साहित्य

मानो जब झूठ फुसफुसाता है, भीख मांगता है, तब हम दहाड़ते हुए दम तोड़ ही देते है…By-भारद्वाज दिलीप

भारद्वाज दिलीप
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८८दिन के ध्यान के बाद आज
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मानो जब झूठ फुसफुसाता है,
भीख मांगता है,
कहानियों को सच होने के लिए मजबूर करता है।
तब हम दहाड़ते हुए दम तोड़ ही देते है।
और जब झूठी आत्मा भी मरने लगती हैं,
और एक समय बाद
फिर एक सत्य की शांति उड़ती
धीरे-धीरे हमेशा सत्य और झूठ के मध्य रहे
रिक्त स्थान में
एक प्रकार के चिर और चमकीले
बिजली से कंपन जैसी उत्पन्न होने की ओर जाने लगते हैं
हमारी इंद्रियां वैसी कभी भी पहले जैसी
नहीं रहती
हमसे फिर कानाफूसी नहीं करती हैं।
आसपास लोग मौजूद थे और रहते हैं
हम रहते हैं और रह सकते हैं
बनते रहते हैं और बेहतर।
और शेष रहता है सत्य,
ध्यान में सत्य का अर्थ।
क्योंकि अंतिम सत्य सिर्फ ध्यान की ध्वनि में मौजूद है और रहेगा।
० भारद्वाज दिलीप


भूमिजा देवभारद्वाज दिलीप
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तुम्हारी तपस्या
केवल तुम्हारी
नही है
तुम्हारे पीछे की तपस्या और भी कठिन है
तुम्हे ज्ञात तो होगा
स्त्री के बिना पुरुष
की तपस्या…??
जिस रोज़ तुमने
वो राजसी वस्त्र त्यागे
उसी पल से उसने
भी एक झीनी चिथड़े मे
देह छुपा ली …
वो मखमली सेज़ की कोमलता की चुभन
उसे बर्दाश्त न हुई…
तुमने अपने केश जो हवा में
उछाल दिये
तो उसने भी अपनी प्राणों से प्रिय काली घटाओं को
न सवारां…..
यदि तुम सात कौर खाते तो
उसने भी सात से अधिक न खाये ….
तुम जंगलो में तपे, तुम कंदराओं में बसे
पर उसने तो सारे कांटे,सारे जंगल, सारी कंदराएँ,काली राते, ज्येष्ठ की धूप,भादो की बारिश,पौष की ठिठुरन सब अपने भीतर उगा ली…..
कहो हे!!तथागत
तुम यशोधरा के आभूषण, उसके राजसी वस्त्र ,उसकी नींदे, उसकी भूख उसकी साँसे,उसकी मीठास साथ क्यो
ले गए…….
बस इतना बता दो
क्या तुम उसके साथ ये
तपस्या नही कर सकते थे
यदि नही तो क्या..
मैं तुम्हें तथागत यशोधरा बुद्ध
क्यों न कहूँ…?????