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तब आप भी तरसोगे बिटिया की फ़रमाइश पूरी करने को…

हिंदी साहित्य दर्पण ·
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पाँच साल की बेटी बाज़ार में गोल गप्पे खाने के लिए मचल गई। 🍥🌏 “किस भाव से दिए भाई?” पापा नें सवाल् किया। “10 रूपये के 8 दिए हैं। गोल गप्पे वाले ने जवाब दिया…… पापा को मालूम नहीं था गोलगप्पे इतने महँगे हो गये है….जब वे खाया करते थे तब तो एक रुपये के 10 मिला करते थे। . पापा ने जेब मे हाथ डाला 15 रुपये बचे थे। बाकी रुपये घर की जरूरत का सामान लेने में खर्च हो गए थे। उनका गांव शहर से दूर है 10 रुपये तो बस किराए में लग जाने है। “नहीं भई 5 रुपये में 10 दो तो ठीक है वरना नही लेने।

यह सुनकर बेटी नें मुँह फुला लिया…. “अरे अब चलो भी, नहीं लेने इतने महँगे। पापा के माथे पर लकीरें उभर आयीं….“अरे खा लेने दो ना साहब…अभी आपके घर में है तो आपसे लाड़ भी कर सकती है…कल को पराये घर चली गयी तो पता नहीं ऐसे मचल पायेगी या नहीं. …तब आप भी तरसोगे बिटिया की फरमाइश पूरी करने को…गोलगप्पे वाले के शब्द थे तो चुभने वाले पर उन्हें सुनकर पापा को अपनी बड़ी बेटी की याद आ गयी….

जिसकी शादी उसने तीन साल पहले
एक खाते -पीते पढ़े लिखे परिवार में की थी……
उन्होंने पहले साल से ही उसे छोटी
छोटी बातों पर सताना शुरू कर दिया था…..
दो साल तक वह मुट्ठी भरभर के
रुपये उनके मुँह में ठूँसता रहा पर
उनका पेट बढ़ता ही चला गया ….
और अंत में एक दिन सीढियों से
गिर कर बेटी की मौत की खबर
ही मायके पहुँची….
आज वह छटपटाता है
कि उसकी वह बेटी फिर से
उसके पास लौट आये..?
और वह चुन चुन कर उसकी
सारी अधूरी इच्छाएँ पूरी कर दे…
पर वह अच्छी तरह जानता है
कि अब यह असंभव है.
“दे दूँ क्या बाबूजी
गोलगप्पे वाले की आवाज से
पापा की तंद्रा टूटी…
“रुको भाई दो मिनिट ….

पापा पास ही पंसारी की दुकान थी उस पर गए जहाँ से जरूरत का सामान खरीदा था। खरीदी गई पाँच किलो चीनी में से एक किलो चीनी वापस की तो 40 रुपये जेब मे बढ़ गए।

फिर ठेले पर आकर पापा ने डबडबायी आँखें
पोंछते हुए कहा
अब खिलादे भाई। हाँ तीखा जरा कम डालना। मेरी बिटिया बहुत नाजुक है….
सुनकर पाँच वर्ष की गुड़िया जैसी बेटी की आंखों में चमक आ गई और पापा का हाथ कस कर पकड़ लिया।
जब तक बेटी हमारे घर है
उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करे,…👏👏
क्या पता आगे कोई इच्छा
पूरी हो पाये या ना हो पाये ।
ये बेटियां भी कितनी अजीब होती हैं
जब ससुराल में होती हैं
तब माइके जाने को तरसती हैं….
सोचती हैं
कि घर जाकर माँ को ये बताऊँगी
पापा से ये मांगूंगी
बहिन से ये कहूँगी
भाई को सबक सिखाऊंगी
और मौज मस्ती करुँगी…
लेकिन
जब सच में मायके जाती हैं तो
एकदम शांत हो जाती है
किसी से कुछ भी नहीं बोलती….
बस माँ बाप भाई बहन से गले मिलती है।
बहुत बहुत खुश होती है।
भूल जाती है
कुछ पल के लिए पति ससुराल…..
क्योंकि
एक अनोखा प्यार होता है मायके में
एक अजीब कशिश होती है मायके में…..
ससुराल में कितना भी प्यार मिले…..
माँ बाप की एक मुस्कान को
तरसती है ये बेटियां….
ससुराल में कितना भी रोएँ
पर मायके में एक भी आंसूं नहीं
बहाती ये बेटियां….
क्योंकि
बेटियों का सिर्फ एक ही आंसू माँ
बाप भाई बहन को हिला देता है
रुला देता है…..
कितनी अजीब है ये बेटियां
कितनी नटखट है ये बेटियां
भगवान की अनमोल देंन हैं
ये बेटियां ……
हो सके तो
बेटियों को बहुत प्यार दें
उन्हें कभी भी न रुलाये
क्योंकि ये अनमोल बेटी दो
परिवार जोड़ती है
दो रिश्तों को साथ लाती है।
अपने प्यार और मुस्कान से।
हम चाहते हैं कि
सभी बेटियां खुश रहें
हमेशा भले ही हो वो
मायके में या ससुराल में।
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खुशकिस्मत है वो
जो बेटी के बाप हैं,
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Raj singhaniya✍️🌻


रत्नाकर भाजपा
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#जलकुंभी
आपने अपने आस पास भी गौर किया होगा लेकिन फिर भी एक जागरूक हिंदुस्तानी होने के नाते आपको बताता हूँ….जलकुंभी एक ऐसा पौधा होता है जो पहले किसी तालाब पोखर मे दिखाई देता है।

फिर धीरे धीरे कुछ हफ्तों में तालाब के सब कोनों में एक-दो पौधे तैरते दिखाई देने लगते हैं,बड़े ही सुंदर दिखते है।
फिर अचानक कुछ महीने या सालों में पानी दिखाई देना बंद हो जाता है… सारे तालाब के ऊपर सिर्फ हरा हरा ही दिखाई देता है….

पानी की आक्सीजन खत्म होने लगती है…. अंदर का जीवन, मछलियां मरने लगती हैं।

धीरे धीरे पानी सड़ने लगता है । सड़ांध किलोमीटर दूर से महसूस होनी शुरू हो जाती है। और बाकी प्राणियों का जीवन मुस्किल होना शुरू हो जाता है।

जिस जिस तालाब में ये जलकुंभी पहुंचती है, सब खत्म कर देती है।
इलाज…
अगर शुरू में ही एक दो पौधों को बाहर निकाल कर फेंक दिया जाए तो वो धूप से सूख जाएंगे।
अगर पूरा तालाब भर गया हो तो सारी जलकुंभी को बाहर निकाल कर सुखाया जाता है।
और सूखने के बाद आग लगा कर बीज तक नाश कर दिया जाता है…
ताकि दुबारा ना पनप सके….
हो सकता है आपके घर के पास के तालाब में एक दो पौधे दिखाई दें।
शुरू में आपको ये सुंदर दिखाई देंगे… लेकिन अगर आप अभी इलाज नहीं करेंगे तो धीरे धीरे ये पूरे तालाब पर कब्जा कर लेंगे…
फिर तालाब के बाकी जीवों के पास दो में से एक रास्ता चुनने को बचता है या तो वो उनके हिसाब से जिएं या अपना अस्तित्व ही खत्म करवा लें।
तीसरा रास्ता आपको ही तय करना है।
बाकी मर्जी है आपकी,
क्यूंकि तालाब है आपका।
आप समझ तो गये ही होंगे, इशारा काफी है।