धर्म

तसवूफ़ एक बदनाम लफ़्ज़ होकर रह गया है….तसवूफ़ क्या है? : Part-6

 

Razi Chishti
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नबी करीम saw फ़रमाते हैं कि “जिसने पहचाना अपनी ज़ात(नफ़्स) को उसने पहचाना अपने रब को” हज़रत अबू बक़र ra ने फ़रमाया है कि “पाक है वो ज़ात जिसने अपनी पचान का ज़रिया इंसान के सिवा कुछ बनाया ही नहीं”. इसी पहचान की बिनाअ पर नेजाते ख़ास मिलेगी. अल्लाह swt ने फ़रमाया कि “जो इस जहान में अंधा रहेगा वह आख़रत में भी अंधा रहेगा और वो नेजात से दूर है”(17:72). नबी करीम saw ने भी फ़रमाया है कि क़यामत के दिन अल्लाह swt लोगों के सामने उसी सूरत में आएगा जिसमें वो उसको पहचानते होंगे.(बुखारी जिल्द 3 पेज 871 न.2287)

ब्यान मज़कूर से वाज़ह है कि अगर क़यामत के दिन दीदारे इलाही की ख़्वाहिश है तो इस जहान में ही उसको पहचानना होगा. हमने इस्लाम को पाँच अरकान तक ही महदूद कर दिया है और पूरे पुए इस्लाम में दाख़िल होने के लिए आगे बढ़े ही नहीं जबकि अल्लाह swt का वादा है कि, “जो मेरी तरफ़ आने की कोशिश करें गे तो हम भी उनको अपनी तरफ का रास्ता दिखायेँ गे(39:69). इस्लाम के पाँच अरकान क़ल्ब को पाक करने लिए हैं. रूह का ज़िक्र होते ही लोग पहलू बदनले लगते हैं. एक बड़े तबक़े का ख्याल है कि तसवूफ़ फ़ासिद व नाक़िस ज़ेहन की पैदावार है. इन की दलील यह है कि तसवूफ़ एक फलसफ़ा है. यह ख़्याल दुरुस्त नहीं है.

फलसफ़ा एक मुदल्लल इल्म है. अगर कोई सच्चा होने का दावा करे तो कुरान भी उससे दलील मांगता है(27:64) लेकिन कुरान फलसफ़ा नहीं है क्योंकि इसमें दानिश व बसीरत है और तसवूफ़ कुरान के इन्हीं रमूज़ व असरार की तरफ़ मुतवज्जह है. सूफ़ी आम तजुर्बे से किसी चीज़ को न रद्द करता है और न ही क़बूल करता है बल्कि वह चीज़ों की हक़ीक़त तक पहुँचना चाहता है. अल्लाह swt का यह फ़रमाना कि वो इंसान की शहरग से भी ज़्यादा क़रीब है, उसकी कुल निशानियाँ इंसान की ज़ात में जलवागर हैं, जिस ने इस जहान में नहीं देखा वह आख़रत में दीदारे इलाही से महरूम रहेगा, अल्लाह ने इंसान को अपनी सूरत और फितरत पर बनाया है, ऐसी और बहुत सारी आयात हैं जिनमें सूफ़ी ग़ोते लगाता है ताकि वो यह जान सके कि हक़ीक़त में वह है कौन? वह ग़ौर व फ़िक्र से सरबसता रमुज़ व असरार तक पहुँचना चाहता है.

ग़फ़लत में डूबे लोग कुरान को इन रमुज़ व असरार से खाली समझते हैं और सिर्फ़ आयात के ज़ाहिरी मआनी को ही सब कुछ समझते हैं. अल्लाह swt ने ऐसे लोगों का ज़िक्र सूरह आलेइमरान में किया है, “यह कुरान आमलोगों के लिए सादा सादा ब्यान है और अहले तक़वा के लिए हिदायत और नसीहत है”(3:138). ज़ाहिर है कि जो लोग कुरान के ज़ाहिरी मआनों के ही मोतक़िद है उनके लिए यह कुरान महज़ एक सादा ब्यान है लेकिन जो अल्लाह swt के परहेज़गार बंदे हैं उनके लिए इसमें नसीहत व हिदायात भी हैं. सूरह आराफ़ में अल्लाह swt ने फ़रमाया है कि, “यह कुरान तुम्हारे परवरदिगार की तरफ़ से दानिश व बसीरत है”(7:203). सूफ़ीयाएकराम के ग़ौर व फ़िक्र का मक़सद इन्हीं दानिश व बसीरत को अपने क़ल्ब पर ज़ाहिर करना है. अल्लाह swt सूरह ज़रियात में फ़रमा रहा है, “मेरी निशानियाँ ज़मीन पर बिखरी पड़ी हैं लोग उनपर से गुज़र जाते हैं मगर उनको दिखाई नहीं देता है. दरअस्ल यह वही लोग हैं जिनको कुरान ने ‘अवामुन्नास’ के गिरोह में रखा है. इन लोगों को कुरान की आयाता के ज़ाहिरी मआनों के सिवा कुछ नज़र ही नहीं आता. ——to be continued