साहित्य

” भइया इस विषय पर जानकारी दो, मुझे तुम्हारे विरोध में लिखना है”

Sarvesh Kumar Tiwari
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मित्रता!
पिछले दिनों एक चर्चित विषय पर लेख लिखना था। मैं तथ्यों को लेकर तनिक उलझन में था। फिर सोचा कि किसी मित्र से पूछ लेते हैं। उस विषय पर सलाह के लिए मुझे जिस मित्र का नाम ध्यान में आया, मैं उनकी वाल पर गया। वहाँ देख रहा हूँ कि मित्र उसी विषय पर लगातार पोस्ट किए हुए हैं, और उनका मत मुझसे बिल्कुल विपरीत है।

हम पहले तो झिझके कि अब इनसे क्या ही पूछें! ये तो बिल्कुल ही विरोध में हैं। पर उस विषय पर उतनी सटीक जानकारी दे सकने वाला दूसरा कोई नाम याद नहीं आ रहा था। फिर मैंने हार कर उन्ही को मैसेज किया, ” भइया इस विषय पर जानकारी दो, मुझे तुम्हारे विरोध में लिखना है।”

भाई साहब हँसने लगे। फिर हमने फोन पर बात की। मुझे उस विषय पर जितने प्रश्न पूछने थे, सब पूछ लिया। उन्होंने खुशी खुशी सब बताया और उन्ही से तथ्य ले कर मैंने उनके विचारों के विपरीत लेख लिख कर पोस्ट किया।

मित्रता इसी सकारात्मक व्यवहार का नाम है। सम्बन्धों में इतनी सहजता होनी ही चाहिए कि कुछ मुद्दों पर हमलोग अलग अलग विचार रखते हुए भी साथ चल सकें। यह भरोसा कि किसी विषय पर असहमति होने पर भी हमारा मित्र हमें गाली नहीं देगा, हमारा अहित नहीं करेगा, मित्रता की मूल शक्ति होती है। यह भरोसा न हो तो मित्रता सिवाय छलावे के और कुछ नहीं।

दो व्यक्ति हर विषय पर एकमत नहीं हो सकते। उनकी दृष्टि अलग होगी, परिस्थितियां अलग होंगी, तो किन्ही मुद्दों पर विचार भी अलग हो ही सकते हैं। इस असहमति का स्वागत होना चाहिये।

भगवान श्रीकृष्ण के सबसे अच्छे मित्रों में से थे उद्धव! उनकी मित्रता की लोक में इतनी प्रतिष्ठा रही कि अब भी दो जिगरी दोस्तों को गाँव में लोग उधो-माधो(उद्धव-माधव) कहते हैं। पर मित्रता के दिनों में भक्ति और प्रेम को लेकर दोनों में मतभेद ही रहे। हालांकि यह मतभेद कभी उनकी मित्रता को प्रभावित नहीं कर सका।

भारत की राजनीति में नरसिम्ह राव और अटल विहारी वाजपेयी की मित्रता खूब प्रसिद्ध रही, पर दोनों जीवन भर दो अलग वैचारिक खेमों में रहे और दोनों के बीच वैचारिक द्वंद चलता रहा। फिर भी मित्रता बनी रही। एक दूसरे का सम्मान कभी कम न हुआ, एक दूसरे पर कभी भरोसा कम न हुआ।

हालांकि यह भी सच है कि जीवन में हमें हजार मित्र नहीं मिल सकते। एक दो भी मिल गए तो जीवन धन्य समझिये, क्योंकि इससे अधिक से तो आप भी निभा नहीं सकेंगे। तो जितने हैं, उनके विचारों का आदर किया जाना चाहिये।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।