धर्म

दीन की #आम_तब्लीग़ : #SiratunNabiSeries Part – 5

मोहम्मद सलीम
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#आम_तब्लीग | #SiratunNabiSeries Post-5
हुजूर सल्ल० ने चुपके-चुपके तब्लीग शुरू की थी, लेकिन चूंकि हर आदमी के सामने, जो आप के पास आता, अल्लाह का हुक्म बयान फ़रमाते। एक खुदा को सबका पैदा करने वाला बताते, लोग सुनते, लेकिन जवाब न दे पाते, अलबत्ता अपने घरों और मज्लिसों में जा-जाकर इस नये दीन का जिक्र करते और मजाक उड़ाते। इस तरह इस्लाम का जिक्र घर-घर छिड़ गया।
लोग सुन-सुन कर हैरान भी हो रहे थे और गुस्से से दांत भी पीसते, लेकिन यह पता न चलता कि कौन-कौन मुसलमान हो गये हैं, इस लिए चुप रह जाते।
हुजूर सल्ल० ने एलानिया तब्लीग शुरू न की थी, इसलिए किसी को उन पर सख्ती करने की हिम्मत न पड़ती थी।
हजरत अबू बक्र रजि० का असर तमाम क़बीलों पर था, इसलिए इस्लाम अपनाने के बाद आप ने अपने हर मुलाकाती से इस्लाम की बात कहनी शुरू कर दी। लोग सुनते, अक्सर कुबूल करते और इस्लाम अपना लेते।
चुनांचे आप की कोशिशों से हजरत #उस्मान_बिन_अफ्फान, हजरत #तलहा_बिन_अब्दुल्लाह, हजरत #साद_बिन_अबी_वकास, हजरत #अब्दुर्रहमान_बिन_औफ़, हजरत #जुबैर_बिन_अब्बाम ईमान लाये। इन हस्तियों में हजरत #उस्मान रजि० काफ़ी मालदार थे कि इसी वजह से लोग उन्हें ‘#गनी’ कहा करते थे।
अब इन सब लोगों ने मिल कर तब्लीग का काम शुरू किया, लेकिन यह तब्लीग अभी तक राजदारी के साथ हो रही थी। फिर भी इन तमाम कोशिशों के नतीजे में धीरे-धीरे इस्लाम फैलने लगा।
चुनांचे हजरत अबू उबैदा बिन जर्राह, हजरत अबू तलहा, अब्दुल असद बिन हिलाल, हजरत उस्मान बिन मजऊन, हजरत कुदामा बिन मजऊन, हजरत सईद बिन जैद, हजरत फातमा, हजरत सईद बिन जैद की बीबी वगैरह बहुत से लोग मुसलमान हो गये। धीरे-धीरे मुसलमानों की तायदाद बढ़ने लगी।
अभी तक सब लोग मक्का के सरदारों से डरते थे, इसलिए अपने इस्लाम को छिपाये हुए थे। नमाज छिप कर पढ़ते थे या तो अपने घरों के कमरों में घुस कर नमाज अदा करते थे या पहाड़ों के दरों और ग्रारों में जाकर नमाज पढ़ते थे।

चूंकि हर आदमी अपने मुसलमान होने को छिपाता था, इस लिए मुसलमानों को भी मालूम था कि कौन-कौन से लोग मुसलमान हो चुके हैं।

कुछ दिनों के बाद हजरत उमर, हजरत साद बिन अबी वकास के भाई हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद, हजरत अम्मार बिन यासिर, हजरत खुबैर भी मुसलमान हो गये। जो लोग अभी तक मुसलमान हुए, वे अपने अखलाक में सब से नुमायां थे, लेकिन मालदार बिल्कुल न थे, बल्कि अक्सर तो गुलाम और लौंडियां थीं।

उस वक्त के मुसलमान नमाजें भी छिप-छिप कर पढ़ते थे। हुजूर सल्ल० अक्सर पहाड़ी दर्रों में जा कर नमाज पढ़ा करते थे, कभी-कभी हजरत अली को भी साथ ले जाते थे और अपने साथ नमाज पढ़ाते थे।

एक दिन हुजूर सल्ल० हजरत अली रजि० को साथ लेकर एक दर्रे में पहुंचे। नमाज का वक्त हो गया था। दोनों नमाज पढ़ने लगे। इत्तिफ़ाक़ से हजरत अली के चचा अबू तालिब उधर से आ निकले। अबू तालिब के साथ हजरत जाफ़र हजरत अली के भाई भी थे। दोनों करीब खड़े थे। हैरत भरी नजरों से हुजूर सल्ल० और हजरत अली को नमाज पढ़ते हुए देखने लगे। कुछ देर के बाद अबू तालिब ने हजरत जाफ़र से कहा, हबल की कसम! जिस तरीके पर मुहम्मद नमाज पढ़ रहे हैं, बड़ा ही दिल लुभाने वाला तरीका है। जाफ़र! तू भी अपने चचेरे भाई के बाजु में खड़ा हो जा।

फ़ौरन हजरत जाफ़र दूसरी तरफ खड़े हो गये। नमाज पढ़ते देखा तो हुजूर सल्ल० ने फ़रमाया, जाफ़र ! तुम मुसलमान हो जाओ।

हजरत जाफ़र ने भी इस्लाम अपना लिया। हुजूर सल्ल० ने दुआ दी, अल्लाह तुझे जन्नत में दो बाजू दे, जिस से तू फ़िरदौस में उड़ सके। उसी दिन से आप का नाम जाफ़र तैयार हो गया।

जब आप नमाज पढ़ चुके तो आप ने अबू तालिब को खड़े देखा। आप सल्ल० ने अपने चचा को सलाम किया। अबू तालिब ने पूछा, बेटे ! यह तुम क्या कर रहे हो?

चचा! मैं नमाज पढ़ रहा था। अबू तालिब ने हैरान होकर पूछा, नमाज पढ़ रहे थे? तुम्हार सामने तो कोई खुदा (बुत) था नहीं ?

हुजूर सल्ल० ने बताया, मैं बुतों को सामने रखकर नमाज नहीं पढ़ता।

फिर किस की नमाज पढ़ रहे थे? अबू तालिब ने पूछा।

उस खुदा की, जिस ने सब कुछ पैदा किया है। हुजूर सल्ल० ने जवाब दिया।

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नमाज का यह तरीका तुम ने किस से सीखा ? अबू तालिब ने पूछा।

चचा! जिब्रईल फ़रिश्ते से! आपको बहीरा राहिब का वाकिया है याद है?

हाँ, याद है?’

मुझ पर वह्य नाजिल होनी शुरू हो गयी है। अल्लाह ने मुझे पैगम्बरी के लिए चुन लिया है।

तुम पर अल्लाह का क्या पैगाम नाजिल हुआ? आप ने कुरआन की तिलावत शुरू कर दी।

अबू तालिब सुन रहे थे। उनके दिल पर इन आयतों का असर हो रहा था। बदन कांपने लगा था, जब हुजूर सल्ल० खामोश हुए, तो अबू तालिब ने पूछा, यह कौन सा मजहब है ?

आप सल्ल० ने बताया, यह इब्राहीम का तरीका है, उन्हीं का दिया हुआ यह नाम इस्लाम है और इस के मानने वाले मुसलमान कहलाते हैं।

अबू तालिब बोले, बेटे ! यह तो बड़ा अच्छा मजहब है। अल्लाह की इबादत का यह अच्छा तरीका है, हमे फकर है के हमारे खानदान में नबी पैदा हुआ। प्यारे बेटे! तुम्हारे दादा की पेशीनगोई पूरी हुई। क्या तुम जानते हो वह पेशीनगोई क्या थी?

नहीं, चचा! आप सल्ल० ने कहा।

मैं बताता हूं। अबू तालिब बोले, जब तुम पैदा हुए थे, तो तुम्हारे दादा ने तुम्हारा नाम मुहम्मद रखा था। लोगों ने एतराज किया कि आप ने अपने पोते का नाम नया और निराला क्यों रखा ? तो आप ने कहा, इस लिए कि मेरा पोता दुनिया में सूरज बन कर चमकेगा। बेटे ! अब जबकि तुम पर वह्य आने का सिलसिला शुरू हो चुका है और अल्लाह ने तुम्हें अपना रसूल बना लिया है, तो यकीनन तुम हिजाज के नहीं, अरब के नहीं, पूरी दुनिया के सूरज बन कर चमकोगे।

अबू तालिब आप के चचा थे, सरपरस्त थे, बुजर्ग थे। आप को उन के सामने जुबान खोलने की हिम्मत न होती थी, लेकिन जब आप सल्ल० ने अबू तालिब की बातें सुनी तो कहने की हिम्मत हई। आप सल्ल० ने फ़रमाया, चचा! आप भी मुसलमान हो जाएं।

अबू तालिब बोले, मेरा दिल तो चाहता है कि मैं मुसलमान हो जाऊं और तेरे साथ खड़ा होकर नमाज पढू, अनदेखे खुदा को पूजूं, पर बाप-दादा के मजहब को छोड़ते हुए शर्म आती है। जब लोग कहेंगे कि अपने भतीजे का धर्म अपना लिया, तो क्या जवाब दूंगा? शर्म वगैरह से कट-कट कर रह जाऊंगा। हाँ, मैं तुम्हारी मदद करते रहने का वायदा करता हूं। मेरे जीते जी तुम्हे कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता। मेरी तलवार उस के सर पर चमक जाएगी, जो तुम को तकलीफ़ पहुंचाने का इरादा करेगा। हां, अली और जाफ़र को मैं ने इजाजत दी। ये दोनों तुम्हारे मजहब में रहेंगे।

अब तालिब ने हजरत अली रजि० से कहा, बेटा ! तुम मुहम्मद सल्ल० का साथ न छोड़ना। जो मजहब तुम ने अपनाया है, जिंदगी भर उस का साथ देना।

हुजूर सल्ल० ने अब तालिब का शुक्रिया अदा किया। अबू तालिब घर चले गये। हुजूर सल्ल० अली और जाफ़र को लेकर अपने मकान पर आ गये।

अबू तालिब की इस हिमायत के वायदे से हुजूर सल्ल० बहुत खुश थे।

 

 

Source:
#सिरतून_नबी_सीरीज