साहित्य

दीप्ति के मन में अपने इस जीजाजी के लिए…

Poonam Jarka
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बच्चों की छुट्टियां कल खत्म होने वाली थी, जिस वजह से हम आज रात ही सपरिवार ससुराल से छुट्टियां बिताकर वापस अपनी कर्मस्थली गोरखपुर की ओर प्रस्थान करने वाले थे। हँसी मजाक का दौर आज भी अन्य दिनों की भांति ही अपने चरम पर था। थोड़ी थोड़ी देर पर दीप्ति बीच महफिल से उठकर जाती और हमारे लिए चाय पानी वगेरह लेकर आ जाती।

दीप्ति के मन में अपने इस जीजाजी के लिए आदर सम्मान व फिक्र को देखकर हम मन ही मन बहुत खुश थे। मौका देखकर हम उसे छेड़ते हुए बोले, दुनिया में एक बस आप ही तो हैं, जिसे मेरी फिक्र है और जो मेरी कदर करता है। आप मेरी सबसे दिलअजीज हैं साली साहिबा। किसी ने सच ही कहा है की साली आधी घरवाली होती है।

अपने ग्यारह दिनों के ससुराल प्रवास के दरम्यान मैने आज पहली बार दीप्ति को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने आंखों में आंखें डालकर बोलता हुआ पाया। वो बेझिझक बोली “लेकिन मैं तो आधी नहीं बल्कि पूरी घरवाली बनना चाहती हूं।

दीप्ति के मुंह से इस वाक्य को सुनते ही मैं अवाक रह गया। मैं तक्षण हँसी मजाक बंद करके गंभीर मुद्रा बनाते हुए उससे बोला, “दीप्ति, वो दर्जा तो मैने सिर्फ और सिर्फ तुम्हारी दीदी को दिया है और इस जन्म में तो क्या अगले जन्म में भी वो दर्जा किसी और को देना मेरे लिए संभव नहीं होगा।

इससे पहले की दीप्ति कुछ और कहती, मैं वहां से उठकर बाहर चला आया। कमरे से बाहर निकलते ही दरवाजे के पास मैंने अपनी पत्नी अमृता को पाया। आज बरसों बाद मुझे अमृता के नजर में अपने लिए सम्मान श्रद्धा व आदर नजर आया। उसकी आंखों से बहते आंसुओं के धार ने हमारे बीच की सारी गलतफहमियों को धो दिया। वो मुझसे लिपटकर रूंधे हुए स्वर में बोली “लभ जू बिट्टू के पापा” ❤️❤️