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नई पाबंदियों पर कनाडा के मुसलमानों ने क्यों जताई आपत्ति?

नई पाबंदियों पर कनाडा के मुसलमानों ने क्यों जताई आपत्ति?

पश्चिमी देश वैसे तो समानता और मानवाधिकार के नारे लगाते और अपनी पीठ थपथपाते नहीं थकते लेकिन सच्चाई यह है कि बहुत से पश्चिमी देशों में धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यकों के अधिकारों का घनघोर हनन होता है और उनकी आज़ादी को निशाना बनाया जाता है।

कनाडा के क्यूबेक राज्य में एक ताज़ा फ़रमान जारी किया गया है कि सरकारी स्कूलों में किसी को नमाज़ पढ़ने की अनुमति नहीं होगी।

क्यूबेक के प्रांतीय प्रशासन के इस फ़रमान से कनाडा के मुसलमानों में नाराज़गी है। मुसलमानों ने एक एक याचिका दायर करके राज्य के सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि सरकारी स्कूलों में किसी भी प्रकार की इबादत को वर्जित करने वाले फ़रमान को निरस्त कर दे।

कनाडा के मुसलमानों का कहना है कि इस प्रकार के फ़रमान भेदभावपूर्ण हैं और कनाडा के आज़ादी के चार्टर का उल्लंघन करते हैं। यह एसी स्थिति में है कि कनाडा के अन्य राज्यों में भी मुसलमान भारी दबाव में हैं। स्थिति यह है कि कनाडा की सेनेट की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि इस्लामोफ़ोबिया कनाडा के समाज में बड़ी गहराई से फैल गया है और हिजाब पहनने वाली महिलाओं के लिए बड़ी समस्याएं हैं।

कनाडा की सेनेट में मानवाधिकार कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार नफ़रंती चरमपंथी गुट मुसलमानों के ख़िलाफ़ गतिविधियां बढ़ा रहे हैं।

कनाडा में मुसलमानों को धार्मिक मामलों में ही भेदभाव का सामना नहीं है बल्कि काम की जगहों पर भी उन्हें समास्याओं से रूबरू होना पड़ रहा है। इस्लामिक रिलीफ़ नाम की संस्था के अध्ययन के अनुसार कनाडा के दो तिहाई मुसलमानों को काम की जगहों पर भेदभावपूर्ण बर्ताव का सामना करना पड़ता है। प्रमोशन और सैलरी सहित अनेक मामलों में यह भेदभाव नज़र आता है यहां तक कि लिबास से जुड़े नियमों में भी भेदभाव है।

स्थानीय मीडिया ने इस अध्ययन की रिपोर्ट को समाज के हाशिए पर मुसलमान शीर्षक के साथ प्रसारित किया है। इसमें साफ़ कहा गया है कि औपचारिक और अनौपचारिक दोनों रूप में भेदभाव किया जा रहा है। सर्वे में शामिल होने वालों में 84 प्रतिशत लोगों का कहना था कि उन्हें काम की जगह पर दोनों प्रकार के भेदभाव का सामना करना पड़ता है। अध्ययनकर्ता का कहना है कि काम की जगहों पर भेदभाव का सीधा नकारात्मक असर मुसलमानों की प्रगति पर पड़ रहा है।

कनाडा के साथ ही दूसरे अनेक पश्चिमी देशों में इसी तरह के हालात हैं। इस्लामोफ़ोबिया की वजह से जो हालिया वर्षों में ज़्यादा शिद्दत से फैलाया गया है यूरोप के अनेक देशों में मुसलमानों के लिए जीवन बहुत कठिन हो गया है। मानवाधिकार के दावेदार इन यूरोपीय मुल्कों में भी धार्मिक और नस्ली अल्पसंख्यकों को गंभीर समस्याओं का सामना होता है।

इस्लामिक कमीशन फ़र ह्यूमन राइट्स संस्था के प्रमुख मसऊद शजरे का कहना है कि ब्रिटेन में रहने वाले मुसलमान जीवन के हर क्षेत्र में दूसरे दर्जे के शहरी बनकर रह गए हैं और यह इस्लामोफ़ोबिया का नतीजा है।

इस्लामोफ़ोबिया और मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत का मसला अब इतना आगे बढ़ चुका है कि ख़ुद पश्चिमी देशों के अधिकारी भी मानने लगे हैं कि यह बहुत बुरी लहर हालिया बर्सों में फैली है जिससे समाज को बड़ा नुक़सान पहुंच रहा है।