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क्या मकड़ियां वैसे ही सोती हैं, जैसे मनुष्य?

मकड़ियों का मनुष्य प्रजाति से रिश्ता बहुत दूर का है. इसलिए दोनों के बीच कम ही चीजें मिलती हैं. तो क्या मकड़ियां वैसे ही सोती हैं, जैसे मनुष्य या अन्य प्रजातियां? कुछ वैज्ञानिक इस सवाल के लिए रतजगे कर रहे हैं.

क्या मकड़ियां सोती हैं? यह एक ऐसा सवाल है जो कुछ वैज्ञानिकों को सोने नहीं दे रहा है. इस सवाल का जवाब खोजने के लिए डेनिएला रोएसलर और उनके सहकर्मियों ने कई रातें जाग कर काटी हैं. उन्होंने मकड़ियों की रातों की गतिविधियां जानने के लिए कैमरों के जरिए उनके वीडियो फिल्माए. इन वीडियो को जब लगातार आंका गया तो एक तरह का निश्चित व्यवहार पकड़ में आया.

डेनिएला और उनके साथियों ने कई-कई रातों तक फिल्माए गए वीडियो का अध्ययन किया और पाया कि मकड़ियों का भी एक तरह का निद्रा चक्र होता है. एक वक्त आता है जब उनकी आंखें झपकने लगती हैं और टांगें मुड़ जाती हैं. इस अवस्था को वैज्ञानिकों ने ‘तीव्र नेत्र गति – नींद जैसी स्थिति’ (REM – Rapid Eye Movement) नाम दिया है. वे बताते हैं कि आरईएम एक ऐसी अवस्था है जब मस्तिष्क के कुछ हिस्से किसी गतिविधि के कारण सक्रिय हो जाते हैं. इसे सपने देखने की अवस्था भी माना जाता है.

नया है यह अध्ययन
कुछ पक्षियों और स्तनधारियों में भी आरईएम नींद की अवस्था देखी गई है. लेकिन मकड़ियों का इस विषय में ज्यादा अध्ययन नहीं हुआ है. जर्मनी की कोंस्टांज यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञानी रोएसलर कहती हैं कि अभी तक पता ही नहीं है कि मकड़ियां सोती हैं या नहीं. कोंस्टांज और उनके साथियों का यह शोध ‘प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ सांइसेज’ नामक प्रतिष्ठित पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

रोएसलर ने इस शोध पर काम करना तब शुरू किया जब एक दिन उन्होंने अपने प्रयोगशाला में रात के वक्त एक मकड़ी को जाले से लटका देखा. वह जंपिंग स्पाइडर कही जाने वालीं इन मकड़ियों को एक अन्य अध्ययन के लिए कुछ समय पहले ही लेकर आई थीं. यह बहुत आम प्रजाति होती है जिसका भूरे बालों से ढका शरीर होता है और दो बड़ी आंखें भी. उस वक्त को याद करते हुए रोएसलर कहती हैं, “मैंने जो देखा वह सबसे अनोखी चीज थी.”

बस तभी उन्होंने और उनके साथियों ने अध्ययन करना शुरू कर दिया. उन्होंने रात को मकड़ियों को रिकॉर्ड करना शुरू किया. अध्ययन में उन्होंने पाया कि मकड़ियों की रात की गतविधियां अन्य प्रजातियों में पाए जाने वाले आरईएम साइकल जैसी ही हैं. रोएसलर बताती हैं कि जैसे कुत्ते और बिल्लियां अपनी नींद में अचानक उछलते हैं, वैसा ही होता है. एक और विशेष बात यह पता चली कि नींद का यह चक्र वैसा ही है जैसा इंसानों में होता है.

 

क्या हैं चुनौतियां?
हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में जीवविज्ञानी पॉल शैंबल भी इस शोध का हिस्सा रहे हैं. वह बताते हैं कि मकड़ियों जैसी ज्यादातर प्रजातियों की आंखों में गतिशीलता नहीं होती, इसलिए उनकी नींद का अध्ययन करना चुनौतीपूर्ण है. वह कहते हैं, “ये जंपिंग स्पाइडर ऐसे शिकारी जीव हैं जो अपनी आंखों की पुतलियों को इधर-उधर हिलाते हैं. शिकार करते वक्त अपनी नजर को बदलने के लिए वे ऐसा करते हैं. साथ ही, युवा मकड़ियों की आंखों पर पारदर्शी परत होती है जिससे उनके शरीर के भीतर देखना आसान है.”

रोएसलर और उनका दल यह सब देख पाया, इसके बारे में शैंबल यह भी कहते हैं कि कई बार जीवविज्ञानी के रूप में आपकी किस्मत भी आपका बहुत साथ देती है. फिलहाल शोध शुरुआती दौर में है. इस दल को यह पता करना है कि रात का यह आरईएम साइकल तकनीकी रूप से सोना माना जा सकता है या नहीं. रोएसलर बताती हैं कि अभी जांच करनी है कि इस अवस्था में उनकी प्रतिक्रिया होती ही नहीं है या एकदम धीमी हो जाती है.

फिर भी, इस शोध को लेकर दुनिया के अन्य जीवविज्ञानी उत्साहित हैं. विस्कॉन्सिन-ला क्रॉस यूनिवर्सिटी में कीट-पतंगों पर अध्ययन करने वाले बैरेट क्लाइन कहते हैं कि यह बहुत उत्साहित करने वाली बात है कि मनुष्य से इतनी दूर की प्रजाति में भी आरईएम साइकल के संकेत मिले हैं लेकिन बहुत सारे सवालों के जवाब अभी खोजने बाकी हैं. क्लाइन कहते हैं, “आरईएम नींद अभी बहुत हद तक एक ब्लैक बॉक्स है.”

वीके/सीके (रॉयटर्स)