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बाइडन प्रशासन ने पाकिस्तानी सेना को एफ़-16 लड़ाकू विमान बेचने पर सहमति जता दी

पाकिस्तान की उम्मीद पर खरा नहीं उतर रहा है अमरीका

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री ने परस्पर विश्वास और सम्मान के आधार पर इस्लामाबाद और वाशिंगटन के बीच रचनात्मक बातचीत का आह्वान किया।

इस्लामाबाद में अमरीकी कांग्रेस के एक प्रतिनिधिमंडल की मेज़बानी करने वाले शाहबाज़ शरीफ़ ने आपसी सम्मान, विश्वास और समझ के आधार पर दोनों देशों के बीच रचनात्मक और स्थायी बातचीत की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

पाकिस्तान के प्रधान मंत्री कार्यालय ने इस्लामाबाद में अमरीकी कांग्रेस के प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ की बैठक के बारे में एक बयान जारी किया। इस बैठक में शहबाज़ शरीफ़ ने अफ़ग़ानिस्तान के हालात सहित द्विपक्षीय संबंधों और क्षेत्रीय विकास की समीक्षा करते हुए अमरीका के ग़ैर-रचनात्मक बर्ताव की आलोचना की।

शाहबाज़ शरीफ़ के शब्दों में पाकिस्तान के प्रति अमरीका के बर्ताव की परोक्ष आलोचना की गयी है और इस्लामाबाद के प्रति वाशिंगटन के ग़ैर-रचनात्मक दृष्टिकोण के कारण आपसी सम्मान और विश्वास की आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है।

शाहबाज़ शरीफ़ को जो पाकिस्तानी संसद के वोट से इमरान ख़ान को हटाने के बाद अप्रैल 2022 में पाकिस्तान के प्रधान मंत्री बने, उम्मीद थी कि अमरीका की मदद से पाकिस्तान के मामलों का प्रशासन संभाल सकते हैं।

पिछले अप्रैल के महीने में पाकिस्तान की संसद द्वारा प्रधान मंत्री का पद ग्रहण करने के लिए मतदान के पहले घंटों में ही उन्होंने अमरीका के साथ संबंध विकसित करने के लिए अपनी विदेश नीति की प्राथमिकता की घोषणा की थी।

शाहबाज़ शरीफ को पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के रूप में सत्ता में आए लगभग पांच महीने बीत चुके हैं, न केवल पाकिस्तान के साथ संबंधों को विकासित करने में अमेरिका की इच्छा का कोई संकेत नहीं मिला है, बल्कि वाइट हाउस के कार्यक्रमों के बारे में इस्लामाबाद के प्रदर्शन की भी आलोचना हुई है।

पाकिस्तान में कई आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे शाहबाज़ शरीफ को उम्मीद थी कि इमरान खान के जाने से अमरीकी सरकार उनके देश के प्रति नया रुख़ अपनाएगी।

इमरान खान 2018 से 2022 तक पाकिस्तान के प्रधान मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान या विपक्ष में रहते हुए हमेशा ही पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के प्रति अमरीका की योजनाओं की आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखते थे।

इस कारण से, इमरान खान के पाकिस्तान सरकार के प्रमुख के रूप में चार साल के कार्यकाल के दौरान, अमेरिका के साथ देश के संबंध अच्छे नहीं थे।


अमरीका और पाकिस्तान एक बार फिर क़रीब आ रहे हैं?

बाइडन प्रशासन ने पाकिस्तानी सेना को एफ़-16 लड़ाकू विमान बेचने पर सहमति जता दी है।

अमरीकी रक्षा मंत्रालय पेंटागन का कहना है कि पाकिस्तान के साथ हुए एक समझौते के तहत पाकिस्तानी सेना को 450 मिलियन डॉलर के एफ़-16 लड़ाकू विमान बेचे जायेंगे।

यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान, अमरीका से एफ़-16 लड़ाकू विमान ख़रीद रहा है। 1980 के दशक से पाकिस्कान अमरीका से यह लड़ाकू विमान ख़रीदता रहा है, लेकिन इस्लामाबाद को एफ़-16 की आख़िरी डेलिवरी 2010 में हुई थी। उसके बाद से अफ़ग़ानिस्तान और आतंकवाद जैसे मुद्दों को लेकर दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती चली गई, यहां तक कि पूर्व पाकिस्तानी प्रधान मंत्री इमरान के दौर में इस्लामाबाद ने मॉस्को के साथ अपनी निकटता बढ़ानी शुरू कर दी। दूसरी ओर अमरीका का झुकाव भारत की ओर बढ़ता चला गया। लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान की वापसी और यूक्रेन युद्ध ने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय समीकरणों को बिल्कुल बदलकर रख दिया।

यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अमरीका और यूरोपीय देशों ने भारत पर काफ़ी दबाव बनाया कि वह रूस से तेल ख़रीदना बंद कर दे, लेकिन नई दिल्ली ने ऐसा नहीं किया। भारत ने अपने आर्थिक और सामरिक हितों के बीच एक संतुलन बनाने की कोशिश की, लेकिन पश्चिमी देशों को यह बात पसंद नहीं आई। उधर तालिबान को निंयत्रण में रखने और अफ़ग़ानिस्तान में सैन्य ऑप्रेशंस के लिए वाशिंगटन को इस्लामाबाद की ज़रूरत थी और साथ ही उसे रूस की ओर झुकने से रोकना था। इन समीकरणों को मद्देनज़र रखते हुए आख़िरकार बाइडन प्रशासन ने इस्लामाबाद को एफ़-16 विमानों के बेचने पर सहमति जता दी।

बाइडन प्रशासन के इस फ़ैसले से पता चलता है कि वाशिंगटन एक बार फिर इस्लामाद को लेकर अपनी नीति में बदलाव कर रहा है और अब उसे तालिबान या चरमपंथी गुटों के पाकिस्तान के समर्थन से परहेज़ नहीं है। हालांकि 2001 के बाद से लगभग 2010 तक तथाकथित आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई में सहयोग के बदले अमरीका ने पाकिस्तान को बड़े पैमाने पर आर्थिक और सामरिक सहायता प्रदान की थी। लेकिन अब जबकि पाकिस्तान ने काबुल में तालिबान की वापसी और अमरीकी सैनिकों के इस देश से निकलने का खुलकर समर्थन किया था, उसके बावजूद वाशिंगटन ने एक बार फिर पाकिस्तान की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

पिछले साल अगस्त में अफ़ग़ानिस्तान से निकलने के बाद अमरीका को यह उम्मीद थी कि वह पाकिस्तान में अपने कुछ सैन्य अड्डे स्थापित कर लेगा, लेकिन इमरान ख़ान सरकार ने उसे इसकी अनुमति नहीं दी। लेकिन इस्लामाबाद में सत्ता बदलने के बाद ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि पाकिस्तान की वर्तमान सरकार ने तालिबान के ख़िलाफ़ सहयोग के लिए अमरीका के साथ सांठगांठ कर ली है, जिसका इनाम उसे एफ़-16 के रूप में दिया जा रहा है।