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दुनिया का सियासी नक़्शा बदल रहा है, इस्लामी दुनिया आपसी एकता से ताक़त के नए आर्डर में अहम जगह हासिल कर सकती है : ईरान

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और इमाम जाफ़र सादिक़ के शुभ जन्म दिवस के मौक़े पर ईरान के सिविल व फ़ौजी अधिकारियों और छत्तीसवीं अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी एकता कॉन्फ़्रेंस में शिरकत करने वाले मेहमानों ने शुक्रवार को सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई से तेहरान में मुलाक़ात की।

इस मुलाक़ात के मौक़े पर सुप्रीम लीडर ने अपनी स्पीच में पैग़म्बरे इस्लाम और इमाम जाफ़र सादिक़ के शुभ जन्म दिवस की मुबारकबाद पेश करते हुए, पैग़म्बरे इस्लाम की शख़्सियत के बेमिसाल होने पर ताकीद की कि जिसका सर्वोच्च बिंदु पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी का एलान है। उन्होंने कहाः पैग़म्बरे इस्लाम के मुबारक जन्म दिन पर ईद मनाना, मुसलमान क़ौम के लिए अच्छे आइडियल के तौर पर उनसे सीखने और आइडियल बनाने के लिए एक मौक़ा होना चाहिए।

उन्होंने पवित्र क़ुरआन की उन आयतों की ओर इशारा करते हुए जिनमें मुसलमान क़ौम की मुसीबतों व कठिनाइयों को पैग़म्बरे इस्लाम के लिए तकलीफ़ेदह और मुसलमानों के दुश्मनों के लिए ख़ुशी का सबब बताया गया है, आज की दुनिया में मुसलमान क़ौम की मुसीबतों की वजहों की समीक्षा की और कहाः इस्लामी जगत की मुश्किलों और कठिनाइयों की अनेक वजहें हैं और उनमें एक बड़ी वजह, मुसलमानों के बीच फूट और आपस में एक दूसरे से दूरी है।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने पावर के नए ऑर्डर में रोल निभाने और ऊंचा मक़ाम हासिल करने के लिए, एकता व एकजुटता को इस्लामी जगत की सबसे अहम ज़रूरत बताया और इस अहम ज़रूरत को पूरा करने में इस्लामी जगत के विद्वानों, अहम हस्तियों और इन्टेलक्चुअल जवानों के अहम किरदार की ओर इशारा करते हुए कहाः अमली तौर पर जिद्दो-जेहद और कठिनाइयों व दवाब के मुक़ाबले में दृढ़ता के ज़रिए ही इस्लामी एकता और नए ऑर्डर में असरअंदाज़ भागीदारी मुमकिन हो सकती है और इसका खुला नमूना इस्लामी जम्हूरिया ईरान है जो एक छोटा पौधा था और बड़ी ताक़तों के सामने नहीं झुका, बल्कि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की अगुवाई में डट गया और अब वह छोटा पौधा एक बड़े पेड़ की शक्ल ले चुका है और कोई उसे उखाड़ने के बारे में सोच तक नहीं सकता।

उन्होंने यह सवाल करते हुए कि एकता का मतलब क्या है? कहाः इस्लामी दुनिया में एकता व एकजुटता के सिलसिले में जो बात मद्देनज़र है, वह भौगोलिक एकता नहीं, बल्कि इस्लामी उम्मत के हितों की रक्षा के लिए एकता है। इस्लामी जगत के हितों की सही समझ और यह जानना कि मुसलमानों को किन लोगों से और किस तरह से दोस्ती या दुश्मनी करनी चाहिए और साम्राज्यवाद की साज़िशों के मुक़ाबले में संयुक्त ऐक्शन प्लान, एकता को हासिल करने में बहुत अहम है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इस बात पर ताकीद करते हुए कि संयुक्त ऐक्शन प्लान में अहम व बुनियादी बिन्दु, दुनिया में राजनैतिक ऑर्डर को बदलने के लिए एक जैसी सोच तक पहुंचना है, कहाः दुनिया का राजनैतिक नक़्शा बदल रहा है और युनीपोलर सिस्टम, अपने अंत की ओर बढ़ रहा है जबकि विश्व साम्राज्यवाद का वर्चस्व भी दिन ब दिन अपनी हैसियत खोता जा रहा है, इसलिए एक नई दुनिया, वजूद में आ रही है। उन्होंने आगे कहा कि ऐसे हालात में इस्लामी जगत एक उच्च मक़ाम हासिल कर सकता है और नई दुनिया में आइडियल व अगुवा बन सकता है, लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि वह एकजुट हो जाए और ख़ुद को फूट तथा अमरीका, ज़ायोनियों और बड़ी कंपनियों के बहकावे से महफ़ूज़ रखे।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इस्लामी एकता को व्यवहारिक बनाने के लिए धार्मिक मतभेद को विवाद व टकराव में बदलने से रोकना ज़रूरी है, कहाः अमरीकी और अंग्रेज़ नेता, जो सिरे से इस्लाम के ही ख़िलाफ़ हैं, अपनी बैठकों में शिया-सुन्नी की बातें करने लगे हैं जो बहुत ही ख़तरनाक बात है। उन्होंने कुछ इस्लामी मुल्कों की ओर से ज़ायोनी शासन से संबंध स्थापित करने को सबसे बड़ी ग़द्दारियों में से एक बताते हुए कहाः शायद कुछ लोग यह कहें कि मौजूदा हालात में इस्लामी मुल्कों के कुछ हुक्मरानों के होते हुए, एकता क़ायम होना मुमकिन नहीं है, लेकिन इस्लामी दुनिया के विद्वान, धर्मगुरू, विचारक और अहम हस्तियां, माहौल को दुश्मन की मर्ज़ी के विपरीत मोड़ सकती हैं और ऐसे हालात में एकता स्थापित करना बहुत ज़्यादा आसान होगा।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ʺअंग्रेज़ी शियाʺ और ʺअमरीकी सुन्नीʺ की अपनी पिछली टर्मिनालजी का ज़िक्र करते हुए कहा कि कुछ लोग इसमें फेरबदल करने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंन कहा कि ʺअंग्रेज़ शियाʺ और ʺअमरीकी सुन्नीʺ से मुराद हर वह शख़्स है जो किसी भी पोज़ीशन, ओहदे और मुल्क में दाइश की तरह लड़ाई झगड़े करवाकर, फूट डालकर और दूसरों को काफ़िर बताकर, दुश्मन की सेवा करे। उन्होंने इराक़ और सीरिया में दाइश के अपराधों ख़ास तौर पर अफ़ग़ानिस्तान में स्टूडेंट्स के क़त्लेआम पर दुख ज़ाहिर करते हुए कहाः शिया और सुन्नी, दोनों तरफ़ कुछ शिद्दत पसंद है जिनका शिया और सुन्नी मसलक से कोई संबंध नहीं है और इस शिद्दत पसंदी को ख़ुद दीन पर सवाल उठाने का बहना बनने का मौक़ा नहीं देना चाहिए और ऐसे लोगों से सख़्ती से निमटना चाहिए जो एक मसलक का समर्थन करने के नाम पर, दूसरे मसलक के लोगों के ज़ज्बात भड़काते हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने फ़िलिस्तीन और इस्लामी जगत की दूसरी जगहों पर कठिनाइयों, तनाव और क़त्लेआम में दिन ब दिन इज़ाफ़े को, इस्लामी जगत में बिखराव का नतीजा क़रार दिया और मुसलमानों के बीच मौजूद बहुत से संयुक्त बिन्दुओं का ज़िक्र करते हुए कहाः इस्लामी जम्हूरिया ने अब तक, इस्लामी एकता को व्यवहारिक बनाने के लिए अपनी हर मुमकिन कोशिश की है जिसका खुला नमूना, फ़िलिस्तीन में सुन्नी भाइयों का व्यापक सपोर्ट है जो भविष्य में भी पूरी ताक़त से जारी रहेगा। उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इस्लामी दुनिया के प्रतिरोध के मोर्चे को इस्लामी जम्हूरिया पूरी तरह सपोर्ट करता है, कहाः हम अल्लाह के करम पर ईमान रखते हैं और इस्लामी एकता की अज़ीम आरज़ू पूरी होने के बारे में पूरी उम्मीद रखते हैं।