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ख़ास रिपोर्ट : रूस के साथ हमारे महत्वपूर्ण संबंध हैं, हम इसे और अधिक टिकाऊ बनाने के तरीक़े खोजने की कोशिश कर रहे हैं : मॉस्को में बोले डॉ. जयशंकर

ANI_HindiNews
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विदेश मंत्री डॉ. एस जयशंकर और रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने आज रूस के मॉस्को में मुलाकात की।

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हमने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लक्ष्यों की सर्वोत्तम सेवा के बारे में बात की। अफगानिस्तान के अनेक क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा हुई। हमने चर्चा की कि अफगानिस्तान के लोगों के लिए अपना समर्थन कैसे जारी रखें: एक प्रेस वार्ता के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर, मास्को, रूस

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रूस के साथ हमारे महत्वपूर्ण और समय-परीक्षणित संबंध हैं। हम इस संबंध का विस्तार करने और इसे और अधिक टिकाऊ बनाने के तरीके खोजने की कोशिश कर रहे हैं। हमने उन क्षेत्रों पर चर्चा की जहां दोनों देशों के बीच स्वाभाविक हित हैं: एक प्रेस वार्ता के दौरान विदेश मंत्री एस जयशंकर

रूस के साथ भारत का आपसी व्यापार बढ़ने की वजहें

विदेश मंत्री एस जयशंकर 7-8 नवंबर को रूस की आधिकारिक यात्रा कर रहे हैं जिसके दौरान वो रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के साथ “द्विपक्षीय मुद्दों के साथ-साथ क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर विचार-विमर्श करेंगे.”

इस साल रूस में दोनों देशों के बीच सालाना उच्चस्तरीय बैठक होनी थी जो नहीं हो पाई थी. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के मुताबिक़ विदेश मंत्री की “यह यात्रा दोनों पक्षों के बीच नियमित उच्च स्तरीय वार्ता का हिस्सा होगी.”

फ़रवरी में यूक्रेन पर हमले के बाद से पश्चिमी देशों में रूस एक ‘आक्रमणकारी’ की तरह देखा जा रहा है और उसका साथ देने वाले देशों की भी आलोचना की जा रही है. यहाँ तक कि भारत के तटस्थ रुख़ को भी शक की नज़रों से देखा जा रहा है और भारत पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है कि वो रूस की आलोचना करे.

लेकिन इस मामले में भारत ने अब तक अपनी निष्पक्षता बरकरार रखी है.

भारत पर पश्चिमी देशों के दबाव का एक उदाहरण गुरुवार को ब्रिटेन की संसद में उस समय देखने को मिला जब वहाँ की सरकार ने ये स्वीकार किया कि हाल में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच फ़ोन पर हुई बातचीत में ब्रिटेन ने भारत के रवैए पर एतराज़ जताया था.

ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली ने पिछले हफ़्ते दिल्ली में भारत के विदेश मंत्री जयशंकर के साथ मुलाक़ात के दौरान भी ये मुद्दा उठाया था.

यूक्रेन युद्ध के बाद से भारत-रूस रिश्तों में क्यों बढ़ी क़रीबी?

पश्चिमी देश रूस को कूटनयिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश कर रहे हैं. कई पश्चिमी कंपनियों ने रूस में अपना कारोबार बंद कर दिया है और निवेश भी रोक दिया है.

कुछ कंपनियाँ और अंतरराष्ट्रीय ब्रैंड रूस से वापस लौट गए हैं लेकिन यूक्रेन पर हुए हमले के बाद से जारी जंग के दौरान भारत-रूस संबंध फलते-फूलते दिख रहे हैं, दोनों देशों के नेता एक दूसरे के देश की यात्राएँ कर रहे हैं या फिर अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिल रहे हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सितंबर में उज़्बेकिस्तान के शहर समरक़ंद में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में भाग लेने गए थे जहाँ उनकी मुलाक़ात रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से हुई थी. पिछले साल दिसंबर में रूसी राष्ट्रपति भारत आए थे. विदेश मंत्री ने पिछली बार जुलाई 2021 में रूस का दौरा किया था और उसके बाद अप्रैल 2022 में रूसी विदेश मंत्री की नई दिल्ली की यात्रा की थी.

ऐसे में क्या ये माना जा सकता है कि दोनों देशों के रिश्तों में नई जान आई है?
रूसी शहर सेंट पीटर्सबर्ग में भारतीय मूल के विजय नायर अपने प्रांत केरल से उस समय के सोवियत यूनियन में पढ़ने गए थे और वहीं आबाद हो गए. उनका ख़ुद का आयात-निर्यात का व्यापार है, वो कहते हैं, “दोनों देश व्यावहारिक कूटनीति से काम ले रहे हैं और ऐसा वे अपने-अपने राष्ट्रीय हित के मद्देनज़र कर रहे हैं.”

नायर कहते हैं, “दोनों देशों के बीच रिश्ते बहुत पुराने हैं. मेरे जैसे कई युवा सोवियत यूनियन के दौर में यहाँ पढ़ने आए और यहीं के होकर रह गए क्योंकि दोनों देशों के बीच रिश्ते हमेशा से मज़बूत रहे थे. लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद आप भारत और रूस के बीच नज़दीकी आप देख रहे हैं उसमें गर्मजोशी नहीं है, रिश्ते में इमोशन का निवेश नहीं है. अभी भारत को सस्ता तेल चाहिए और रूस को उसके तेल के लिए ख़रीदार. दोनों की इन ज़रुरतों ने दो अच्छे और पुराने दोस्तों को और भी क़रीब ला दिया है. बस, इतनी-सी बात है. इससे ये नहीं समझना चाहिए कि भारत ने अमेरिका और रूस के बीच बनाई निष्पक्ष दूरी के सिद्धांत में बदलाव किया है.”

विजय नायर हाल तक पत्रकार थे और क्रेमलिन में उनका आना-जाना रहा है. वो कहते हैं कि व्लादीमिर पुतिन की प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा और रूस की आलोचना न करने की वजह से रूसी नेताओं के दिलों में भारत के लिए एक ख़ास जगह बन गई है. वो कहते हैं, “आम लोग भारत को पहले भी अपना दोस्त मानते थे और अब तो और भी ज़्यादा मानने लगे हैं. लेकन पुतिन प्रशासन में भारत की छवि और भी बेहतर हुई है.”

अमेरिकी थिंक टैंक विल्सन सेंटर के दक्षिण एशिया मामलों के विशेषज्ञ माइकल कुग्लमैन के अनुसार, भारत की मिलिट्री रूसी हथियारों पर निर्भर है इसलिए उसके लिए रूस की सीधे तौर पर आलोचना करना मुश्किल है. उन्होंने हाल में एक इंटरव्यू में कहा था, “दूसरी वजह, इन दोनों देशों का पारम्परिक रिश्ता है जो एक स्पेशल रिश्ता है और जिसकी नींव शीत युद्ध के दौर में रखी गई थी. भारत ने रूस को हमेशा एक विश्वसनीय और भरोसेमंद साथी की तरह देखा है. लब्बोलुआब यह है कि भारत रूस का सबसे भरोसेमंद साथी है और इसलिए वह इसके खिलाफ नहीं जाएगा.”

भारत ने यूक्रेन में युद्ध का सीधे शब्दों में विरोध किया है और शांति की हमेशा अपील की है. सितंबर में समरक़ंद सम्मलेन में रूसी राष्ट्रपति पुतिन के साथ अपनी मुलाक़ात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट किया था कि “ये युद्ध का युग नहीं है.”

रूस में भारतीय मूल के विजय नायर की नज़र में भारत के लिए इस निष्पक्ष स्टैंड को बनाये रखना और इसके बावजूद अमेरिका और रूस जैसे दो बड़े देशों से गहरे रिश्ते बनाये रखना एक मुश्किल काम है मगर ये भारत के राष्ट्रीय हित में है. वो कहते हैं, “अमेरिका और रूस दो पावर सेंटर हैं. पश्चिमी देशों में अमेरिका की चलती है. सेंट्रल एशिया और पूर्वी यूरोप के कुछ देशों में रूस की चलती है. दोनों के बीच भारत और चीन जैसे बड़े देश हैं जो दोनों पावर सेंटर के क़रीब तो हैं लेकिन उनका हिस्सा नहीं हैं और कभी होंगे भी नहीं.”

आसमान छू रहा द्विपक्षीय व्यापार

पिछले कुछ समय से भारत और रूस के बीच जारी उच्च स्तरीय यात्राओं के बीच भारत-रूस द्विपक्षीय व्यापार में 500 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो एक चौंका देने वाला आंकड़ा है. इस साल अप्रैल से अगस्त के बीच, सिर्फ़ पाँच महीनों में द्विपक्षीय व्यापार 18.2 अरब डॉलर रहा. ये व्यापार पिछले साल साल में केवल आठ अरब डॉलर था.

इसकी ख़ास वजह है रूस से भारी मात्रा में कच्चे तेल और फ़र्टिलाइज़र का आयात, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ 18.2 अरब डॉलर के व्यापार में इन दोनों चीज़ों का योगदान 91 प्रतिशत था. विशेषज्ञ कहते हैं कि आने वाले महीनों में रूस से कच्चे तेल की आयात में और भी वृद्धि होगी.

रूस पर लगे प्रतिबंधों के बाद रूसी तेल की क़ीमत में भारी गिरावट आई है, भारत ने भारी मात्रा में रूसी तेल खरीदना इसलिए शुरू किया क्योंकि रूस ने कच्चे तेल के दाम में भारत को भारी छूट देना शुरू कर दिया. कहा जाता है कि भारत को ये तेल औसतन 60 डॉलर प्रति बैरल के हिसाब से मिलता है. भारत के रूसी तेल खेल खरीदने पर अमेरिका को आपत्ति है लेकिन उसने इस बारे में खामोशी का रुख़ अख़्तियार किया हुआ है.

भारत और रूस ने द्विपक्षीय व्यापार में 40 अरब डॉलर का लक्ष्य रखा है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए कई बैठकें हो चुकी हैं. विदेश मंत्री जयशंकर जब मॉस्को में होंगे तो उनकी बैठक रूसी उप-प्रधान मंत्री और व्यापार और उद्योग मंत्री, एचई डेनिस मंटुरोव से भी होगी. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची के अनुसार इस बैठक में “व्यापार, आर्थिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सांस्कृतिक सहयोग पर चर्चा की जाएगी.

जिस रफ़्तार से दोनों देशों के बीच व्यापारिक रिश्ते आगे बढ़ रहे हैं ऐसा संभव है कि 40 अरब डॉलर का लक्ष्य जल्द ही हासिल कर लिया जाए. और जहाँ तक अमेरिका और पश्चिमी देशों के भारत पर दबाव बनाए रखने की बात है तो नई दिल्ली में ये बात आम तौर से मानी जाती है कि प्रधानमंत्री मोदी इस दबाव के आगे नहीं झुकेंगे. साथ ही, भारत-रूस रिश्ता इसी तरह मज़बूती से आगे बढ़ता रहेगा.

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ज़ुबैर अहमद
बीबीसी संवाददाता