी तो उसकी सास ने इधर-उधर ढूंढना शुरू किया। फिर वह पानी भरने के लिए कुएं के पास गई। जैसे ही कुएं में झांका, उसके होश उड़ गए। उसकी बहू और दोनों बच्चों की लाश उसमें पड़ी थी।

ये किस्से राजस्थान के बाड़मेर के हैं। यहां सुसाइड एक ट्रेंड बन गया है। एक दूसरे को देखकर महिलाएं जान देने लगी हैं। कोई इसकी वजह प्रेम प्रसंग बता रहा तो कोई इन्हें पागल कह रहा है, लेकिन कोई इन्हें समझाने वाला नहीं है। पिछले सात सालों में यहां 414 आत्महत्याएं हुई हैं। इनमें ज्यादातर महिलाएं हैं।

स्याह कहानियों की सीरीज ब्लैकबोर्ड में इन्हीं महिलाओं का हाल जानने मैं पहुंची दिल्ली से 850 किलोमीटर दूर बाड़मेर…

रेतीले टीले और उबड़-खाबड़ जमीन, चेहरे पर थपेड़ों की तरह लगती गरम हवा, छोटे-छोटे गांव और जगह-जगह एकांत में बने अकेले घर और घरों के बीच लंबा फासला। ये नजारा है पाकिस्तान बॉर्डर से चंद कदम दूर बसे मीठे का ताला गांव का। यहां हर घर के बाहर आपको टांके यानी कुएं दिख जाएंगे।

इन टांकों में बारिश का पानी इकट्ठा किया जाता है। जरूरत पड़ने पर टैंकर से पानी मंगवाकर भी इसमें डाला जाता है। ये टांके इस सूखे और रेतीले इलाके की लाइफलाइन हैं, लेकिन एक स्याह सच यह भी है कि इन्हीं टांकों के चलते आए दिन मौतें भी हो रही हैं।

गांव में बिजली की लाइन तो है, पर ज्यादातर समय लोगों को अंधेरे में ही रहना पड़ता है। तेल रिफाइनरी और गैस फील्ड के लिए मशहूर बाड़मेर में चमचमाते हाईवे देखकर एहसास होता है कि ये इलाका आगे बढ़ रहा है, लेकिन यहां लोगों से बात करके समझ आता है कि ये कितना पीछे रह गया है।

यहां ज्यादातर लोग अकेलेपन में जी रहे हैं। गांव में बच्चे भी खेलते हुए कम ही दिखाई देते हैं। वे घरों में ही रहते हैं। दोपहर के वक्त हर तरफ सन्नाटा पसरा रहता है। शाम ढलने पर इक्का-दुक्का लोग दिखते हैं।

गुजरात में मजदूरी करने वाले टीकम अपने बच्चों और मां के साथ रहते हैं। उनकी पत्नी मरूआ देवी अब इस दुनिया में नहीं हैं। एक साल पहले मरूआ देवी ने घर के बाहर बने टांके में कूदकर आत्महत्या कर ली थी।

इस टांके को दिखाते हुए चार बच्चों के पिता टीकम बताते हैं, ‘ये 15 फीट गहरा है। इसी में कूद कर पत्नी ने जान दी थी। उसके जाने के बाद बहुत अकेला हो गया हूं। बच्चों का ध्यान नहीं रख पाता। कभी-कभी ऐसा लगता है कि दूसरी शादी करनी होगी।’

टांके में अभी भी पानी भरा है और परिवार इससे ही पानी पीता है। टांके के भीतर झांकते हुए टीकम के चेहरे पर सन्नाटा पसर जाता है। उनकी आंखों में उस मनहूस दिन की यादें घूमने लगती हैं।

टीकम और मरूआ की शादी कम उम्र में हुई थी। वे बताते हैं- हमारे बीच कभी कोई तनाव नहीं रहा। छोटी-मोटी बातें होती थीं, सास से कहासुनी होने पर मरूआ कभी-कभी कह देती थी कि टांके में कूद जाऊंगी, लेकिन मैंने कभी ये सोचा नहीं था कि वह एक दिन सच में जान दे देगी।

टीकम अपनी घरेलू जरूरतें पूरी करने के लिए बकरियां पालते हैं। एक साल पहले मरूआ बकरियों के साथ सड़क पार कर रही थी, तभी एक बाइक सवार बकरी से टकरा गया। बकरी की मौके पर ही मौत हो गई और बाइक सवार ने दस दिन बाद अस्पताल में दम तोड़ दिया।

टीकम याद करते हैं, ‘इस घटना का उस पर इतना गहरा असर हुआ कि वो परेशान रहने लगी। मैंने उसका इलाज कराया और फिर कमाने के लिए गुजरात चला गया। एक दिन सुबह पत्नी ने मां से कहा कि मैं दूसरी तरफ खेत में जा रही हूं। वो उधर नहीं गई, पानी के टांके में कूद गई। मां 12 बजे पानी लेने गई, तो टांके में पड़ी दिखी।’

वे बताते हैं कि हादसे के बाद मेरी पत्नी को डर सताने लगा था कि कहीं पुलिस उसे पकड़ कर ना ले जाए। वो बिना बात के कहने लगती थी कि मैंने कुछ गलत नहीं किया है। इसी डर और सदमे में उसने जान दे दी।

हालांकि टीकम की मां बार-बार ये दावा करती हैं कि उनकी बहू ‘मेंटल’ थी, लेकिन साथ में वो ये भी जोड़ देती हैं कि थी बहुत अच्छी। ठेठ राजस्थानी में बोलते हुए वो कहती हैं कि इन बच्चों का अब क्या होगा। ये कहते-कहते उनका सूखा चेहरा आंसुओं से भीग जाता है।

फिर कुछ ठहरकर कहती हैं, ‘बेटे की दूसरी शादी करनी पड़ेगी, अकेले ये कैसे रहेगा, अभी इसकी उम्र ही क्या है।’

तीस साल के टीकम अपनी पत्नी की तस्वीर को देर तक देखते हैं, फिर गहरी सांस लेकर कहते हैं, ‘वो चली गई, मैं अकेला रह गया। अब जिंदगी को तो आगे बढ़ाना है।

इस इलाके में ऐसी कहानियां आम हैं। चौहटन थाने के प्रभारी भूटाराम कहते हैं, ‘हर साल 25 से 30 सुसाइड के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें एक तिहाई महिलाएं होती हैं। महिलाएं कई बार अपने बच्चों के साथ भी सुसाइड कर लेती हैं।’

भूटाराम ये भी मानते हैं कि कई बार ऐसे मामलों की सूचना लोग थाने को नहीं देते हैं और अंतिम संस्कार कर देते हैं। इसका मतलब है वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा है। ऐसे मामलों की जांच के बाद पता चलता है कि अकेलापन, सोशल मीडिया के जरिए प्रेम प्रसंग या छोटी-मोटी बात पर कहासुनी इसकी बड़ी वजह है।

यहां से कुछ ही दूरी पर बावड़ी कलां गांव की एक ढांढी में 78 साल के टीकाराम अकेले बैठे हैं। 4 साल पहले उनकी बहू ने चार बेटियों के साथ टांके में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। अब टांके को ढंक दिया गया है। इस पर रेत की परत चढ़ गई है, लेकिन ये परिवार उस हादसे के बाद से आगे नहीं बढ़ पाया है।

टीकाराम उस घटना पर बात नहीं करना चाहते हैं। ना ही उनका बेटा कुछ बोलना चाहता है। मुझे देखकर बेटा घर से बाहर चला जाता है।

बहुत पूछने पर टीकाराम बस इतना ही बताते हैं, ‘बेटे की दूसरी शादी करवाने की कोशिश की, लेकिन वो करता नहीं है। वो कहता है कि मेरा पूरा घर चला गया, मैं क्या करूंगा अब। उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, फिर भी वो अपने काम पर जा रहा है।’

टीकाराम समझ नहीं पाए कि उनकी 44 साल की बहू ने चार बेटियों के साथ आत्महत्या क्यों की। उस दिन को याद करते हुए वे कहते हैं, ‘घर पर बच्चियां और बहू थी। वो बच्चियों को लेकर टांके में कूद गई। एक पोती 11 साल की, एक 9, एक 7 और एक 5 साल की थी। मैंने पानी भरने के लिए टांके में झांका, तो उनकी लाशें दिखीं।

आत्महत्या को रोकने के लिए ज्यादातर लोगों ने टांकों को ढंक दिया है। कई लोगों ने लोहे के जंगले से टांकों को घेर दिया है। 2021 में जिला प्रशासन ने जागरूकता अभियान शुरू किया था। एक मुहिम के तहत टांकों को ढंकवा दिया और कई टांकों में नल भी लगवाए गए ताकि उन्हें खोलने की जरूरत ना पड़े।

फिर भी आत्महत्या की घटनाएं थम नहीं रहीं। आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं।

बावड़ी कलां के सरपंच प्रतिनिधि गुलाब सिंह कहते हैं कि गांव बॉर्डर के नजदीक है और इसकी आबादी पांच हजार के करीब है। बॉर्डर एरिया होने की वजह से गांव थोड़ा पिछड़ा है। यहां छोटी-छोटी बातों पर झगड़े होते हैं और महिलाएं सुसाइड कर लेती हैं। इसका बड़ा कारण प्रेम प्रसंग भी है।

हम लोगों के बीच जाते हैं और समझाते हैं कि परिवार की छोटी-मोटी बातों को बैठकर सुलझाया जाए, लेकिन ज्यादातर मामलों में लोग ना आस-पड़ोस में कुछ बताते हैं और ना ही घर के बुजुर्गों को इसकी जानकारी देते हैं।

बबीता माहेश्वरी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। पिछले ढाई साल से सुरक्षा सखी के रूप में काम कर रही हैं। उनका काम महिलाओं और लड़कियों में इस मुद्दे पर जागरूकता फैलाना है। बबीता इसी विषय पर काम कर रहे अनमोल जीवन अभियान से भी जुड़ीं थीं, हालांकि आत्महत्या रोकने के इस प्रयास को अक्टूबर 2022 में बंद कर दिया गया।

बबीता बताती हैं, ‘इस तरह के मामलों के पीछे बड़ी वजह अचानक आया गुस्सा है। ज्यादातर मामलों में ऐसा देखा गया है कि महिला को गुस्सा आया और वह टांके में कूद गई। अगर उस वक्त महिला को कोई मदद पहुंचाता, उसे समझाता, तो वह बच जाती।

वे लोक-लाज के चलते यह बात किसी से जाहिर नहीं कर पाती हैं। इसी दबाव के चलते वे सुसाइड का कदम उठा लेती हैं। इसके साथ ही सुसाइड के मामलों में बढ़ोतरी के पीछे बड़ी वजह यह भी है कि यहां के ज्यादातर लोग पुलिस के पास जाने से हिचकते हैं, खासकर महिलाएं।’

यहां महिलाओं और पुरुषों के बीच एक फासला साफ नजर आता है। ज्यादातर महिलाएं घरों के परंपरावादी माहौल में ही रहती हैं। कई महिलाओं से मैंने बात करने की कोशिश की, लेकिन मुझे सिर्फ घूंघट के पीछे दबी मुस्कान ही मिली। किसी महिला ने कैमरे के सामने कुछ नहीं बोला।