साहित्य

ज़रूर पढ़िएगा, शायद आपकी रोजमर्रा की कहानी भी यहीं मिल जाए

Journalist Vivek
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जरूर पढ़िएगा, शायद आपकी रोजमर्रा की कहानी भी यहीं मिल जाए 🙏
आपके जीवन में ऐसे कितने ठहराव आए जिसने आपको बदलने पर मजबूर किया…प्रायः हम सभी एक केंद्रित जीवन जी रहे हैं, जिसके केंद्र में हमारी महत्वकांक्षा और हमारी कुंठाएं भी रहती हैं। महत्वकांक्षा हमारे लक्ष्य की ओर हमें अग्रसर रखती हैं और जब कभी हम अवसादों से घिरते हैं तो कुंठा हावी हो जाती है। लेकिन जब हम अपनी सफलता और विफलता की ओर देखते हैं, तो हमें पता चलता है कि, वाकई हमने गलती कहां और किस तरह की। फिर हम जुट जाते हैं, जीवन में उस गलती को दोबारा ना करने के लिए। लेकिन यहीं हम सबसे बड़ी गलती कर देते हैं और वो ये कि, जनाब नियत समय में की गई गलती से ली गई सीख भविष्य में एक या दो दफा बचा सकती है हमेशा नहीं और ये अच्छा भी है कि हम अतीत की गलतियों को भविष्य में ना दोहराएं। क्योंकि हर कर्म का आधार और उसके दौरान प्राप्त बाधाएं, संघर्ष और पड़ाव अलग अलग होते हैं। इसीलिए एक सीख को हम हर जगह उपयोग नहीं कर सकते।

हां लेकिन इससे अनुभवों की एक मजबूत गठरी तो बना ही सकते हैं। यहां ये जानना भी उतना ही जरूरी है कि, हर यात्रा के अलग अलग पड़ाव होते हैं। जो कि, हर हाल में पार भी करने होते हैं। यदि आपको नियत समय में लक्ष्य पार करना है तो आप वर्तमान को रोजाना कोस नहीं सकते। बहरहाल यहां ये जानना भी उतना ही जरूरी है कि, जब हमारे जीवन में कुछ नया नहीं हो पा रहा है, जिसकी उम्मीद हमने बीते वर्षों में पाली थी। तो गौर से देखिए कि, वर्तमान में जो आप कर रहे हैं या उसे करने की उम्मीद आपने भूतकाल में किस तरह की थी। दावा है ऐसा करना आपको बहुत चार्ज कर देगा। क्योंकि हम वर्तमान के पन्ने रोज़ पलट रहे हैं। पर कभी कभार अतीत के पन्नों को भी पलटना चाहिए, ताकि आपको वर्तमान स्थिति तक की यात्रा के तमाम पड़ाव भी पता चलते रहें। आपको पता चलते रहे कि, किसी ठहराव ने आपको कमज़ोर नहीं बल्कि मजबूत ही बनाया है। बशर्ते आपको खुद के कर्म और विचारों पर सदा यकीन हो, इसीलिए इसे और अच्छे से समझने के लिए आप अपने आस पास के माहौल पर ज़रूर गौर करें। मान लीजिए कि, आपके आस पास ऐसे लोग हैं जो खतरा भांपते ही मैदान छोड़ने और हथियार डाल देने में विश्वास रखते हैं या फिर आपके आस पास ऐसे लोग हैं, जो किसी भी परिस्थिति में कर्म में विश्वास रखते हैं।
पूरी बात का लब्बोलबाब यही कि, आपके आस पास जिस तरह के लोगों का जमावड़ा होगा। आपकी सोच भी उसी के इर्द गिर्द बनती चली जाएगी। और हां आप इसे बिल्कुल भी बदल नहीं सकते……
सोचिएगा ज़रूर…