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तबाही की कगार पर खड़े पाकिस्तान को सऊदी क्राउन प्रिंस मुहम्मद बिन सलामन ने बचाया, सऊदी की अहम घोषणा: रिपोर्ट

पाकिस्तान के लिए नए साल की शुरुआत अच्छी नहीं हुई है. पाकिस्तान अपने पैरों पर खड़े होने के बजाय सऊदी अरब के क़र्ज़ों पर निर्भर होता जा रहा है. 2023 की शुरुआत भी इसी से हुई.

पाकिस्तान को सऊदी अरब एक बार फिर से गहरे आर्थिक संकट से निकालने जा रहा है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार पिछले हफ़्ते पाँच अरब डॉलर के क़रीब पहुँच गया था जो कि मुश्किल से एक महीने के आयात बिल के भुगतान में ही ख़त्म हो जाता.

इसके अलावा पाकिस्तान पर विदेशी क़र्ज़ों की देनदारी है और समय पर उसे नहीं चुकाने से डिफ़ॉल्ट होने की आशंका भी है.

पिछले हफ़्ते ही पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक़ डार ने डिफ़ॉल्ट होने की आशंका को ख़ारिज करते हुए कहा था कि सऊदी अरब नया क़र्ज़ जल्द ही देने वाला है और चीन से भी बात चल रही है.

पाकिस्तान के आर्मी प्रमुख जनरल सैयद आसिम मुनीर सऊदी अरब के दौरे पर हैं. जनरल मुनीर पिछले हफ़्ते ही सऊदी अरब गए थे. सोमवार को उनकी मुलाक़ात सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से हुई थी.

सऊदी की अहम घोषणा
इस मुलाक़ात के बाद सऊदी क्राउन प्रिंस ने पाकिस्तान में निवेश 10 अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए स्टडी करने का निर्देश दिया है.

सऊदी क्राउन प्रिंस ने इसके अलावा सऊदी डिवेलपमेंट फ़ंड यानी एसडीएफ़ से कहा है कि वह पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक में डिपॉज़िट पाँच अरब डॉलर तक बढ़ाने के लिए अध्ययन करे.

पाकिस्तान में निवेश की घोषणा पिछले साल अगस्त में की गई थी. वहीं सऊदी ने पिछले महीने दिसंबर में पाकिस्तान को दिए क़र्ज़ चुकाने की मियाद बढ़ा दी थी.

सऊदी की सरकारी समाचार एजेंसी एसपीए के मुताबिक़, क्राउन प्रिंस ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को मदद करने का निर्देश दिया है. एसपीए के मुताबिक़, यह फ़ैसला क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की बातचीत के बाद लिया गया है.”

यह कोई पहली बार नहीं है जब सऊदी अरब पाकिस्तान को मुश्किल से निकालने के लिए सामने आया है. अतीत में सऊदी अरब ऐसा कई बार कर चुका है.

पिछले साल ही सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तेल के लिए दी जाने वाली वित्तीय राहत को दोगुना करने की घोषणा की थी. इसके अलावा 4.2 अरब डॉलर के चल रहे लोन को चुकाने की तारीख़ आगे बढ़ा दी थी. सऊदी अरब ने पिछले क़र्ज़ समझौते के तहत दिसंबर 2021 में पाकिस्तान स्टेट बैंक में तीन अरब डॉलर जमा कराए थे.

2021 के अक्टूबर में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को 4.2 अरब डॉलर की आर्थिक मदद दी थी. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के सऊदी दौरे के दौरान इस मदद की घोषणा की गई थी. ये मदद सस्ते क़र्ज़ और उधार तेल के रूप में थी.

पाकिस्तान की दुश्वारी
पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार एक महीने का आयात बिल भरने भर बचा है
पाकिस्तान पर डिफ़ॉल्ट होने का ख़तरा मंडरा रहा था, लेकिन सऊदी एक बार फिर से बचाने जा रहा है
सऊदी अरब और पाकिस्तान दोनों इस्लामिक देश हैं, लेकिन रिश्ते आपसी ज़रूरतों पर ज़्यादा टिके हैं
पाकिस्तान के आर्मी प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने सोमवार को सऊदी क्राउन प्रिंस से मुलाक़ात की थी
इस मुलाक़ात के बाद ही सऊदी क्राउन प्रिंस ने पाकिस्तान के लिए अहम घोषणा की है

तब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने सऊदी का शुक्रिया अदा करते हुए कहा था, ”पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक को तीन अरब डॉलर देने और तेल के लिए 1.2 अरब डॉलर की मदद के लिए हम क्राउन प्रिंस के प्रति आभार व्यक्त करते हैं. सऊदी अरब हर मुश्किल वक़्त में पाकिस्तान के साथ खड़ा रहा है.”

शहबाज़ शरीफ़ पिछले साल अप्रैल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने हैं और तब से दो बार सऊदी अरब जा चुके हैं.

जनरल मुनीर के पास भी नवंबर महीने में ही पाकिस्तानी सेना की कमान आई थी और उन्होंने भी डेढ़ महीने के भीतर ही पहला दौरा सऊदी अरब का किया.

कहा जाता है कि सऊदी अरब पाकिस्तान में राजनीतिक नेतृत्व से ज़्यादा वहाँ की फ़ौज की सुनता है और जनरल मुनीर के जाने के बाद क्राउन प्रिंस की यह घोषणा इसे और बल देती है.

2018 में प्रधानमंत्री बनने के बाद इमरान ख़ान ने भी पहला दौरा सऊदी अरब का ही किया था और तब भी पाकिस्तान को आर्थिक मदद की ही ज़रूरत थी.

इमरान ख़ान जब प्रधानमंत्री नहीं बने थे तब उन्होंने पाकिस्तान की सऊदी और अमेरिका पर बढ़ती निर्भरता को शर्मनाक बताया था. इमरान ख़ान की पार्टी तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) ने 20 सितंबर, 2014 को अपने आधिकारिक अकाउंट से इमरान ख़ान का एक बयान ट्वीट किया था.

इस ट्वीट में इमरान ख़ान ने कहा था, ”यह बेहद शर्मनाक है कि हम सऊदी और अमेरिका मदद के लिए जाते हैं.”

सऊदी अरब पाकिस्तान को हर बार क्यों बचाता है?
सुन्नी बहुल देश सऊदी अरब और शिया बहुल ईरान के बीच अरब दुनिया में वर्चस्व को लेकर प्रतिद्वंदिता रही है. ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते शत्रुता भरे हैं. दोनों ही देश यमन में एक प्रॉक्सी युद्ध भी लड़ रहे हैं.

कई विश्लेषक ये मानते हैं कि सऊदी अरब ज़रूरत पड़ने पर पाकिस्तान से सैन्य सहयोग की उम्मीद रखता है. पाकिस्तान इस्लामिक दुनिया में एकमात्र परमाणु शक्ति संपन्न देश है.

ऐसा माना जाता है कि ज़रूरत पड़ने पर पाकिस्तान सऊदी अरब को परमाणु हथियार भी मुहैया करा सकता है. पाकिस्तान सऊदी अरब और शाही परिवार की सुरक्षा के लिए काफ़ी अहम माना जाता है.

अक्टूबर 2019 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने सऊदी अरब के दौरे पर कहा था कि उनका मुल्क सऊदी अरब की संप्रभुता की सुरक्षा के लिए किसी भी सूरत में खड़ा रहेगा.

इमरान ख़ान ने कहा था कि दुनि

या का रुख़ भले ही जो भी हो पाकिस्तान सऊदी अरब के साथ खड़ा रहेगा. पाकिस्तान सऊदी अरब की सेना को भी प्रशिक्षण देता है. एक अनुमान के मुताबिक़, सऊदी अरब में पाकिस्तान के 65 हज़ार सैनिक हैं.

फ़्रांस में रह रहे पाकिस्तान के निर्वासित अवॉर्ड विनिंग पत्रकार ताहा सिद्दीक़ी ने अल-जज़ीरा में 16 फ़रवरी 2019 को प्रकाशित एक लेख में कहा था कि सऊदी आर्थिक पैकेज और निवेश के वादों के ज़रिए आर्थिक रूप से तंगहाल पाकिस्तानी सरकार की वफ़ादारी ख़रीदने की कोशिश करता है और अपने हिसाब से पाकिस्तानी सीमाओं पर नीतियां बनवाता है. ईरान पाकिस्तान का पड़ोसी मुल्क है.

ताहा सिद्दीक़ी ने लिखा था, ”दोनों देशों के संबंधों में सऊदी का क़र्ज़ देना कोई नई बात नहीं है. इस्लामाबाद सऊदी के पैसे और अमेरिकी नीति के कारण रियाद के हमेशा क़रीब रहा है. जब ज़िआ-उल-हक़ ने वामपंथी विचारधारा की तरफ़ झुकाव रखने वाले ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को 1977 में सत्ता से बेदख़ल किया तब यह रिश्ता उभरकर सामने आया. ऐसा अमेरिका के क़रीब आने के लिए भी किया गया.”

सऊदी की रणनीति
1970 के दशक में जब तेल की क़ीमतों में उछाल आया तो सऊदी अरब की जेबें भरने लगीं. उसके पास ज़रूरत से कहीं अधिक पैसा आ गया. विश्लेषक मानते हैं कि इसी पैसे के दम पर सऊदी अरब ने अरब और मुस्लिम वर्ल्ड में चेकबुक डिप्लोमेसी को आगे बढ़ाया. देशों क समर्थन हासिल करने के लिए सऊदी अरब ने अपने पैसों का ख़ूब इस्तेमाल किया.

सऊदी अरब ने पाकिस्तान को सिर्फ़ क़र्ज़ ही नहीं दिया बल्कि धार्मिक आधार पर भी मदद दी. पाकिस्तान की मस्जिदों और मदरसों को सऊदी अरब से चैरिटी भी मिली.

ताहा सिद्दीक़ी ने लिखा है, ”सऊदी की मदद पाकिस्तान में कई तरह से आई. इनमें सैन्य और नागरिक मदद के रूप में तो थी ही, लेकिन धार्मिक चीज़ों के लिए भी थी. ज़िया-उल-हक़ की सरकार ने मस्जिदों और मदरसों में भी सऊदी चैरिटी की इजाज़त दी.

यह मदद शिया विरोधी और रूढ़िवादी इस्लाम के बढ़ावे के तौर पर आई. रियाद पर पाकिस्तान में सुन्नी अतिवाद को बढ़ावा देने के भी आरोप लगते हैं. इससे शिया मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा भी बढ़ी. ईरान में इसी तरह के हमले कराने के आरोप लगे.”

अमेरिका सऊदी अरब का मित्र देश है. पाकिस्तान अमेरिका के लिए भी अहम रहा है. फ़रवरी 1979 में हुई ईरान क्रांति और सोवियत यूनियन का अफ़ग़ानिस्तान पर हमला ऐसी दो घटनाएं थीं जिन्होंने अमेरिकी विदेश नीति के लिए पाकिस्तान को अहम बना दिया.

अमेरिका पश्चिमी एशिया में सोवियत संघ और ईरान के प्रभाव को कम करने के लिए वहां एक मोर्चा बनाना चाहता था. इन्हीं परिस्थितियों ने पाकिस्तान को अमेरिका के लिए ख़ास बना दिया और उसे सऊदी अरब को भी और क़रीब पहुँचा दिया.

हालांकि इमरान ख़ान की सरकार के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों में स्पष्ट कड़वाहट दिखाई दी. विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान की नई सरकार अमेरिका से रिश्तों को पटरी पर लाने में कोई परहेज़ नहीं करेगी.

वहीं हाल के सालों में सऊदी अरब और अमेरिका के बीच दूरियां भी नज़र आई हैं. यमन युद्ध भी सऊदी और अमेरिका के बीच रिश्तों में कड़वाहट की एक वजह है. सऊदी अरब को लगता है कि अमेरिका ने उसकी मदद नहीं की है. जानकार मानते हैं कि मध्य पूर्व के मौजूदा हालात को देखते हुए सऊदी अरब सामरिक रूप से और भी ज़्यादा मज़बूत बनना चाहता है और वो भी अमेरिका से बनती जा रही दूरी के बावजूद.

सऊदी अरब के निवेश की घोषणा का अमल कितना हुआ?
इमरान ख़ान की कैबिनेट में मंत्री रहे और बोर्ड ऑफ़ इन्वेस्टमेंट (बीओआई) के एक पूर्व सदस्य हारून शरीफ़ ने जून 2022 में कहा था सऊदी अरब ने वादा करने के बावजूद पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर का निवेश, शर्तें पूरी नहीं होने के कारण नहीं किया.

उन्होंने कहा था कि सऊदी अरब ने निवेश के लिए एक शर्त रखी थी जो पूरी नहीं हो सकी.

हारून शरीफ़ ने इस्लामाबाद पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था कि सऊदी के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर का निवेश करने के इच्छुक थे, लेकिन इसके लिए उनकी शर्त थी कि इस निवेश को राजनेताओं और ब्यूरोक्रेसी से बचाना होगा.

Haroon Sharif
@SharifHaroon

Timing is name of the game. Had Pakistan fast tracked Saudi and other investment commitments instead of leaving these to bureaucracy, our bargains position with international institutions would have been different. My take

हारून शरीफ़ ने अपने बयान को स्पष्ट करते हुए मंगलवार को एक निजी न्यूज़ चैनल से बात करते हुए कहा था, ”सऊदी के क्राउन प्रिंस पाकिस्तान को अच्छी तरह से समझते हैं, इसलिए उन्होंने कहा था कि इसको फ़ास्ट ट्रैक करने के लिए ब्यूरोक्रेसी से निकालना होगा ताकि इसे ज़मीन पर उतारा जा सके.

हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर के निवेश के लिए मुल्क में व्यवस्था बनानी होगी. सऊदी अरब हमसे यही कह रहा था. हमने सऊदी के निवेश को पूरी तरह से मिस कर दिया है. अगर मिस ना किया होता तो ऐसी स्थिति नहीं होती.”

हारून शरीफ़ ने कहा था कि साल 2019 में एक बैठक के दौरान एमबीएस ने कहा था कि सऊदी सरकार पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर के निवेश का वादा कर रही है, लेकिन जब तक आप इसे राजनीति और ब्यूरोक्रेसी से बचाएंगे नहीं, ये निवेश नहीं हो पाएगा.

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन-सलमान फ़रवरी 2019 में पाकिस्तान के दौरे पर गए थे. इसी दौरे में उन्होंने पाकिस्तान में पेट्रोकेमिकल्स, ऊर्जा और खनन परियोजनाओं में 20 अरब डॉलर के निवेश की घोषणा की थी. इसके अलावा सलमान ने सऊदी की जेलों में बंद 2,000 पाकिस्तानी नागरिकों के तत्काल रिहाई की घोषणा भी की थी.

Ahmed Quraishi
@_AhmedQuraishi

#SaudiArabia was ready to invest $20 billion in #Pakistan in 2019. All #Riyadh requested was a good investment climate. But then PM #ImranKhan Govt was distracted by populist priorities like a ‘Islamophobia TV’.

In the end, neither one happened.

क्राउन प्रिंस की इस घोषणा पर इमरान ख़ान ने कहा था कि ऐसा कर उन्होंने पाकिस्तानियों का दिल जीत लिया. इमरान ख़ान भी प्रोटोकॉल तोड़ एमबीएस को ख़ुद ही गाड़ी चला अपने आवास तक लाए थे.

एमबीएस का पाकिस्तान दौरे में जैसा स्वागत हुआ वो किसी अंतरराष्ट्रीय स्टेट्समैन से भी आगे का था. इमरान ख़ान ने कहा था कि 25 लाख पाकिस्तानी नागरिक सऊदी अरब में काम करते हैं. उन्होंने कहा था कि ये लोग अपने परिवार को छोड़कर मेहनत मज़दूरी करने के लिए सऊदी अरब जाते हैं और लंबे वक़्त तक अपने परिवारों से दूर रहते हैं.

हारून शरीफ़ ने इस्लामाबाद पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के कार्यक्रम के दौरान कहा कि कोई भी अर्थव्यवस्था तब बढ़ती है, जब जीडीपी के अनुपात में निवेश भी बढ़ता है, लेकिन पाकिस्तान के मामले में ऐसा नहीं है.

हारून शरीफ़ के बयान को ट्वीट करते हुए पाकिस्तान के पत्रकार अहमद क़ुरैशी ने लिखा है, ”सऊदी अरब 2019 में पाकिस्तान में 20 अरब डॉलर के निवेश के लिए तैयार था. सऊदी ने निवेश के लिए अच्छे माहौल की गुज़ारिश की थी, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने लोकप्रिय प्राथमिकताओं को चुना.

वह इस्लामोफ़ोबिया टीवी लाने की बात करने लगे. सऊदी अरब के दबदबे वाले इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी को चुनौती देने लगे, फ़्रांस और ईयू से टकराने लगे और अमेरिका, इसराइल, यूएई के गठजोड़ से मुक़ाबले की बात करने लगे थे. इसका नतीजा यह हुआ कि निवेश आख़िरकार नहीं आया.”

पाकिस्तान का संकट सऊदी अरब ने फ़िलहाल टाल दिया है, लेकिन यह दुश्वारी ख़त्म नहीं हुई है. वर्ल्ड बैंक के अनुसार, पाकिस्तान पर कुल विदेशी क़र्ज़ 2021 में 130.433 अरब डॉलर था. यह क़र्ज़ साल दर साल बढ़ता जा रहा है क्योंकि व्यापार घाटा संतुलित होने का नाम नहीं ले रहा है.