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क्योंकि वह राजस्थानी है,,,वो क्षत्रिय है

Kshatriya Rajendra Singh Naruka
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आजकल प्राय: यह देखने में आ रहा कि लोग क्षत्रिय होने को मनुष्य होने में एक रोड़ा मानने लगे है |ऐसा केवल वे ही लोग सोचते या मानते हो जो कि क्षत्रिय नहीं है, तब तक तो स्थिति फिर भी ठीक हो, किन्तु अब तो यह भी देखने में आ रहा है कि कुछ अपने आपको राजपूत कहने वाले व्यक्ति भी किसी हीन भावना को महशुश कर रहे है कि वो क्षत्रिय है |इनमे बहुतायत उनलोगों कि है जो कि अपने आपको प्रगतिशील कहलवाने के प्रति बुरी तरह से न केवल लालायित ही है, बल्कि अनाचार की किसी भी सीमा रेखा तो तोड़ने के लिए अपनी पूरी शक्ति का भरपूर दुरूपयोग कर रहे है |

मै सधारण भाषा में समझाने का प्रयास करती हूँ कि यदि कोई व्यक्ति अपने आपको राजस्थान का होना बताये तो क्या वो भारतीय नहीं है,?? या यो कहे कि भारतीय होने के लिए उसे अपना राजस्थानी होने की पहिचान छोडनी पड़ेगी | यह एक हास्यास्पद बात है क्योंकि वह राजस्थानी है, केवल इसी बात मात्र से वह भारतीय अपने आप सिद्ध हो जाता है |वैसे भी भारत के इतिहास में राजस्थान का अपूर्णीय योगदान भी है |अब समझदार लोग तो सिर्फ इसी बात से समझ गए होंगे कि क्षत्रिय होने से व्यक्ति न केवल मनुष्य अपने आप सिद्ध हो जाता है बल्कि मानवता के लिए क्षत्रिय का अपूर्णीय योगदान भी अपने आप स्मरण होआता है | इसी प्रकार अभी कुछ एक असामाजिक संघठन बन गए है जो आर्य और अनार्य को एक जाति (race ) सिद्ध करने में लगे है, जैसे विदेशी इतिहासकार कुछ ऐसा ही जहर घोल कर अपने दीर्धकालिक उद्देश्यों की पूर्ति करने का काफी हद तक सफल प्रयास कर गए है |जबकि आर्य कोई जाति नहीं बल्कि सभ्य एवं सुसंस्कृत लोगो को कहा जाता है, और इसका शाब्दिक अर्थ भी अच्छे आचरण वाला होता है,,,वैसे ही अनार्य का अर्थ बुरे आचरण वाला होता है |

किन्तु देखिये BAMCEF का साहित्य क्या जहर उगल रखा है |और विरोधाभाष उनके अपने साहित्य में है किन्तु चूँकि शुद्रत्व का तो अर्थ ही शीघ्र प्रभावित होना है ,इसलिए उनके ऊपर BAMCEF के इस कुत्सहित्य का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है |रावणके पूर्वज ब्रह्मण और रावण दलित ,दिति ब्रहामिनी और ब्रह्मण ऋषि कश्यप के वंशज जिन्हें दैत्य कहा जाता कैसे दलित हो गये?? यह पूंछने की बुद्धि तो एक शुद्र में हो नहीं सकती इसलिए इनकी चल रही है दुकानदारी ,जिस दिन शुद्र भगवान बुद्ध के उपदेशो पर अमल कर अपनी बुद्धि को स्वतंत्र सोचने के लिए के लिए अपने विवेक को जागृत कर लेंगे उसी दिन बामसेफ के बुद्धिजीवी अपना सर छुपाने के लिए जगह ढूंढेंगे |हम अपने वास्तविक विषय पर आते है कि “क्या मनुष्य या मानव धर्मं का क्षत्रिय होने या क्षात्र-धर्मं से विरोध है या मानवता के लिए हमे यह भूलना चाहिए कि हम एक क्षत्रिय है ???

जैसे कोई अपने माता-पिता की संतान हुए बगेर समाज या इस संसार में आ ही नहीं सकता ठीक उसी प्रकार वर्ण-व्यवस्था कि लाख बुराई करने के बावजूद मनुष्य होने के लिए व्यक्ति को किसी न किसी वंश ,जाति और कुल में तो पैदा होना ही पड़ेगा और उसके उस कुल या वंश का होने से ही वो मनुष्य है वरन तो वो बिना शारीर ही हुआ होता,,,यदि वो क्षत्रिय नहीं हुआ होता तो वैश्य या शुद्र या फिर ब्रह्मण, कुछ न कुछ तो होता ही, अब आज तर्क यह भी है कि वो अनार्य भी तो होसकता है, हाँ हो सकता है किन्तु अनार्य का अर्थ हम पहिले ही बता चुके है कि, जो सदाचरण और सभ्यता और संस्कृति कि ऊँचाईयों से दूर हो वो ही अनार्य है |और आज तो विज्ञानं इतनी प्रगति कर चूका है कि आप स्वयं जानले कि कौनसा धर्म वैज्ञानिक, वास्तविक, एवं प्राक्रतिक है, और कौनसा अवैज्ञानिक, अप्राकृतिक और अवास्तविक है, शायद निकट रक्त सम्बन्धी से विवाह करना और अपने कुल गोत्राचार का विचार करने मात्र से ही समझ बैठ जायेगा कि मेरा इशारा क्या है |

यदि आप में सामाजिक चेतना की जाग्रति पैदा नहीं हुयी है,तो आप आर्य यानि सभ्य और शिष्ट नहीं हो सकते | तब आप उन अनपढो और गंवारो से भी गए बीते है जो विनम्र है |ऐसी स्थिति में आप आर्य नहीं अनार्य ही है |जो शिक्षा विनय नहीं सिखाती, वो शिक्षा नहीं कुशिक्षा है |विद्या मनुष्य को विनय सभ्यता और शीलता सिखाती है |यही अंतर आर्य और अनार्य में है |आर्य या सभ्य मनुष्य में दुसरो का हित देखने की बुद्धि होती है, जबकि अनार्य या असभ्य मनुष्य,या जंगली पशु में केवल अपने स्वार्थ को देखने की ही प्रेरणा मात्र होती है |इसी सामाजिक गुण का दूसरा नाम आर्यत्व है और आजकल परचित नाम मनुष्य है| जिस मनुष्य में यह नहीं वो आर्य नहीं होता वाही अनार्य है |अब आप आकलन करे की दुसरे के हित को देखने एवं समझने की बुद्धि जिसमे होती है वो आर्य तो है ही, किन्तु दुसरे के हित के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने के लिए दृढ़संकल्पितजो होता है वो अर्यो यानि सभ्य मनुष्यों में भी केवल और केवल क्षत्रिय ही हो सकता है | अत: क्षत्रिय न केवल मानवता का पोषक बल्कि मनुष्यों में भी सभ्य और उनमे भी सर्वोत्कृष्ट सामाजिक चेतना और सभ्यता के धनी होते है “क्षत्रिय”इसलिए क्षत्रिय के रूप में पैदा होना हीनता का नहीं बल्कि गौरव की बात है |
“जय-क्षात्र धर्मं”

कुँवरानी निशा कँवर बसेठ .

डिस्क्लेमर : लेखिका के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है