धर्म

तसवूफ़ एक बदनाम लफ़्ज़ होकर रह गया है….तसवूफ़ क्या है? : Part-2

Razi Chishti
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कुछ लोगों का यह कहना है कि इस्लाम में तसवूफ़ के लिए कोई जगह नहीं है. उनका कहना बिलकुल सही है. तसवूफ़ इस्लाम के मक़ाम की चीज़ ही नहीं है. यहाँ तक कि आयत 49:14 मज़कूर से वाज़ह है कि इस्लाम और ईमान यह दोनों अलग हैं. हदीस जिबराईल जिसका ज़िक्र सही बुखारी और सही मुस्लिम दोनों में है उसमें बयान है कि;

“नबी करीम saw के पास एक शख़्स आया और पूछा कि ऐ अल्लाह के रसूल ईमान क्या है? नबी करीम saw ने फ़रमाया तुम अल्लाह, उसके फ़रिश्तों, उसकी किताब, उससे मुलाक़ात और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और आख़िरी बार ज़िंदा होकर उठने पर भी ईमान ले आओ. उसने पूछा ऐ अल्लाह के रसूल इस्लाम क्या है? नबी करीम saw ने फ़रमाया कि इस्लाम यह है कि अल्लाह कि इबादत करो और उसके साथ किसी चीज़ को शरीक न ठहराओ, नमाज़ की पाबंदी करो, ज़कात अदा करो और रमज़ान के रोज़े रखो. उसने फिर पूछा, ऐ अल्लाह के रसूल एहसान क्या है? नबी करीम saw ने फ़रमाया अल्लाह की इबादत इस तरह करो गोया तुम उसको देख रहे हो और अगर तुम उसको नहीं देख रहे हो तो वह तुमको यक़ीनन देख रहा है. जब वह शख़्स चले गए तो नबी करीम saw ने फ़रमाया कि ऐ उमर यह जिबराईल थे जो लोगों को उनका दीन सीखाने आए थे”(सही मुस्लिम हदीस नंबर 97). देखें! दीन सिर्फ़ इस्लाम नहीं है बल्कि और चीजों के साथ साथ ईमान और एहसान भी दीन में शामिल हैं. (यह हदीस बुख़ारी शरीफ़ में भी है)

हदीस मज़कूर में इस्लाम, ईमान और एहसान का ज़िक्र है. इन तीनों में एहसान यह है कि अल्लाह swt की इबादत ऐसे करनी है गोया हम उसको देख रहे हैं. देख कर इबादत करने का ज़िक्र इस्लाम के मक़ाम पर तो नहीं है. हम जानते हैं कि अल्लाह swt जिस्म से पाक है इसलिए ‘‘गोया तुम उसको देख रहे हो,’’ में क्या देखना है यही समझने का नाम तसवूफ़ है. ईसका ज़िक्र कुरान में भी है कि “जो इस जहान में अंधा रहेगा यआनी नहीं देख पाएगा वो आख़रत में भी नहीं देख पाएगा”(17:72). सूरह ज़ारीयात में भी फ़रमाया है कि अल्लाह कि निशानियाँ तुम्हारे अनफ़ास में जलवागर हैं क्या तुम उनको नहीं देखते(51:8) नबी करीम saw ने भी फ़रमाया है कि “अल्लाह इनके पास क़यामत के दिन उसी शक्ल में आयेगा जिस शक्ल को वो पहचानते होंगे”(सही बुखारी जिल्द 3 पेज 871 नंबर 2287). ज़ाहिर है कि अल्लाह swt जिस्म से पाक है तो “गोया तुम उसको देख रहे हो” से क्या मुराद है? उसको देखना चश्मे ज़ाहिर से तो मुमकिन ही नहीं है क्यों कि कुरान फ़रमा रहा है कि उसको आँखें नहीं पासकतीं(6:103). अब कैसे उसको देखा जाए यह सबक़ तो तसवूफ़ में ही मिलता है.
इस्लाम शुरुआती मक़ाम है. यहाँ पर देख कर इबादत करने का सवाल ही नहीं है यहाँ तो सिर्फ फर्ज़ की अदायेगी है और शिर्क से बचना है. इस तरह यह कहना सही है कि इस्लाम में तसवूफ़ नहीं है लेकिन हदीस मजकूर से वाज़ह है कि तसवूफ़ भी दीन में ज़रूर है. —–to be continued.