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भारत में सरकारी एजेंसियों की ओर से अवैध, मनमाने ढंग से हत्याएँ हुईं, अल्पसंख्यक समुदाय, सरकार के आलोचकों ,पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है : अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट!

अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने दुनिया भर के देशों में मानवाधिकार की स्थिति को लेकर सालाना रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट में भारत के लिए कहा गया है कि वहाँ ‘मानवाधिकार हनन के मामले सामने आए हैं और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों, सरकार के आलोचकों और पत्रकारों को निशाना बनाया जा रहा है.’

इस रिपोर्ट पर भारत की प्रतिक्रिया अभी तक सामने नहीं आई है, प्रतिक्रिया मिलते ही उसे इस रिपोर्ट में शामिल किया जाएगा.

सोमवार को आई इस रिपोर्ट के लगभग एक साल पहले अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कहा था कि वह भारत में हो रही तमाम गतिविधियों पर नज़र बनाए हुए हैं “जिनमें देश में बढ़ते मानवाधिकार हनन के मामले भी शामिल हैं.” ये बात ब्लिंकन ने जिस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कही थी उसमें भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद थे.

हालांकि मानवाधिकार के मुद्दे पर भारत के दोनों केंद्रीय मंत्रियों ने उस वक़्त कोई बयान नहीं दिया था.

ये अमेरिकी सरकार की ओर से आने वाली सालाना रिपोर्ट है जिसमें दुनिया के हर देश में मानवाधिकार की क्या हालत है, इसे लेकर विस्तृत रिपोर्ट छापी जाती है. ये रिपोर्ट साल 2022 की है.

अमेरिकी रिपोर्ट भारत को लेकर क्या कहती है?
रिपोर्ट में लिखा है, “भारत में सरकारी एजेंसियों की ओर से अवैध, मनमाने ढंग से हत्याएँ हुईं. जेलों में क्रूर और अमानवीय तरीके से कैदियों के साथ व्यवहार किया जाता है. राजनीतिक कैदियों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा रहा है, मीडिया पर सरकार की ओर से अंकुश लगाया जा रहा है, पत्रकारों की अनुचित गिरफ़्तारी हो रही है और उन पर केस दायर किए जा रहे हैं. लोगों की अभिव्यक्ति को रोकने लिए लोगों पर आपराधिक केस लगाए जा रहे हैं या लगाने की धमकी दी जा रही है, इंटरनेट पर रोक लगाकर जनसंचार को बाधित किया जा रहा है.”

रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल भारत में 2116 लोगों की मौत न्यायिक हिरासत में हुई. जो साल 2020 से 12 फ़ीसदी ज़्यादा अधिक है. रिपोर्ट में कहा गया कि ज़्यादातर मौतें प्राकृतिक कारणों से हुई और हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश और बिहार में हुईं.

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2021 में कोर्ट ट्रायल के इंतज़ार में 70 फ़ीसदी कैदियों को तीन महीने या उससे अधिक समय तक ज़मानत नहीं मिल सकी.


आलोचकों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर यूएपीए
अमेरिकी रिपोर्ट कहती है कि “भारत की केंद्र सरकार और राज्य सरकारों ने कई लोगों को सख़्त कानून यूएपीए के तहत लंबे वक़्त तक जेल में रखा. केंद्र की सरकार ने मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकारों पर यूएपीए लगाया और उन्हें हिरासत में लिया.”

ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए एक ऐसा क़ानून है जिसमें जांच एजेंसी किसी व्यक्ति को ‘आतंकवादी’ होने या देश विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के संदेह में बिना कोई आरोप तय किए 180 दिनों तक हिरासत में रख सकती है. इस मामले में ज़मानत मिलना काफ़ी मुश्किल होता है.

साल 2018 से साल 2020 के बीच 4690 मामले यूएपीए के दर्ज किए गए और इनमें से केवल 149 मामले में ही अभियुक्त दोषी साबित हो पाए. उत्तर प्रदेश सरकार ने इस कानून का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया.

मोदी सरकार पर कई विदेशी मानवाधिकार संस्थाएं ये आरोप लगाती हैं कि वह अल्पसंख्यकों, राजनीतिक आलोचकों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को निशाना बना रही है.

अमेरिका की रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि भारत में समाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों पर अंकुश लगाने के लिए उन्हें मनमाने ढंग से आपराधिक मामलों में गिरफ़्तार किया जा रहा है.

केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन को 28 महीने जेल में बंद रहना पड़ा और इस साल फरवरी में उन्हें ज़मानत मिली. सद्दीक कप्पन पाँच अक्टूबर, 2020 को हाथरस गैंगरेप मामले की रिपोर्टिंग करने उत्तर प्रदेश जा रहे थे तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और उनके ख़िलाफ़ यूएपीए की धाराएँ लगाई गईं.

बीते साल जून में फ़ैक्ट चेकिंग वेबसाइट के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर को उनके एक ट्वीट के लिए गिरफ़्तार किया गया. मोहम्मद ज़ुबैर मोदी सरकार, नेताओं और कई बार मेनस्ट्रीम न्यूज़ चैनल की ओर से किए गए दावों का फ़ैक्ट चेक करते रहे हैं.

उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर यूपी में छह और एफ़आईआर दर्ज हुई थीं लेकिन जुलाई, 2022 में सुप्रीम कोर्ट ने मोहम्मद जुबैर को अंतरिम ज़मानत देते हुए उनके ख़िलाफ़ दर्ज सभी एफ़आईआर एक करने का आदेश किया था. इसके बाद मोहम्मद जुबैर की रिहाई हो पाई.


अमेरिकी रिपोर्ट में ‘बुलडोज़र अभियान’ का ज़िक्र

अमेरिका की रिपोर्ट में कहा गया है कि “मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि मुस्लिम समुदाय से आने वाले लोग जो सरकार की आलोचना करते हैं, उनके घरों पर बुलडोज़र चलाए जा रहे हैं और उनकी आजीविका बर्बाद की जा रही है.”

साल 2022 में भारत के कई हिस्सों में ‘अतिक्रमण विरोधी अभियान’ चलाकर लोगों के घर बुलडोज़र से तोड़ दिए गए. इस अभियान की जद में जिनके घर आए उनमें से अधिकतर मुसलमान परिवारों के थे.

साल 2019 में जब मोदी सरकार नया नागरिकता क़ानून लेकर आई तो इसे संयुक्त राष्ट्र ने ‘मूल रूप से भेदभाव करने वाला’ बताया. संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारत का नया नागरिकता कानून हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को तो नागरिकता देने की बात करता है लेकिन मुसलमानों को अपनी सूची में शामिल तक नहीं किया गया है.

साल 2019 में इस कानून को लेकर देश के अलग-अलग हिस्से में विरोध प्रदर्शन हुए थे. दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में महिलाओं की अगुवाई में 101 दिन प्रदर्शन चले लेकिन कोरोना और उससे पहले दिल्ली के पूर्वोत्तर इलाके में हुए दंगे के कारण ये प्रदर्शन ख़त्म हो गए.

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टीम बीबीसी हिन्दी
नई दिल्ली