साहित्य

…क्या यें सत्ताओं को तमाचा नही है…!! हल्कू आज भी ज़िन्दा है !!….By-योगेश धाकरे चातक

योगेश धाकरे चातक

Lives in Alirajpur
============
·
पूस की रात कहानी प्रेमचंद द्वारा आदर्शान्मुख यथार्थवाद के रास्ते को छोड़ कर यथार्थवादी रास्ते की घोषणा करती है।
अभाव और वेदनाओं के अनछुये पहलुओं को भी छूआ है
आज के परिवेष मै “चातक” का आकलन….क्या यें सत्ताओं
को तमाचा नही है…समीक्षार्थ
!! हल्कू आज भी जिन्दा है !!
—————————————
सर्द ठिठुरन भरी,रातो की..
विभीषिका, गरीबो से पूछों ।
गर्म कपड़ो के बिना, झोंपड़ी
की ,पूस की रात को परखों ।।
साँय साँय चलती हवा, जब..
नश्तर बन ,चुभती तो होगी ।
वेदनाओ के साथ,अभावो की
घुटन भरी पीर, उभरती होगी ।।
पीर की पराकाष्ठा से,उभरने..
वाली सिसकियाँ , नाकामी है ।
धैर्य की धीरता से ,परिभाषित
होता “नीर” दर्द की सुनामी है ।।
सर्द रातो मे , हवा का कातिल..
कहर, तान्ड़ब रच जाता होगा ।
दुधमुहाँ बच्चा भी,माँ के गर्म..
आँचल में ,सिहर जाता होगा ।।
ज्येष्ठ का ताप,पूस का खौप तो,
मात्र “गरीबों की परीक्षा है ।
19 वीसदी की वेदना की भी,
21वी सदी मे भी समीक्षा है ।।
पूस की रात,मात्र,कहानी नही,
मुंशी जी का, मार्मिक मंथन है ।
गरीबों की “दर्द भरी “सर्द रातें,
सत्ता की नाकामी का चितंन है ।।
हल्कू को हल्के मे मत लो,
सरकारों, पात्र नही तमाचा है ।
अाज भी जिन्दा खड़ा है तो,
नेताओ इसे तुमने ही पाला है ।।
सैंतीस फीसदी हल्कू, आज
भी, गरीबी रेखा के नीचे है ।
मे नही,आर्थिक सर्वेक्षण के,
नवीनतम आँकड़े कहते है ।।
————————————————
रचित….श्री योगेश सिंह धाकरे “चातक”
(ओज की आवाज) आलीराजपुर म.प्र
@सर्वाधिकार सुरक्षित
————————————————