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तेज़ी से बदलते हालात : तुर्की पर पश्चिमी देश कितना निर्भर है : ख़ास रिपोर्ट

यूरोप में उन देशों पर निर्भरता को लेकर बहस चल रही है जिनकी भूरणनीतिक मंशाएं अलग हैं, जैसे कि रूस और चीन. लेकिन तुर्की पर पश्चिम कितना निर्भर है?

तुर्की वैश्विक मंच पर अपेक्षाकृत बड़ी भूमिका का तलबगार रहता आया है. और उसके इस इरादे को हवा दे रहे हैं अपने पश्चिमी भागीदारों के प्रति उसके आक्रामक और राष्ट्रवादी होते सुर. यूरोपीय संघ में सदस्यता का उम्मीदवार, तुर्की आज वैसा नहीं है जैसा कि पश्चिम चाहता है. वो फिर भी वैश्विक राजनीति में एक अहम खिलाड़ी है.

यहां उन वजहों का जिक्र किया जा रहा है जिनसे पता चलता है कि पश्चिमी देश तुर्की पर क्यों निर्भर हैं.

रूस यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता की पहल करता तुर्की

रूस और यूक्रेन के लिए मध्यस्थ
यूक्रेन पर रूसी लड़ाई का मतलब अंतरराष्ट्रीय बिरादरी के लिए बहुत कुछ था लेकिन तुर्की को इससे एक कूटनीतिक अवसर हासिल हो गया. हमले के शुरुआती दिनों में ही तुर्की रूस और यूक्रेन के बीच एक अनिवार्य मध्यस्थ के रूप में उभर आया था क्योंकि पश्चिमी देश रूस से बात करने को बहुत उत्सुक नहीं थे. तुर्की के रूस और यूक्रेन दोनो से अच्छे रिश्ते हैं- ये बात इन दिनों दुर्लभ ही है.

तुर्की ने प्रमुख समस्याओं को हल करने के लिए एक गलियारे या चैनल के रूप में काम करना शुरू किया. जैसे कि यूक्रेनी बंदरगाहों से अन्न निर्यात. युद्ध से पहले यूक्रेन गेहूं, मक्का, जौ और सूरजमुखी के तेल के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक था. रूस और यूक्रेन के बीच जुलाई में तुर्की और संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में निर्यात समझौता इस्तांबुल में हुआ.

इसके अलावा तुर्की आज भी दोनों पक्षों के बीच भविष्य में किसी संभावित शांति वार्ता का अकेला मुफीद ठिकाना माना जाता है.

नाटो सदस्य, जिसकी हरी झंडी हर हाल में जरूरी है
तुर्की 1952 से नाटो का सदस्य रहा है. अमेरिका के बाद नाटो गठबंधन में दूसरी सबसे बड़ी सेना उसी की है. वो एक दक्षिणपूर्वी किनारे पर स्थित है लिहाजा ट्रांसअटलांटिक गठबंधन को प्रमुख रूप से सुरक्षा मुहैया कराता है.

फिलहाल स्वीडन और फिनलैंड तुर्की को अपनी नाटो सदस्यता की मंजूरी देने के लिए मना रहे हैं.

पिछले हफ्ते स्वीडन के नये प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टरसन ने तुर्की राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोगान को चिट्ठी लिखकर इस मुद्दे पर एक बैठक बुलाने की इल्तजा की थी. दोनों पक्ष अब तुर्की में मिलने वाले हैं. तुर्की का आरोप है कि स्वीडन और फिनलैंड, कुर्दिस्तान वर्कर्स पार्टी, पीकेके के सुरक्षित ठिकाने बने हुए हैं. तुर्की के अलावा यूरोपीय संघ और अमेरिका में हथियारबंद पीकेके एक आतंकी संगठन के रूप में दर्ज है.

ड्रोन हथियारों के मामले में काफी आगे निकला तुर्की

सस्ती सुरक्षा का निर्माता
तुर्की के रक्षा उद्योग की बढ़ती अहमियत ने उसे एक अहम खिलाड़ी बना दिया है जो सीधे पश्चिमी हितों पर असर डालता है. पिछले सालों में तुर्की में बने बेरेक्टर टीबी-2 हथियारबंद ड्रोन काफी असरदार साबित हुए हैं. जर्मन सेना के थिंक टैंक बाक्स की 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक तुर्की के ड्रोनों ने नागोर्नो-काराबाख संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई थी.

यूक्रेन की लड़ाई में भी वो असरदार रहे हैं. रूसी सेना से अपने इलाकों की हिफाजत के लिए यूक्रेनी सेना कथित तौर पर इन ड्रोनों की मदद लेती आ रही है. पिछले महीने यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने बेरेक्टर ड्रोन की निर्माता कंपनी बेकर के मुख्य कार्याधिकारी हालुक बेरकटार को मदद का आभार जताते हुए प्रथम श्रेणी के ऑर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया था.

जब यूक्रेनी लोग अपनी सेनाओं के लिए नये ड्रोन खरीदने के लिए फंड जुटा रहे थे तो जवाब में बेकर ने “देशभक्त यूक्रेनियों को अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए” ड्रोन दान किए थे.

ड्रोनों की कम लागत तुर्की को उन देशों का एक खास सहयोगी बनाती है जो ऊंची कीमत वाले सैन्य उपकरण नहीं खरीद सकते हैं या महंगे शोध नहीं कर सकते हैं बल्कि विकल्पों की तलाश करते हैं. अंतरराष्ट्रीय और सुरक्षा मामलों के जर्मन संस्थान (एसडब्लूपी) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, “अफ्रीका में हथियारों की बिक्री आसमान छू रही है और तुर्की, अफ्रीका में हथियारों के एक बड़े सप्लाईकर्ता के रूप में उभर आया है.”\

जर्मनी में बड़ा तुर्क समुदाय

यूरोप की प्रवास असहायता में मुख्य किरदार
दक्षिण और पूरब के कई देशों की सीमाएं तुर्की से लगी हैं. ये तथ्य तुर्की को न सिर्फ अपनी रक्षा नीति की क्षमताओं से लैस करता है बल्कि यूरोपीय संघ की अपनी प्रवास नीति से जुड़ी असहायता या कमजोरी के लिहाज से भी उसका महत्व बढ़ जाता है. एर्दोवान ब्रसेल्स, जर्मनी और दूसरे यूरोपीय देशों को “अपने दरवाजे खोलने” को लेकर लिए कई बार धमकाने से भी नहीं हिचके हैं “जिसका तकनीकी तौर पर मतलब है शरणार्थियों को यूरोप तक खुली पहुंच.”

तुर्की की धमकियां कारगर रही और यूरोपीय संघ और तुर्की के बीच 2016 में एक शरणार्थी समझौता हुआ. जिसकी एवज तुर्की को 6 अरब यूरो का भुगतान मिलेगा. बदले में तुर्की अपने इलाके में शरणार्थियों को समायोजित करेगा.

रिफ्यूजियों को यूरोप पहुंचने से रोकने में भी अंकारा की अहम भूमिका

जर्मनी का तुर्क प्रसार
“जर्मनी में रहने वाले 60 फीसदी से ज्यादा तुर्कों ने एर्दोवान को वोट दिया.” 2018 में तुर्की के आम चुनावों के बाद कई जर्मन अखबारों की हेडलाइन यही थी. वास्तव में जर्मनी में बसे तुर्की समुदाय का एक उल्लेखनीय हिस्सा तुर्की राज्य से लगाव और जुड़ाव महसूस करता है.

इस मुद्दे का दूसरा हिस्सा है घरेलू सुरक्षाः संविधान की रक्षा के संघीय कार्यालय के मुताबिक जर्मन संविधान पर खतरे की तरह मंडराती बहुत सारी उग्रपंथी विचारधाराएं देश में सक्रिय हैं. इस्लामी समूहों के अलावा, धुर राष्ट्रवादी ग्रे वुल्व्स, पीकेके समर्थक कुर्दों और वाम चरमपंथी समूहों पर सरकार निगरानी रखती है.

तुर्की में होने वाली घटनाओं से इन समूहों के बीच बने समीकरणें भी प्रभावित होती हैं. कुछ मामलों में तुर्की राज्य इन समूहों पर प्रत्यक्ष प्रभाव रखता है जैसे कि ग्रे वुल्व्स.

रिपोर्टः बुराक इयुनवेरन

तुर्की के रेयर अर्थ भंडार के दावे पर संदेह क्यों?

तुर्की ने देश में दुर्लभ धातुओं रेयर अर्थ का विशाल भंडार मिलने का दावा किया है. इलेक्ट्रिक कारों और विंड टरबाइन के निर्माण के लिए यह धातुएं काफी महत्वपूर्ण हैं. क्या विशाल भंडार के मिलने से चीन का दबदबा खत्म होगा?

यूरोप रूसी ऊर्जा पर निर्भरता खत्म करने के लिए काफी संघर्ष कर रहा है. इसके लिए जरूरी है कि अक्षय ऊर्जा के स्रोत को बढ़ावा दिया जाए. अक्षय ऊर्जा के स्रोतों को बढ़ावा देने के लिए दुर्लभ धातु रेयर अर्थ की काफी ज्यादा जरूरत होती है. अब तक इस धातु के लिए यूरोप पूरी तरह चीन पर निर्भर था, क्योंकि चीन के पास रेयर अर्थ का सबसे बड़ा भंडार है. हालांकि, अब तुर्की यूरोप की चीन पर निर्भरता को कम कर इस समस्या का हल कर सकता है.

तुर्की की सरकार ने इस महीने रेयर अर्थ एलिमेंट के विशाल भंडार की खोज की घोषणा की है. इसे प्रोसेस करके इलेक्ट्रिक वाहन, विंड टरबाइन, और सौर पैनल बनाए जा सकते हैं. इस भंडार का पता लगाने के लिए तुर्की में पिछले करीब एक दशक से खुदाई की जा रही थी. तुर्की के भू-वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि देश के उत्तर-पश्चिमी शहर एस्कीसेहिर के समीप करीब 694 मिलियन टन रेयर अर्थ धातु मौजूद है. वहीं, चीन के पास 800 मिलियन टन का भंडार है. इस हिसाब से यह चीन के बाद रेयर अर्थ का दूसरा सबसे बड़ा भंडार है.

रेयर अर्थ वास्तव में इतनी दुर्लभ धातु नहीं है जितना इसके बारे में बताया जाता है. इन्हें ‘दुर्लभ’ बताने की वजह है कि यह अन्य धातुओं के साथ मिश्रित अवस्था में रहती हैं और इन्हें अलग करना एक जटिल प्रक्रिया है. इससे चुंबक का निर्माण होता है, जिसका इस्तेमाल व्यावसायिक और सैन्य प्रोद्योगिकी में किया जाता है. लाइटर, लेजर, बैटरी, फाइबर ऑप्टिक केबल, सुपर कंडक्टर जैसी चीजों के निर्माण में भी इनका इस्तेमाल होता है.\

गुणवत्ता को लेकर अड़ा तुर्की

तुर्की का मानना है कि उसके देश में जो भंडार मिला है वह अगले 1,000 साल तक पूरी दुनिया की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. हालांकि, यहां मिले एलिमेंट की गुणवत्ता को लेकर पर्याप्त जानकारी न होने की वजह से कई विश्लेषक असमंजस में हैं.

यूके रिसर्च हाउस हॉलगार्टन एंड कंपनी के प्रिंसिपल और खनन रणनीतिकार क्रिस्टॉफर एक्लेस्टोन ने डीडब्ल्यू को बताया, “अगर वे इतने बड़े विशाल भंडार का दावा कर रहे हैं, तो उन्होंने काफी ज्यादा खुदाई की होगी और उन्हें पता होगा कि धातु की गुणवत्ता कैसी है. आखिर पूरी जानकारी कहां है?”

ग्लोबल कंसल्टेंसी फर्म वुड मैकेन्सी में रेयर अर्थ के शोध निदेशक डेविड मेरिमैन ने डीडब्ल्यू को बताया कि तुर्की में जो भंडार मिला है उसमें रेयर अर्थ एलिमेंट लैंथेनम और सीरियम ज्यादा होने की संभावना है जो ‘वर्तमान समय में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं’ और ‘उच्च गुणवत्ता वाले चुंबक के निर्माण के लिए दुर्लभ मांग’ में शामिल नहीं हैं.

ब्रिटिश भूविज्ञानी कैथरीन गुडइनफ ने हाल ही में वायर्ड पत्रिका को बताया कि तुर्की के भंडार में लगभग 14 मिलियन टन रेयर अर्थ ऑक्साइड होने का अनुमान है, जो चीन के अनुमानित भंडार के एक तिहाई से भी कम है.

चीन के दबदबे से यूरोपीय संघ और अमेरिका को खतरा

दुनिया में रेयर अर्थ मटीरियल की जितनी मांग है उसके 80 फीसदी हिस्से की आपूर्ति चीन करता है. यूरोपीय संघ में रेयर अर्थ चुंबक का 98 फीसदी हिस्सा चीन से आयात किया जाता है, जो प्रति वर्ष करीब 16,000 टन है. इसके पीछे की बड़ी वजह यह है कि चीन के सप्लाई चेन में शामिल सबसे बड़ी कंपनियों पर सरकार का मालिकाना हक है और उन्हें काफी ज्यादा सब्सिडी मिलती है. इससे, एशिया में बनने वाले चुंबक की कीमत यूरोप की तुलना में करीब एक तिहाई कम होती है.

चीन के इस एकाधिकार को लेकर बेल्जियम, जर्मनी, और अमेरिका ने चिंता जताई है. उनका कहना है कि कारोबार और भू-राजनीतिक विवाद के दौरान चीन रेयर अर्थ का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए कर सकता है. 2010 में चीन ने सीमा विवाद को लेकर जापान को रेयर अर्थ निर्यात करने पर रोक लगा दी थी.

अमेरिकी वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने इस सप्ताह कहा कि उनका देश चीनी रेयर अर्थ पर अपनी ‘बहुत अधिक निर्भरता’ को कम करने का प्रयास कर रहा है. उन्होंने आरोप लगाया कि चीन ने ‘अपनी बात न मानने वाले कई देशों पर दबाव बनाया’.

दो साल पहले, ईयू ने यूरोपियन रॉ मटीरियल अलायंस बनाया था. इसका मकसद यह था कि रेयर अर्थ सहित अन्य धातुओं के कच्चे माल के आयात के लिए ईयू के सदस्य देश किसी एक देश पर निर्भर न रहें और वे तीसरी दुनिया के अलग-अलग देशों से आयात करें. वहीं, कोरोना महामारी से उत्पन्न हालात को देखते हुए क्षेत्रीय आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने की कोशिशें तेज कर दी गई हैं.

विशाल भंडार को लेकर संदेह

तुर्की रेयर अर्थ के भंडार को लेकर जितना दावा कर रहा है अगर उतना वाकई में है, तो इससे राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान का कद नाटो सहयोगियों के बीच पहले की तुलना में बढ़ जाएगा. साथ ही, इससे तुर्की की कमजोर अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी.

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब एर्दोवान की घोषणा को संदेह के नजरिए से देखा गया है. दो साल पहले, तुर्की ने काले सागर में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार की खोज की घोषणा की थी. इसे लेकर एर्दोवान ने कहा था कि इससे ऊर्जा के आयात पर होने वाले खर्च में काफी कमी आएगी. विश्लेषकों को संदेह है कि क्या यह भंडार लगभग 320 बिलियन क्यूबिक मीटर (11.3 ट्रिलियन क्यूबिक फीट) होगा, जितना शुरू में अनुमान लगाया गया था. साथ ही, उस समय किए गए वादे के मुताबिक क्या 2023 तक यहां से गैस की निकासी शुरू हो पाएगी?

पश्चिमी देशों के लिए रेयर अर्थ का रणनीतिक महत्व इतना अधिक है कि इससे जुड़ी कई अन्य परियोजनाओं ने हाल के वर्षों में अपनी क्षमता बढ़ा दी है, ताकि वे निवेशकों को आकर्षित कर सकें.

खनन रणनीतिकार एक्लेस्टोन बताते हैं कि करीब एक दशक पहले भी रेयर अर्थ की खोज करने वाली परियोजनाओं की संख्या बढ़ गई थी. हालांकि, ‘खोजे गए कई बड़े भंडार कम गुणवत्ता वाले थे, काफी दूर-दूर पर थे या सही तरीके से उनका प्रसंस्करण नहीं किया गया था. इस वजह से वे जमीन में ही रह गए.’

वहीं, मेरिमैन ने कहा कि वुड मैकेंसी वर्तमान में दुनिया भर में रेयर अर्थ से जुड़ी 150 परियोजनाओं पर नजर बनाए हुए हैं, जहां खनन शुरू हो गया है. वहीं, इनमें से 100 ऐसी परियोजनाएं हैं जहां प्रसंस्करण हो रहा है. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, “रेयर अर्थ परियोजनाओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन जिन्हें व्यावसायिक तौर पर विकसित किया जा सकता है उनके हालात अलग हैं.”

वर्तमान में यूरोप में एस्टोनिया में केवल एक रेयर अर्थ संशोधन केंद्र है और यहां बहुत सीमित संख्या में चुंबक निर्माता हैं. इनमें से सबसे बड़ा निर्माता जर्मनी का वैक्यूमस्मेल्त्से है.

तेजी से बदलते हालात

एक्लेस्टोन ने अनुमान लगाया कि बाजार तेजी से बदल रहा है. हालांकि, ऐसी उम्मीद कम ही है कि अगले एक दशक में चीन को इस मामले में कोई टक्कर दे सकता है. उन्होंने कहा, “चीन पहले से ही हेवी रेयर अर्थ यानी 17 में से करीब आधे एलिमेंट में अपना दबदबा खो चुका है. अब उसे उन्हें आयात करना होगा.” इस बीच, इनर मंगोलिया में मौजूद देश की सबसे बड़ी रेयर अर्थ खदान बायन ओबे में आने वाले समय में उत्पादन में कमी आ सकती है.

दरअसल, रेयर अर्थ मिनरल्स या रेयर अर्थ एलिमेंट 17 धातुओं का एक समूह है. इसमें स्कैंडियम, इट्रियम, लैंथेनम, सीरियम, प्रेसीओडियम, निओडीमियम, प्रोमेथियम, सैमेरियम, यूरोपियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डाइस्प्रोसियम, होल्मियम, एर्बियम, थूलियम, येटरबियम और लूटेटियम शामिल हैं.

मेरिमैन ने कहा कि रेयर अर्थ मटीरियल में अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के निवेश बढ़ाने के बावजूद, चीन का दबदबा कायम रहेगा, क्योंकि उसने चुंबक जैसे रेयर अर्थ उत्पाद के लिए खुदाई, प्रोसेसिंग और निर्माण से जुड़ा बेहतर ढांचा तैयार कर लिया है.

उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, “अगर आप चुंबक के तत्वों को देखते हैं, तो आपको पता चलता है कि रेयर अर्थ के कच्चे माल को पहले धातु में बदलना होता है, फिर मिश्र धातु वाले चुंबक में और सबसे आखिर में विशुद्ध चुंबक तैयार करना होता है. इन सब के अलावा, आपूर्ति श्रृंखला में भी काफी काम करने की जरूरत होती है और चीन के बाहर इसे लेकर काफी कुछ किया जाना बाकी है.”