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नहीं सर मैं हिंदू हूँ, इफ़तार के वक्त आप को खा़ली हाथ देखकर रहा नही गया, इसीलिये पेशकश कर डाली !

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देखने सुनने में बात बड़ी छोटी सी लगती है लेकिन इस छोटी सी बात ने किसी के दिल पर ऐसी छाप छोड़ी कि शायद वह उम्र भर इस बात को न भूल सकेगा । देश में आज भी सांप्रदायिक सद्भाव के ऐसे बड़े उदाहरण मौजूद हैं जिनके सामने साम्प्रदायिकता खुद को बेहद नंगा और शर्मिंदा महसूस करती है ।

मामला रायबरेली है । यहाँ की हिंदू मुसलिम एकता जग मशहूर है, यहाँ के आपसी सौहार्द पर हम सभी रायबरेली वासियों को हमेशा से फख्र का इहसास रहा है ।

इसी का एक उदाहरण आज उस वक़्त देखने को मिला जब मैं ठीक इफ़तार के वक़्त ट्रेन से उतर कर पास की मसजिद जाने के लिये रिक्शे की तलाश में था तभी अजा़न होने लगी । यकायक एक व्यक्ति मेरी ओर पानी की बोतल और केले लेकर बढा और कहने लगा लिजिये खान साहब रोज़ा खोल लीजिए । मैं आशचृयचकित उस भले मानस का मुंह तकने लगा,फिर सोचा कि शायद यह भी रोजे़ से है ?

मैने कहा आप भी रोजा़ खोलिये,तो वो कहने लगा नहीं सर” मैं हिंदू हूँ,”आप को इफ़्तार के वक़्त खा़ली हाथ देखकर पेशकश करने पर मजबूर हो गया । फिर बात चल पड़ी तो वो रायबरेली के ही एक इंजीनियर “विवेक सिंह” निकले, मैं बस उनसे बस यही कह सका जब तक आप जैसे लोग हैं मेरे भारत को कोई नफ़रत की आग में नहीं झोंक सकता !

अभी तक यही सोच रहा हूँ कि भारत वर्ष की यह गंगा जमुनी तहजी़ब,यहाँ की भाईचारगी,अनेकता में एकता,को कैसे बाकी़ रक्खा जाये?? ताकि मेरा देश सामप्रदायिकता की आग में जलने से बच जाये । अब ज़रूरत यह है कि हमारे देश की सदियों पुरानी रीति को हम सब “हिंदू मुस्लिम”एक होकर मिलकर बचायें ।

(मेहदी हसन एैनी का़समी द्वारा भेजा गया)