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जर्मनी को इस बार सर्दी रूसी गैस के बिना गुज़ारनी पड़ रही है, क्या गुज़र रही है आम लोगों पर : रिपोर्ट

कीमतों पर तय सीमा, ईंधन की कमी और स्वैच्छिक राशनिंग के बीच, जर्मनी को इस बार सर्दी रूसी गैस के बिना गुजारनी पड़ रही है. इस हाल में उद्योग विदेशों में सस्ते विकल्पों की तलाश में जुटे हुए हैं.

सोन्या बाडे जर्मनी के तटीय शहर लुबमिन में ‘बेड एंड ब्रेकफास्ट’ चलाती हैं. अपने पति और पांच बच्चों के साथ, वह बाल्टिक समुद्र तट से कुछ ही दूरी पर 115 साल पुराने खूबसूरत घर में रहती हैं और काम करती है. सर्दी शुरू होने के साथ ही उन्हें चिंता ने घेर लिया है, “हम गैस से गर्मी पैदा करते हैं, निश्चित रूप से यह हमारे लिए बहुत बड़ी चिंता है.”

देर शाम ब्रेकफास्ट रूम में डीडब्ल्यू के साथ बातचीत में उन्होंने बताया “बेड एंड ब्रेकफास्ट रहे या ना रहे, अगर गैस की कीमतें तिगुनी या चौगुनी हो जाती हैं तो मैं इस घर को रखने का जोखिम नहीं उठा सकती. मैं बिल्कुल नहीं कर सकती और मुझे कोई नहीं बता सकता कि मेरी जगह कोई भी क्यों ना हो, यह कर सकेगा.”

उन्हें यह भी डर है कि बढ़ती ऊर्जा लागत पर्यटकों को दूर रखेगी. एक गेस्ट तो अपने बिजली बिल से चिंतित होकर बुकिंग भी कैंसिल कर चुका है.

असफल ऊर्जा नीति
यह लुबमिन में प्रमुख उद्योग यानी पर्यटन के लिए अपशकुन सा है. जो तटीय स्थितियां इसे एक लोकप्रिय समुद्री ठिकाना बनाती हैं, उसी ने इसे रूस से आने वाली नॉर्ड स्ट्रीम बाल्टिक सागर पाइपलाइनों के लिए एक बिल्कुल समापन बिंदु बना दिया है. नॉर्ड स्ट्रीम 1 (NS1) यूरोप के मुख्य गैस आपूर्ति मार्गों में से एक था. यह 2021 में लुबमिन के जरिये रूस से 55 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) गैस की आपूर्ति करता था, यानी यूरोपीय संघ के गैस आयात का करीब 45 प्रतिशत. जर्मनी में, खपत होने वाली आधी से ज्यादा प्राकृतिक गैस रूस से मिलती थी.

यूक्रेन में युद्ध को लेकर यूरोपीय संघ से तनाव के बीच अगस्त में रूस की दिग्गज ऊर्जा कंपनी गाजप्रोम ने पाइपलाइन से गैस देना बंद कर दिया. नॉर्ड स्ट्रीम 1 के समानांतर चलने वाली दूसरी पाइपलाइन नॉर्ड स्ट्रीम 2 (NS2), 2021 में बनकर तैयार हुई, लेकिन तनाव की वजह से संचालित नहीं हो सकी.

लुबमिन वाले राज्य मैक्लेनबुर्ग-वेस्टर्न पोमेरानिया की संसद में सोशल डेमोक्रेट (एसपीडी) फाल्को बेइट्ज डीडब्ल्यू को बताते हैं, “बाल्टिक सागर में एक अरब यूरो की परियोजना को डुबोना लक्ष्य नहीं था.”

बेइट्ज बताते हैं कि कैसे यूक्रेन पर रूस के हमले ने संघीय सरकार की ऊर्जा नीति पर विचारों को बदल दिया. बेइट्ज ने कहा, “हर स्थिति में -पहले और बाद में- की स्थिति होती है. आज के हालात के हिसाब से, नॉर्ड स्ट्रीम 2 सही रणनीति नहीं थी.”

आसमान छूती उर्जा लागत
रूस की ओर से पैदा किए गए अंतर को भरने के लिए जर्मनी को उपलब्ध बाजारों से महंगे गैस और ऊर्जा के दूसरे विकल्प खरीदने पड़े हैं. इससे ग्राहकों के लिए दाम बढ़ गए हैं. ऊर्जा कीमतों की एक पोर्टल ‘चेक 24’ के मुताबिक, आज एक जर्मन परिवार के लिए सालाना गैस अनुबंध की लागत एक साल पहले की तुलना में 173% ज्यादा है. 20,000 किलोवाट- प्रति घंटे की औसत सालाना खपत के लिए 1,365 यूरो की तुलना में 3,726 यूरो खर्च करने पड़ रहे हैं.

बेइट्ज कहते हैं, “रूस प्रभावी रूप से यूरोप के खिलाफ एक गैस युद्ध छेड़ रहा है. हमें मौजूदा समस्या को हल करने के लिए वैकल्पिक तरीकों की तलाश करने की जरूरत है.”

जर्मनी समाधान के लिए हर तरह के रास्ते देख रहा है. अक्टूबर में, संघीय सरकार ने गैस पर टैक्स में कटौती की और 200 बिलियन यूरो का ऊर्जा राहत पैकेज पारित किया. इस सप्ताह (अक्टूबर 31), आर्थिक विशेषज्ञों के एक आयोग ने उपभोक्ताओं के लिए गैस की कीमतों पर सीमा तय करने का समर्थन करने वाली एक रिपोर्ट जारी की. यह उपाय औसतन हर साल एक घर में करीब 1,056 यूरो की बचत करा सकता है. उम्मीद है कि बर्लिन आयोग के कई प्रस्तावों को पारित करेगा.

उद्योगों के बाहर जाने की आशंका
समूह ने बड़े औद्योगिक खिलाड़ियों के लिए भी कीमतों पर सीमा तय किये जाने का प्रस्ताव रखा, लेकिन कहा कि इसे इस शर्त से जोड़ा जाना चाहिए कि मौजूदा उत्पादन जर्मनी में बना रहे. सस्ती रूसी गैस अब अतीत की बात हो गई है, ऐसी चिंताएं हैं कि कंपनियां उत्पादन को कम लागत वाले देशों में स्थानांतरित कर सकती हैं.

जर्मनी में खपत होने वाली ऊर्जा का करीब 44 प्रतिशत गैर-आवासीय क्षेत्रों के लिए होता है – जिसमें उद्योग और व्यापार शामिल हैं. जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक, इस ऊर्जा का करीब दो-तिहाई गर्मी पैदा करने के लिए जरूरी है. इस ऊर्जा का एक चौथाई से ज्यादा हिस्सा गैस का है. अक्षय ऊर्जा का योगदान सिर्फ 3% है.

फिर से जीवाश्म ईंधन का दौर?
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा आयोग की एक नई रिपोर्ट कहती है कि रूस की जंग ने प्राकृतिक गैस समेत जीवाश्म ईंधन से दूर जाने की प्रक्रिया को भरपूर तेजी दे दी है. जर्मनी ने कम समय के लिए फिलहाल जो उपाय किये हैं वह मिला जुला है.

ऊर्जा संकट की वजह से पुराने कोयला संयंत्रों को ग्रिड पर वापस लाया गया. देश के तीन परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को बंद करने की समय सीमा 2023 तक बढ़ा दी गई.

यूरोपीय संघ की ऊर्जा टैक्सोनॉमी के तहत परमाणु ऊर्जा को “ग्रीन” लेबल दिया गया है यानी इसे अक्षय ऊर्जा वाली श्रेणी में डाल दिया गया है. हालांकि जर्मन लोग दुर्घटनाओं की आशंका के साथ-साथ परमाणु कचरे को स्टोर करने के विवाद के डर से इससे दूर भागते हैं.

इस बीच, रूसी गैस की कमी ने जर्मनी के तटों पर बनने वाले दो लिक्विफाइड नेचुरल गैस (एलएनजी) टर्मिनलों के निर्माण में तेजी लाई है. दो टर्मिनल, विल्हेल्म्सहाफेन और ब्रांसबॉयटेल में साल के खत्म होने से पहले चालू हो सकते हैं. जर्मनी के बाकी हिस्सों में इसी तरह की कम से कम चार परियोजनाएं चल रही हैं. आलोचकों का कहना है कि जर्मनी को अपने कार्बन उत्सर्जन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को कम करने की जरूरत है ऐसे में एलएनजी टर्मिनलों पर निर्भरता दिशाहीन है.

कम करें हीटिंग
जर्मनी की ऊर्जा ग्रिड का प्रबंधन करने वाली फेडरल नेटवर्क एजेंसी (बीएनए) के मुताबिक, जर्मनी की गैस भंडारण सुविधाएं अभी की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त हैं. अगले दो से तीन महीनों तक पूर्ति हो सकती है. हालांकि इस बार जर्मनी में सर्दियों का मौसम इससे कहीं लंबे समय तक चल सकता है.

बीएनए के प्रवक्ता फिएट वुल्फ ने डीडब्ल्यू को बताया, “फरवरी और मार्च में, यहां तक ​​कि अप्रैल में भी यहां ठंड हो सकती है और आपको यह जानना चाहिए कि जर्मनी कई देशों की तुलना में घरेलू हीटिंग के लिए गैस पर ज्यादा निर्भर है, इसलिए तापमान बहुत अहम भूमिका निभाता है.”

वैकल्पिक आपूर्ति की तलाश में हाथ-पैर मारने के साथ, अनिवार्य राशनिंग से बचने के लिए, जर्मनों को हीटिंग कम करनी होगी.

“अगर हम इस सर्दी में जर्मनी में गैस की खपत को काफी कम कर सकें यूं कहें कम से कम 20 फीसदी, तो हम सर्दियां गुजार पाएंगे.”

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क्रिस्टी प्लैडसन | नाइल किंग