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*पत्रकारिता की छवि को धुमिल करती एक छोटी सी कहानी*…..By-Brajesh Badal Partaker

Brajesh Badal Partaker

Lives in Uraí

From Lucknow, Uttar Pradesh

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*पत्रकारिता की मंजिल बहुत दूर है*✍
यू तो शहर मे मानो पत्रकारो की एक बाढ़ सी आ गई है हर गली मोहल्ले मे पत्रकार जिधर नजर जाये उधर पत्रकार हालांकी सविंधान की धारा 19 मे वर्णन है की भारत के हर नागरिक को अपनी बात कहने का पुर्ण रुप से अधिकार है चूँकि यह शोशल मिडिया का दौर है तो इसमे हर नागरिक अपनी बात आसानी से कह सकता है

*पत्रकारिता की छवि को धुमिल करती एक छोटी सी कहानी*
माना की खनन विभाग की नियमावली अनुसार खनन माफिया की मिट्टी उठाने की परमिशन हो जाती है जिससे सरकार को राज्सव का फायदा होना शुरू हो जाता है जिससे सरकार किसी ना किसी माध्यम से जनता तक फायदा पहुचाती रहती है व राज्सव से ही शहर गावँ को डवलप करती है
अब खनन माफिया परमिशन के नाम पर नियमो को ताक पर रख कर दिन रात खनन करते है और सरकार को प्रतिदिन लाखो का चुना लगाते है एक पत्रकार को पता होता है की खनन माफिया सरकार को लाखो का चुना लगा रहा है लेकिन वह माफिया के सामने चुप हो जाता है क्योकि माफिया भाप लेता है की यह मात्र 1000 मे बिकने वाला पत्रकार है और यह मेरा कुछ नही कर सकता ,देखा जाये तो माफिया ने पत्रकार की कीमत 33 रुपये प्रतिदिन लगाकर प्रतिदिन लाखो की कमाई की है ,लेकिन अगर पत्रकार 33 रुपए प्रतिदिन की कमाई त्याग कर माफिया के खिलाफ खबर प्रकाशित करे सम्बंधित अधिकारी को अवगत कराये अवेध खनन मे लिप्त डम्फर व जेसीबी को सीज करवाये उससे सरकार को लाखो का फायदा होगा वह पेसा कही ना कही जनता की भलाई मे ही इस्तेमाल होगा, यही आपकी पत्रकारिता कहलायेगी