साहित्य

मनुष्य के जीवन में प्रतिदिन चारों युग आते हैं, इस प्रकार राष्ट्रगान पूरी तरह भारतीय संस्कृति का संवाहक है : #लक्ष्मी_सिन्हा का लेख पढ़िये

Laxmi Sinha

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हमारे राष्ट्रगान का प्रभाव ‘जन_ गण_ मन’ से होता
है। मानव शरीर जहां विविध जनों का सूचक है तो
मनुष्य की प्रवृतियां और सोच_विचार उनके गण हैं।
इन्हीं गाणों के अधीन मनुष्य जीवनपर्यंत रहता है,
जोमन को प्रभावित करता है।मन को नियंत्रण करने
की साधना ऋषियों ने भी बताई है, जिससे मनुष्य
का विवेक जागृत होता है। यही विवेक मन का
“अधिनायक” बन जाता है। मन सशक्त होता है तो
राष्ट्रगान में विविध प्रांतों का उल्लेख ‘वासुधैव
कुटुंबकम्’की भावना को दर्शाता है। इसमें तीन बार
‘जय हे, जय हे, जय हे’, गायत्री मंत्र के भू:- भुव:-
स्व:’ की जय के साथ, त्रिकाल (आतीत, वर्तमान
एवं भविष्य) के उज्जवल पक्ष की जय का सूचक
है। हमारे ऋषियों ने तीन शक्तियों_ इच्छा, ज्ञान एवं
क्रिया शक्ति को उदात्त बनाने का संदेश दिया है।
महालक्ष्मी इच्छाशक्ति के रूप में पूजित होती है तो
मां सरस्वती ज्ञानशक्ति एवं महाकाली क्रियाशक्ति
के रूप में आराध्य है। हमारे त्रिदेव भी ब्रह्मा सृजन,
विष्णु पालन तथा महादेव संहार के देवता हैं। ये
जीवन में सृजन,उसका संवर्धन, फिर अंत में त्याग
की राह बताते हैं।अंत में ‘जय जय जय जय हे’चारों
वर्ण,चारों युग एवं चारों दिशाओं में जय की कामना
है। मनुष्य के जीवन में प्रतिदिन चारों युग आते हैं।
ब्रह्म मुहूर्त सतयुग, पूर्वाह्न त्रेता युग, पूरा दिन द्वापर
तथा रात्रिकाल कालियुग के समान है हर व्यक्ति
ब्रह्म मुहूर्त में जब बुद्धि का प्रयोग कर दिनचार्या
निर्धारित करता है तो वह ब्राह्मण, उसके बाद जब
वह शरीर एवं घर परिवार की सुरक्षा में लगता है
तब क्षत्रिय, जब आजीविका में सलंग्न होता है तो
वैश्य तथा जब वह वृद्ध माता_ पिता गुरु या किसी
अशक्त की सेवा में लगता है तब सेवक होता है।
52 सेकेंड में राष्ट्रगान गाना 52 अक्षरों का ज्ञान
करने के लिए है, जिन्हें शक्तिपीठ भी माना गया है।
इस प्रकार राष्ट्रगान पूरी तरह भारतीय संस्कृति का
संवाहक है।

#लक्ष्मी_सिन्हा

प्रदेश संगठन सचिव महिला प्रकोष्ठ

राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (बिहार)