देश

भारत : #माइक्रोफ़ाइनेंस की इस परियोजना से हज़ारों ग्रामीण महिलाओं का जीवन बदल रहा है!

माइक्रोफाइनेंस योजनाओं ने भारत में करोड़ों गरीब महिलाओं की जिंदगी बदल दी है. लेकिन महजन इन योजनाओं को लोगों तक पहुंचने ही नहीं देना चाहते.

मध्य भारत के एक गांव में रहने वालीं चंद्रावती राजपूत को तब रातों को नींद नहीं आती थी. उन्होंने बेटे की पढ़ाई के लिए महाजन से दो बार कर्ज लिया था और उसे चुकाना पहाड़ हो गया था. रोजाना का पांच प्रतिशत ब्याज लगता था. 20 हजार रुपये के उस लोन का ब्याज देने के लिए चंद्रावती ने अपनी अपने सोने के कंगन बेच दिए थे. पर महाजन का तकाजा खत्म नहीं हुआ.

मध्य प्रदेश के नरेला गांव में रहने वालीं चंद्रावती राजपूत याद करती हैं, “जब जरूरत होती है तो महाजन ही एकमात्र विकल्प होता है. लेकिन वे निर्दयी होते हैं.” महाजन ने उन्हें डराया, धमकाया, गालियां दीं और मारने-पीटने की धमकी भी दी.

पर अब वे दिन गुजर चुके हैं. 2020 में वह स्थानीय महिलाओं के लिए चलाई जा रही माइक्रोफाइनेंस परियोजना से जुड़ीं. उस परियोजना में संस्था ही गारंटर बन जाती है जिसके चलते महिलाओं को कर्ज मिल पाता है. राजपूत ने 30 हजार रुपये का कर्ज लिया और दूध की डेयरी शुरू की. उनके पास एक भैंस और सात गायें हैं. साथ ही उन्होंने बच्चों के कपड़ों की एक दुकान भी खोल ली है.

अब राजपूत मासिक 90 हजार रुपये तक कमा रही हैं जो खेतीहर मजदूरी के दौरान की उनकी कमाई से लगभग तीन गुना ज्यादा है. वह कहती हैं कि वह आसानी से स्पंदन स्फूर्ति माइक्रोफाइनेंस कंपनी के कर्ज की मासिक किश्त चुका पा रही हैं जो लगभग 1660 रुपये बनती है. वह कहती हैं, “पहली बार ऐसा हुआ है कि मुझे ये फिक्र नहीं होती कि घर कैसे चलेगा.” वह अपने व्यापार को बढ़ाना चाहती हैं और बच्चों को भी अपना व्यापार करने के लिए प्रेरित कर रही हैं.

माइक्रोफाइनेंस की इस परियोजना से हजारों ग्रामीण महिलाओं का जीवन बदल रहा है. दूर-दराज इलाकों में जहां बैंकों की या तो पहुंच नहीं है या फिर वे गरीब लोगों को कर्ज नहीं देना चाहते, वहां इस परियोजना ने लोगों की जिंदगी संवार दी है. 20 से ज्यादा महिलाओं ने थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया कि वे कर्ज के लिए बैंक नहीं गईं क्योंकि बैंक वाले या तो गिरवी रखने के लिए कुछ संपत्ति चाहते हैं जो उनके पास नहीं है, या फिर इतनी कागजी कार्रवाई करते हैं कि गरीब अनपढ़ ग्रामीण महिलाएं बेबस हो जाती हैं.

भारत के नेशनल सेंटर फॉर फाइनेंस एजुकेशन के मुताबिक भारत के 75 प्रतिशत वयस्क वित्तीय रूप से अनपढ़ हैं. महिलाओं की संख्या तो 80 फीसदी है. वीगो (WEIGO) एक नेटवर्क है जो अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों, खासकर महिलाओं की मदद करता है. भारत में वीगो की प्रतिनिधि शालिनी सिन्हा कहती हैं यदि गरीब महिलाओं को वित्तीय शिक्षा नहीं दी गई तो उनका महाजनों के चंगुल में फंसना जारी रहेगा.

हर ओर महाजन
ये महाजन जगह-जगह फैले हैं. स्थानीय बाजारों में सुनार, या इसी तरह के दुकानदार से लेकर ठेकेदार तक, तमाम लोग महाजनी करते हैं. बैंकों की तुलना में उन तक पहुंचना आसान है और वे बिना कागजात के कर्ज दे देते हैं. सिन्हा कहती हैं, “लेकिन वे जो ब्याज लेते हैं वो इतना ज्यादा होता है कि चुकाया ही नहीं जा सकता. उसे चुकाने के लिए महिलाएं दूसरा कर्ज लेती हैं और फिर तीसरा. इस तरह वे कुचक्र में फंस जाती हैं.”

ग्रामीण भारत में कर्ज के बाजार पर महाजनों का कब्जा है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है. विशेषज्ञ बताते हैं कि वे 10 प्रतिशत रोजाना तक ब्याज लेते हैं. और जो चुका ना सके, उसे बख्शा नहीं जाता. उनके साथ जोर-जबरदस्ती और मारपीट तक होती है.

सितंबर में आंध्र प्रदेश के एक शादीशुदा जोड़े ने इसलिए खुदकुशी कर ली क्योंकि महाजन उन्हें परेशान कर रहे थे. उनकी निजी तस्वीरों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करने की धमकी तक दी गई थी. आंध्र प्रदेश माइक्रोफाइनेंस का बड़ा केंद्र रहा है. हालांकि उधार लेने वालों में खुदकुशी के बढ़ते मामलों के चलते राज्य ने करीब एक दशक पहले सख्ती बरतनी शुरू कर दी थी. 2015 में बिना लाइसेंस लिए महाजनी करने पर पाबंदी लगा दी गई और करीब 200 महाजनों को गिरफ्तार भी किया गया क्योंकि वे लोगों को धमका रहे थे.

सम्मानजनक जीवन
विवेक तिवारी दिल्ली स्थित सत्य माइक्रोकैपिटल लिमिटेड के प्रमुख हैं. वह कहते हैं कि उनकी मुख्य चुनौती नई नई जगहों पर अनौपचारिक रूप से कर्ज देने वालों से निपटना होती है. एक बार तो उनके एक सहकर्मी को बंदूक की नोक पर धमकाया गया था. वह कहते हैं, “वे इस बाजार में हमें बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं.”

तिवारी दिल्ली स्थित माइक्रोफाइनेंस इंस्टीट्यूशंस नेटवर्क (MFIN) के उपाध्यक्ष भी हैं. वह कहते हैं कि ये संस्थान अंदरूनी इलाकों तक पहुंच रहे हैं और लोगों की मदद करने में उन्हें बड़ी कामयाबी मिली है.

भारत में छह करोड़ से ज्यादा महिलाओं के पास ऐसे गांरटी बिना कर्ज हैं, जिसका लाभ 30 करोड़ परिवारों को मिला है. तिवारी कहते हैं, “हम लोगों को ज्यादा आजादी दे रहे हैं. वे कर्ज ले सकते हैं और सिर उठाकर उसे चुका सकते हैं. इसीलिए वे दोबारा महाजनों के चंगुल में नहीं फंसना चाहते.”

वीके/एनआर (रॉयटर्स)