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पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार कराने वाले ”यासीन पठान” की कहानी जानिये!

कोलकाता: यासीन पठान ने गरीबी से जंग लड़ी, एक मजदूर के रूप में काम किया और तमाम बीमारियों से जूझते रहे। एक स्कूल क्लर्क की जिम्मेदारी निभाते हुए वह मिदनापुर के सात गांवों में सैकड़ों मील का सफर करते हैं। लेकिन कभी भी अपने लक्ष्य से उनकी नजर नहीं हटती है। यह सब कुछ करते हुए उन्हें अपने समुदाय का विरोध भी झेलना पड़ता है। इसके बावजूद 69 साल के पठान बिना थके काम करते रहते हैं। वह अपने गांव और आस-पड़ोस के इलाके में 34 प्राचीन हिंदू मंदिरों के संरक्षण, मरम्मत और फिर से स्थापित करने के काम में जुटे रहते हैं। ये मंदिर आज अगर जीवंत हो उठे हैं तो उसके पीछे यासीन पठान की कड़ी मेहनत है।

1994 में कौमी एकता का कबीर अवॉर्ड
1994 में यासीन पठान के काम को नई पहचान मिली थी। उन्हें सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए राष्ट्रपति की ओर से कबीर अवॉर्ड दिया गया। पाथरा मौजा मिदनापुर कस्बे से ज्यादा दूर नहीं है। यह पाथरा, बिंदापाथरा, रामतोता, उपरडंगा, कंचकला और हाटगेरा गांवों में फैला हुआ है। करीब 25 बीघे में पाथरा मौजा का विस्तार है। इस गांव में 18वीं शताब्दी के 34 मंदिर हैं।

आठवीं तक ही पढ़े लेकिन काम बेमिसाल
अपनी जवानी के दिनों में यासीन अपने पिता तहारित के साथ पाथरा जाया करते थे। वह जीर्ण-शीर्ण पड़े अद्भुत मंदिरों के पास रुकते थे। उन मंदिरों की किसी को परवाह नहीं थी और वे ध्वस्त होने की कगार पर थे। यासीन ने फैसला किया कि इन मंदिरों को वह बचाएंगे। एक निम्न मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए यासीन आठवीं से आगे की पढ़ाई नहीं कर सके। अपने 10 भाई-बहनों में सबसे बड़े होने के नाते जिम्मेदारी भी उन पर थी।

1971 से मंदिरों के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की
पिता की मदद के लिए पठान ने एक मजदूर का काम भी किया। बाद में उन्हें अपने इलाके के एक स्कूल में क्लर्क की नौकरी मिल गई। 1971 में उन्होंने मंदिरों के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। शुरुआत में यासीन को अंदाजा नहीं था कि अगर एक मुस्लिम मंदिरों की देखभाल करेगा तो हिंदू समुदाय की क्या प्रतिक्रिया होगी। उनको अपने ही समुदाय मे विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन कभी लक्ष्य से डिगे नहीं।

प्रणब मुखर्जी ने भी काम को किया नोटिस

उन्होंने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और जिला प्रशासन से उन परिवारों को मुआवजा देने के लिए संपर्क किया, जिनकी जमीन मंदिरों के पुनर्स्थापन के दायरे में आ रही थी। उन्हें इस नेक मुहिम में ग्रामीणों का समर्थन भी मिलने लगा। गांव के लोग उनके साथ खड़े हो गए। गांव में 90 प्रतिशत परिवार हिंदू हैं। यासीन मलिक जिस मुस्लिम बहुल हलीहलका गांव में रहते हैं, वहां के लोग भी उनकी मदद के लिए आगे आ गए। यासीन ने मंदिरों के बारे में जिला प्रशासन तक बात पहुंचाई। कांग्रेस नेता और बाद में देश के राष्ट्रपति बने दिवंगत प्रणब मुखर्जी ने यासीन को काम को नोटिस किया। यासीन ने प्रणब मुखर्जी से मुलाकात की और योजना आयोग से मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए 20 लाख रुपये की मांग रखी। उनकी मुहिम रंग ला रही थी। 16 जुलाई 2003 को एएसआई ने मंदिरों की देखरेख अपने हाथ में ली। जिन 26 मंदिरों का जीर्णोद्धार हुआ, उनमें से 19 की जिम्मेदारी एएसआई ने ली।

इन हिंदू मंदिरों का जीर्णोद्धार करा रहे यासीन
जिन मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम हो रहा है, उनमें पंच रत्न शिव मंदिर, रासमनचा, विष्णु मंदिर, मनसा मंदिर, शीतला मंदिर, दुर्गा मंदिर और एक मंदिर की चारदीवारी का काम शामिल है। बिंदा पाथरा के निवासी 79 वर्षीय आशुतोष मजूमदार कहते हैं, ‘हालांकि यासीन एक दूसरे धर्म को मानने वाले हैं, फिर भी उन्होंने जो कुछ किया वह प्रशंसनीय है। हमें अपने सांस्कृतिक इतिहास की पुनर्स्थापना के लिए धार्मिक पहचान से ऊपर उठना चाहिए। इस तरह यासीन हमारे परिवार से सदस्य हैं।’ पुराने हिंदू मंदिरों की वास्तुकला और इतिहास के संरक्षण के बारे में उनका जूनून उन्हें हमेशा जवान बनाए रखता है। यासीन कहते हैं कि उन्होंने बंगाली में एक किताब लिखी है, जिसका टाइटल है- मोंदिरमोय पाथरा यानी मंदिरों का गांव पाथरा। एक वरिष्ठ एएसआई अफसर कहते हैं, ‘यासीन पठान ने वास्तुकला के संरक्षण के लिए अद्भुत काम किया है। उनकी पहल की बदौलत ही इन मंदिरों को ध्वस्त होने से बचाया जा सका है।

Pankaj Chaudhary
@mppchaudhary
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Aug 22
1994 में भारत के राष्ट्रपति के द्वारा कबीर अवार्ड से सम्मानित समाजसेवी यासीन पठान जी ने बंगाल प्रवास के दौरान मुझसे शिष्टाचार भेंट किया।उन्हें अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया।आपने अपने अथक प्रयास से 34 हिंदू मंदिरों के संरक्षण एवं पुनरुत्थान में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है। #ASI