नई दिल्ली: बीते रविवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के चार नेता और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस. अब्दुल नजीर सहित छह लोगों को विभिन्न राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया.
आंध्र प्रदेश के राज्यपाल नियुक्त हुए जस्टिस नजीर अयोध्या मामले को लेकर फैसला सुनाने वाली उच्चतम न्यायालय की पीठ के सदस्य थे और बीते जनवरी में ही वे सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए हैं.
उनकी नियुक्ति को लेकर विपक्ष ने आपत्ति जताते हुए सरकार की आलोचना की है और इस तरह की नियुक्तियों के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिवंगत नेता अरुण जेटली की टिप्पणियों का जिक्र किया.
नज़ीर साहब को राजपाल बना दिया लेकिन उनसे सीनियर जस्टिस @mkatju साहब को तो आजतक कुछ नहीं बनाया गया ; क्यों ???
ईमान की रौशनी में इन्साफ करने वाला ही मुंसिफ कहलाता है;
हुक्म तो कोई भी जारी कर सकता है … pic.twitter.com/B9shNtDtis— syed asim waqar (@syedasimwaqar) February 12, 2023
साल 2012 में पार्टी के विधि प्रकोष्ठ के एक कार्यक्रम में कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति के प्रचलन से न्यायपालिका पर असर पड़ रहा है.
जेटली ने कहा था, ‘दो तरह के जज होते हैं- वे जो कानून जानते हैं, दूसरे वो जो कानून मंत्री को जानते हैं. हम दुनिया का इकलौता देश हैं जहां जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं. यहां रिटायरमेंट की एक उम्र दी गई है, लेकिन जज सेवानिवृति की उम्र के बावजूद इसके इच्छुक नहीं होते. सेवानिवृत्ति से पहले लिए गए फैसले रिटायरमेंट के बाद मिलने वाले पद की हसरत से प्रभावित होते हैं.’
उस समय विपक्ष के नेता जेटली ने यह भी जोड़ा था, ‘न्यायपालिका में निष्पक्षता को बनाए रखने के लिए न्यायाधीशों को सेवानिवृत्ति के समय मिल रहे वेतन के बराबर पेंशन देने और सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने से मुझे कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों की नियुक्ति से न्यायपालिका पर असर पड़ रहा है.’
Milind Khandekar
@milindkhandekar
जस्टिस अब्दुल एस नज़ीर पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए. जाते जाते नोटबंदी को सही ठहराने का फ़ैसला किया, अयोध्या का फ़ैसला करने वाली बेंच में थे. आज राष्ट्रपति ने उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया है.
यह कार्यक्रम पार्टी के विधि प्रकोष्ठ द्वारा आयोजित राष्ट्रीय अधिवक्ता अधिवेशन था, जिसमें तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी भी शामिल हुए थे. उन्होंने कहा था कि सेवानिवृत्ति के दो साल की अवधि के बाद ही जजों की नियुक्ति न्यायाधिकरणों में की जानी चाहिए.
गडकरी का कहना था, ‘… मेरी सलाह है कि सेवानिवृत्ति के बाद दो सालों (नियुक्ति से पहले) का अंतराल होना चाहिए अन्यथा सरकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अदालतों को प्रभावित कर सकती है और एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार न्यायपालिका कभी भी वास्तविकता नहीं बन पाएगी.’
इस समय विपक्ष की आलोचना को लेकर केंद्रीय कानून मंत्री बचाव में उतरे हैं, ठीक इसी तरह 2012 में जेटली के बयान के बाद कांग्रेस के तत्कालीन प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा था कि उन्हें (जेटली को) पूर्व कानून मंत्री होने के नाते मालूम होना चाहिए कि कुछ संवैधानिक स्थाओं के प्रमुख केवल पदस्थ और सेवानिवृत्त न्यायाधीश ही हो सकते हैं.
मोदी ने पेश की नज़ीर, मनु स्मृति वाले जस्टिस अब्दुल को बनाया राज्यपाल | Unseen India pic.twitter.com/AC5FcajS0M
— UnSeen India (@USIndia_) February 12, 2023