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प्राइम टाइम : राजनाथ नहीं होंगे यूपी में बीजेपी का चेहरा, बगावत के कगार पर भाजपा

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ब्यूरो (राजा ज़ैद खान) । उत्तर प्रदेश में अगले वर्ष होने जा रहे विधानसभा चुनावो की तैयारी में जुटी भारतीय जनता पार्टी को अभी से ही भीतरघात का आभास होने लगा है । प्रदेश में भाजपा की तरफ से मुख्यमंत्री के तौर पर किसे आगे किया जाए इस विषय पर संघ और भाजपा कई बार बात कर चुके हैं । संघ की पहली पसंद के तौर पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ का नाम सामने आ रहा है लेकिन सबसे बड़ा पेंच उन बुजुर्गो का है जो यूपी की सियासत में बड़ा दखल रखते हैं ।

कलराज मिश्र, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती , ये तीन ऐसे नाम हैं जो किसी भी हाल में भाजपा में प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर राजनाथ और योगी आदित्यनाथ को कभी स्वीकार नहीं करेंगे वहीँ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं । भले ही कल्याण सिंह को राजस्थान का राज्यपाल बना दिया गया हो लेकिन वे आज भी यूपी की सियासत में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका और दखल रखते हैं ।

राजनाथ की गलती को दोहराना नहीं चाहते मोदी :

लोकसभा चुनावो के दौरान राजनाथ सिंह बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे । कांटे से काँटा निकालने की फ़िराक में उन्होंने प्रधानमंत्री पद से पार्टी के बुज़ुर्ग नेता लाल कृष्ण आडवाणी को अलग करने के लिए नरेंद्र मोदी का नाम आगे किया था । शायद राजनाथ सिंह को उम्मीद थी कि पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और नरेंद्र मोदी की छवि के चलते उन्हें कोई राजनैतिक दल प्रधानमंत्री बनने के लिए समर्थन नहीं देगा । ऐसी स्थति में राजनाथ खुद को प्रधानमंत्री पद के लिए सुयोग्य उम्मीदवार मानकर चल रहे थे । लोकसभा चुनावों के परिणामों ने राजनाथ सिंह के सपनो पर पानी फेर दिया और मजबूरन नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाना पड़ा ।

लोकसभा चुनावो में राजनाथ सिंह ने जो गलती की उसे नरेंद्र मोदी और खुद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह दोहराना नहीं चाहते । शायद इसीलिए उन्हें प्रदेश में एक ऐसे चेहरे की तलाश है जिसका राजनैतिक कद ज़्यादा बड़ा न हो । अमित शाह ऐसी गलती राजस्थान के मामले में कर चुके हैं । राजस्थान में वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री बनाकर कई मौकों पर खुद पार्टी अध्यक्ष को शर्मिंदगी उठानी पड़ी थी । वसुंधरा ने कई मौकों पर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को तरजीह नहीं दी और यह विवाद उस समय तक चला जब तक मीडिया में ललित मोदी और वसुंधरा प्रकरण नहीं उठा ।

उत्तर प्रदेश में भाजपा अकेले दम पर चुनाव लड़ने का एलान कर चुकी है लेकिन क्या उसे चुनाव में नेत्रत्व देने के लिए कोई करिश्माई चेहरा मिलेगा ? यह अभी तय होना बाकी है । भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पहले ही एलान कर चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में राम मंदिर चुनावी मुद्दा नहीं होगा । ऐसे हालात में भाजपा को एक ऐसे चेहरे की तलाश है जिस पर घोर सांप्रदायिक होने का ठप्पा न लगा हो । इसलिए यह मान लेना चाहिए कि योगी आदित्यनाथ भले ही संघ की पहली पसंद हों लेकिन भाजपा उन्हें आगे रखकर कोई रिस्क नहीं लेगी ।

वहीँ दूसरी बड़ी मुश्किल प्रदेश के संगठन को लेकर है । योगी खेमा किसी हाल में राजनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं । अपनी दावेदारी के समर्थन में योगी आदित्यनाथ साधु संतो के एक खेमे को आगे कर रहा है । मामला इतना पेचीदा हो चला है कि यदि भाजपा ने राजनाथ सिंह को प्रदेश के मुख्य्मंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किया तो प्रदेश संगठन में बगावत भी हो सकती है ।

सूत्रों के अनुसार भाजपा में एक विकल्प के तौर पर देखे जा रहे संस्कृति मंत्री महेश शर्मा के नाम पर भी पार्टी में चर्चा हुआ है लेकिन विधायक संगीत सोम और केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान उनका कड़ा विरोध कर रहे है । ऐसे में भाजपा की डगर मुश्किल होती जा रही है ।