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धर्मांधता, अंध राष्ट्रवाद, लंपट मर्दानगी, जाति, नस्ल यहां के क्रिक्रेट के केंद्र में है, इंग्लैंड वाले आए सभ्य तरीके से वर्ल्ड कप जीत कर चले गए!

Dk Verma Verma
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इंग्लैंड वाले आए और बिना किसी बड़बोलेपन के, सभ्य तरीके से वर्ल्ड कप जीत कर चले गए। जीतने के बाद उन्होंने मैदान पर अपनी पत्नियों के साथ Lip Lock kiss किया, अपने बच्चों के साथ खुशी बांटी और शैम्पेन के साथ पार्टी की। उन्हें न तो “कुदरत के निज़ाम” आवश्यकता पड़ी न ही किसी किसी “ज्योतिष इलेवन” की।


उन्होंने अपनी लिंगकेंद्रित (phallocentric) मर्दानगी दिखाने के लिए किसी देश के साथ बाप-बेटा वाला रिश्ता भी नहीं जोड़ा। इंग्लैंड टीम के आधे क्रिकेटर भी दूसरे देशों और नस्लों के हैं। इस वर्ल्ड कप का हीरो सैम करन जिम्बाब्वे मूल का है। स्टोक्स, आदिल राशिद, मोईन अली, जोफ्रा आर्चर भी इंगलैंड मूल के क्रिकेटर नहीं हैं। यहां तक कि इंग्लैंड का प्रधानमंत्री भी।

लेकिन भारत और पाकिस्तान के क्रिकेट में धर्म, राष्ट्र और पुरुषों का लिंग ये तीन मुख्य कारक हैं। क्रिक्रेट के सारा विश्लेषण इसी के इर्दगिर्द सिमट कर रह जाता है। बाजार, मीडिया और राजनीति इस जहरीलेपन को बढ़ावा देते हैं। ये क्रिकेट के माध्यम संकीर्ण अस्मिताओं को और कुरेदते हैं।


धर्मांधता, अंध राष्ट्रवाद, लंपट मर्दानगी, जाति, नस्ल यहां के क्रिक्रेट के केंद्र में है। भरोसा नहीं है तो एक बार मीडिया और सोशल मीडिया का क्रिक्रेट विमर्श देख लीजिए। बाकी गुरुर और बड़बोलापन तो इतना है कि कहना ही नहीं। भारत वाले 2007 रिपीट कर रहे थे और पकिस्तान वाले 1992. हो गया रिपीट..
Mr Ajay Kumar Yadav