नई दिल्ली: अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने तीसरे पक्षों की सभी हस्तक्षेप अर्जियां खारिज कर दीं। कोर्ट ने राम जन्म भूमि बाबरी मस्जिद भूमि विवाद में सिर्फ मूल पक्षकारों को ही सुनने और असम्बद्ध व्यक्तियों के इसमें हस्तक्षेप करने के अनुरोध को अस्वीकार करने का आग्रह स्वीकार किया।
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— The Times Of India (@timesofindia) March 15, 2018
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीब की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ ने इस दलील को स्वीकार कर लिया कि भूमि विवाद के सभी मूल पक्षकारों को ही बहस करने की अनुमति दी जानी चाहिए और इस प्रकरण से असंबद्ध व्यक्तियों की हस्तक्षेप करने के लिए दायर सारी आर्जियां अस्वीकार की जानी चाहिए।
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शीर्ष अदालत ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की भी इस विवाद में हस्तक्षेप के लिए दायर अर्जी अस्वीकार कर दी। हालांकि कोर्ट ने अयोध्या में विवादित स्थल पर बने राम मंदिर में पूजा करने के मौलिक अधिकार को लागू करने के लिए स्वामी की याचिका को बहाल करने का आदेश दिया। स्वामी की इस याचिका का पहले निबटारा कर दिया गया था। स्वामी ने कहा, ‘मैंने एक याचिका यह कहते हुये दायर की थी कि पूजा करना मेरा मौलिक अधिकार है और यह संपत्ति के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है।’
विशेष खंडपीठ के पास इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ14 अपीलें विचारार्थ हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के तीन जजों की पीठ ने 2010 में बहुमत के फैसले में इस विवादित भूमि को राम लला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था।