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भारत के क़रीबी समझे जाने वाले देश के राजनैतिक हालात पर चीन की नज़र!

नेपाल की सत्ता पर पुष्प कमल दहल की पकड़ बहुत मज़बूत हो गई है और उन्हें अनुमानो से कहीं आगे जाकर प्रचंड बहुमत मिल गया है।

गत 25 दिसबंर को पुष्प कमल दाहाल प्रचंड तीसरी बार नेपाल के प्रधानमंत्री बने थे और मंगलवार को उन्हें बहुमत साबित करना था। 275 सदस्यों वाली नेपाल की प्रतिनिधि सभा में प्रचंड को बहुमत साबित करने के लिए 138 सदस्यों के समर्थन की ज़रूरत थी, लेकिन 268 सांसदों ने उनके समर्थन में वोट डाला।

प्रतिनिधि सभा में कुल 270 सांसद मौजूद थे और इनमें से 268 ने प्रचंड के समर्थन में वोट किया, केवल दो सांसदों ने प्रचंड के ख़िलाफ़ वोट किया।

प्रचंड की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (माओवादी सेंटर) के केवल 32 सांसद हैं, प्रचंड को केपी शर्मा ओली की पार्टी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ नेपाल (एकीकृत मार्क्सवादी-लेनिनवादी) का समर्थन मिला है, ओली की पार्टी के पास 78 सीटें हैं।

ओली और प्रचंड के हाथ मिलाने के बाद नेपाली कांग्रेस विपक्ष में हो गई थी, ऐसा माना जा रहा था कि नेपाली कांग्रेस 10 जनवरी को पुरज़ोर कोशिश करेगी कि प्रचंड संसद में बहुत हासिल न कर पाएं। मगर ख़ुद नेपाली कांग्रेस के 89 सदस्यों ने प्रचंड के समर्थन में वोट कर दिया।

नेपाली कांग्रेस के इस रुख़ से नेपाल का लोकतंत्र फ़िलहाल पूरी तरह से विपक्ष विहीन हो गया है।

काठमांडू पोस्ट की ख़बर के मुताबिक़ प्रचंड के नेतृत्व वाली सत्ताधारी गठबंधन सरकार ने भारत से लिंपियाधुरा, कालापानी और लिपुलेख को ‘वापस’ लेने का वादा किया है।

इस ख़बर के मुताबिक़ सत्ताधारी गठबंधन का कॉमन मिनिमम प्रोग्राम सोमवार को सार्वजनिक हुआ और इसी में यह वादा किया गया है।

मई 2020 में भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में धारचुला से चीन की सीमा लिपुलेख तक एक सड़क का उद्घाटन किया था, नेपाल का दावा है कि सड़क उसके क्षेत्र से होकर गई है, अभी यह इलाक़ा भारत के नियंत्रण में है।