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तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा-निर्वाचित विधायक राज्यपालों की ‘दया’ पर निर्भर हैं!

तेलंगाना सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि निर्वाचित विधायक राज्यपालों की ‘दया’ पर निर्भर हैं। तेलंगाना सरकार का न्यायालय के समक्ष यह टिप्पणी राज्य के राज्यपाल कार्यालय की ओर से शीर्ष अदालत को यह अवगत कराए जाने के बाद आई है कि उनके समक्ष कोई भी विधेयक मंजूरी के लिए लंबित नहीं है।

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की एक पीठ विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राज्य के राज्यपाल को दिशा-निर्देश देने संबंधी राज्य सरकार की याचिका की सुनवाई कर रही थी। ये विधेयक विधानसभा द्वारा पारित किए गए हैं, लेकिन गवर्नर की सहमति का इंतजार कर रहे हैं। न्यायालय ने इस संबंध में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की दलीलों पर संज्ञान लिया और कार्यवाही बंद कर दी।

मेहता ने पीठ को सूचित किया कि उन्हें राज्यपाल के सचिव से एक संदेश मिला है, जिसमें कहा गया है कि अब, हमारे पास कोई विधेयक लंबित नहीं है। राज्य सरकार की ओर से अदालत में पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने पीठ से कहा, निर्वाचित विधायक राज्यपालों की दया पर निर्भर हैं।

जब दवे ने कहा कि ऐसा केवल गैर-भाजपा शासित राज्यों में हो रहा है, इस पर मेहता ने कहा कि वह इस प्रकार की ‘हल्की’ टिप्पणी न करें। पीठ ने कहा, अब इस वक्त राज्यपाल के पास कुछ भी लंबित नहीं है। सॉलिसिटर जनरल द्वारा प्राप्त संदेश का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा, उपरोक्त तथ्यात्मक स्थिति को देखते हुए हम इस स्तर पर याचिका में उठाए गए मुद्दे के गुण-दोष को नहीं देख सकते हैं।

मेहता और दवे के बीच उस वक्त एक जुबानी जंग देखने को मिली जब सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि अदालत के सामने चिल्लाने से मदद नहीं मिलेगी। हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि पीठ मामले का निस्तारण करेगी। अपने आदेश में पीठ ने अनुच्छेद 200 के पहले प्रावधान पर ध्यान दिया और कहा कि जितनी जल्दी हो सके अभिव्यक्ति को संवैधानिक अधिकारियों द्वारा ध्यान में रखा जाना चाहिए। जब मेहता ने कहा कि यह जरूरी नहीं है तो पीठ ने टिप्पणी की, हमने इस मामले के बारे में कुछ नहीं कहा है।

तेलंगाना के राज्यपाल के कार्यालय ने 10 अप्रैल को शीर्ष अदालत को बताया था कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित तीन विधेयकों को मंजूरी दे दी गई थी और दो विधेयकों को राष्ट्रपति के विचार और सहमति के लिए रखा गया है। मेहता ने पीठ को बताया था कि उन्हें तेलंगाना के राज्यपाल के सचिव से नौ अप्रैल को विधेयक की स्थिति के बारे में एक सूचना मिली थी जो राज्यपाल को सहमति के लिए सौंपे गए थे।

दवे ने इससे पहले शीर्ष अदालत को बताया था कि मध्यप्रदेश में राज्यपाल सात दिनों के भीतर विधेयकों को मंजूरी दे देते हैं जबकि गुजरात में एक महीने के भीतर विधेयकों को मंजूरी दे दी जाती है। शीर्ष अदालत ने 20 मार्च को तेलंगाना सरकार द्वारा दायर याचिका पर केंद्र से जवाब मांगा था। अदालत ने स्पष्ट किया था कि वह राज्यपाल के कार्यालय को नोटिस जारी नहीं करेगी, लेकिन राज्य सरकार की याचिका पर केंद्र सरकार का जवाब चाहेगी।