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पिछले सात साल में चीन से सामान खबरीदने में भारत ने क़रीब साठ प्रतिशत की बढ़ोतरी की है : रिपोर्ट

भारत और चीन की सीमाओं पर एक बार फिर से तनाव बढ़ गया है.

इस बार तनाव के केंद्र में लद्दाख की जगह अरुणाचल प्रदेश की सीमाएं हैं. इसकी वजह है कि 9 दिसंबर की सुबह तवांग सेक्टर के यांग्त्से में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई.

इस झड़प में कुछ भारतीय सैनिकों को चोटें भी आई. इससे पहले गलवान की हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों की मौत हो गई थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच अपने चरम पर पहुंच गया था.

गलवान से पहले दोनों देश डोकलाम में करीब ढाई महीने तक एक दूसरे के सामने तने रहे.

पिछले सात साल में चीन और भारत के बीच एक तरफ जहां गतिरोध बढ़ा है वहीं दूसरी तरफ चीन पर भारत की निर्भरता में भी कोई कमी नहीं है. इस बीच चीन से सामान खरीदने में भारत ने करीब साठ प्रतिशत की बढ़ोतरी की है.

आसान शब्दों में कहें तो साल 2014 में भारत, चीन से सामान खरीदने पर 100 रुपये खर्च करता था, वो आज बढ़कर 160 रुपये हो गए हैं.

कूटनीति में कहते हैं कि जिस मुल्क से खतरा महसूस हो तो उस पर निर्भरता को कम कर लेना चाहिए. ऐसे ही वादे, हाल के दिनों में रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिम के देशों ने भी किए हैं कि वे रूस पर अपनी निर्भरता को कम करनी की लगातार कोशिशें करते हुए देखे जा सकते हैं.

क्या वजह है कि चीन के साथ सीमाओं पर तनातनी के बावजूद भारत अपनी निर्भरता कम नहीं कर पा रहा है? वो कौन सा सामान हैं जो भारत चीन से सबसे ज्यादा खरीदता है? इस रास्ते पर अगर भारत चला रहा तो उसे भविष्य में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा?

चीन से कितना आयात?
भारत ने साल 2021-22 में दुनियाभर के 216 देशों और क्षेत्रों से सामान खरीदा. इस पर भारत ने 61 हजार 305 करोड़ अमेरिकी डॉलर खर्च किए.

भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक इस खर्च में सबसे ज्यादा फायदा चीन को मिला. भारत के कुल आयात में चीन की हिस्सेदारी 15.42 प्रतिशत रही.

टॉप 10 देशों में चीन के अलावा यूनाइटेड अरब अमीरात, अमेरिका, इराक़, सऊदी अरब, स्विट्जरलैंड, हांगकांग, सिंगापुर, इंडोनेशिया और कोरिया का नाम शामिल है.

चीन का वो सामान, जिसकी जरूरत सबसे ज्यादा

चीन पर भारत की निर्भरता के पीछे अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा, औद्योगिक नीति न होने को एक बड़ी वजह मानते हैं.

बीबीसी हिंदी से बातचीत में वे कहते हैं, “पिछली सरकार ने 2011 में नई मैन्यूफैक्चरिंग रणनीति बनाई थी उसे वो लागू नहीं कर पाई. 1992 से 2014 तक भारत की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का अनुपात 17 प्रतिशत बना रहा, लेकिन 2014 के बाद इसमें दो से तीन प्रतिशत की कमी दर्ज की गई.

सरल शब्दों में कहें तो 100 रुपये में से 15 रुपये का सामान भारत अकेले चीन से खरीदता है. सवाल यह है कि वह कौन सा ऐसा सामान है जिसके लिए भारत, चीन की तरफ देखने के लिए मजबूर है.

साल 2021-22 में भारत ने चीन से करीब 3 हजार करोड़ अमेरिकी डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक सामान खरीदा है. इसमें इलेक्ट्रिकल मशीनरी, उपकरण, स्पेयर पार्ट्स, साउंड रिकॉर्डर, टेलीविजन और दूसरी कई चीजें शामिल हैं.

टॉप दस चीजों की बात करें तो इसमें इलेक्ट्रॉनिक सामान के बाद न्यूक्लियर रिएक्टर्स, बॉयलर, ऑर्गेनिक केमिकल, प्लास्टिक का सामान, फर्टिलाइजर, वाहनों से जुड़ा सामान, केमिकल प्रोडक्ट्स, आयरन एंड स्टील, आयरन एंड स्टील का सामान और एलुमिनियम शामिल है.

चीन को क्या देता है भारत?
चीन से आयात को समझाते हुए अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा कहते हैं कि भारत चीन को कच्चा माल बेचने का काम करता है जबकि वहां से आयात में भारत ज्यादातर बन बनाए प्रोडक्ट खरीदता है.

मेहरोत्रा कहते हैं, “चीन से भारत इलेक्ट्रिकल और मैकेनिकल मशीनरी के अलावा कई तरह के केमिकल ख़रीदता है. ये केमिकल भारत के फ़ार्मा इंडस्ट्री के लिए बेहद अहम हैं. इससे हमारे देश में दवाएं बनाई जाती हैं लेकिन उनकी ओरिजिनल सामग्री चीन से ही आती है.”

वहीं दूसरी भारत चीन को बड़े पैमाने पर कॉटन, आयरन एंड स्टील, आर्टिफिशियल फूल, अयस्क, स्लैग, राख और ऑर्गेनिक केमिकल बेचने का काम करता है.

गलवान के बाद चीन से व्यापार
भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में साल 2020 में गंभीर स्थिति पैदा हो गई थी. अप्रैल 2020 में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शुरू हुए सैन्य गतिरोध के बाद भारत ने चीन से स्पष्ट रूप से कहा था कि सीमा पर तनाव के साथ बाक़ी संबंध सामान्य नहीं रह सकते.

चीन से निवेश में कमी आई क्योंकि मोदी सरकार ने कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं. भारत ने 5G ट्रायल से चीनी कंपनियों को बाहर किया और 200 से ज़्यादा ऐप पर बैन लगाए.

वहीं अगर भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के आंकड़ों को देखते तो पता लगता है कि गलवान के बाद भी चीन से आयात बढ़ता गया.

साल 2019-20 में भारत ने चीन के साथ कुल 86 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार किया था, इसमें करीब 65 अरब डॉलर का आयात और 16 अरब डॉलर का निर्यात शामिल था.

वहीं साल 2021-22 में यह बढ़कर 115 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें आयात करीब 94 अरब डॉलर और निर्यात करीब 21 अरब डॉलर का रहा है.

अगर इस साल अप्रैल से अक्टूबर की बात करें तो भारत चीन के साथ करीब 69 अरब डॉलर का व्यापार कर चुका है जिसमें सिर्फ 8 अरब डॉलर का निर्यात शामिल है.

अगर चीन के साथ व्यापार घाटे की बात करें तो यह साल 2014-15 में करीब 48 अरब डॉलर था जो साल 2021-22 में बढ़कर करीब 73 अरब डॉलर हो गया.

सस्ता सामान डंप करता है चीन
आत्मनिर्भर राष्ट्र निर्माण के आह्वान के बाद भी भारत का व्यापार घाटा चीन के साथ कम नहीं हुआ है.

चीन बड़े पैमाने पर दुनियाभर में सामान निर्यात करता है. पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के मुख्य अर्थशास्त्री एसपी शर्मा कहते हैं कि चीन की फिलोसफी डंप करने की है. जिससे न सिर्फ चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा बढ़ रहा है बल्कि इंडस्ट्री को भी नुकसान हो रहा है.

वे कहते हैं, “‘चीन सस्ता सामान बनाकर भारत में डंप करता है. सरकार को चीन के प्रोडक्ट पर क्वालिटी चेक लगाना चाहिए. इसके अलावा इस वक्त लेवल प्लेइंग फील्ड की जरूरत है, जिसके लिए एंटी डंपिंग ड्यूटी को भी कुछ समय के लिए बढ़ाया जा सकता है.”

एसपी शर्मा कहते हैं कि भारत में चाइनीज खिलौनों का बड़ा मार्केट है, ऐसे में चीन पर निर्भरता कम करने के लिए भारत अलग अलग योजनाएं ला रहा है. मेक इन इंडिया के बाद से इज ऑफ डूइंग बिजनेस का चलन बढ़ा है, सिंगल विंडो सिस्टम से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को भी मजबूती मिलेगी.”

वहीं दूसरी तरफ अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा मेक इन इंडिया पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, “मेक इन इंडिया से मार्केट खोलने की बात हो रही है, लेकिन यहां देखने को यह मिल रहा है कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की जगह एफडीआई ज्यादातर सर्विस सेक्टर में आ रहा है.”

हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल में चीन के खिलाफ ट्रेड वॉर छेड़ा था, बावजूद इसके 2021 में दोनों देशों का द्विपक्षीय व्यापार 755.6 अरब डॉलर का रहा था. 2021 में दोनों देशों के व्यापार में 28.7 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई थी.

जानकारों का कहना है कि सरहद पर चीन का मुकाबला करना जितना कठिन है उससे ज्यादा कठिन घरेलु बाजार में चाइनीज सामान से लड़ाई है.

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अभिनव गोयल
बीबीसी संवाददाता