धर्म

मुसलमानों के बीच एकता एक अहम ज़रूरत : इस्लाम के दुश्मनों की साज़िशें नाकाम हो रही हैं : पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शुभ जन्म दिवस पर विशेष!

​​​​​​​9 अक्तूबर रविवार को दुनिया भर के सुन्नी मुसलमान पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शुभ जन्म दिवस का जश्न मना रहे हैं, जबकि शिया मुसलमान यह जश्न 5 दिन बाद यानी 17 रबीउल अव्वल को मनायेंगे।

ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी ने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के शुभ जन्म दिवस के अवसर को मुसलमानों के बीच एकता और भाईचारा बढ़ाने के अवसर में बदल दिया और रबीउल अव्वल महीने के तीसरे हफ़्ते को एकता सप्ताह के रूप में मनाए जाने का आहवान किया।

मुसलमानों के बीच फूट डालकर राज करने वाली साम्राज्यवादी शक्तियों के लिए इमाम ख़ुमैनी का यह एलान किसी बड़े हमले से कम नहीं था, इसलिए उन्होंने भी मुसलमानों को बांटने के अपने प्रयासों में वृद्धि कर दी।

हालांकि जैसे जैसे मुसलमान जागरुक हो रहे हैं और इस्लामी जगत में एकजुटता के महत्व को समझ रहे हैं, इस्लाम के दुश्मनों की साज़िशें नाकाम हो रही हैं।

मुस्लिम विद्वानों का मानना है कि मुसलमानों के सभी मत और सम्प्रदाय अपने धार्मिक विश्वासों पर बाक़ी रहते हुए भी एक ईश्वर, पैग़म्बर और क़ुरान पर एकमत हो सकते हैं, क्योंकि इस्लाम के इन बुनियादी सिद्धांतों के बारे में मुसलमानों के बीच कोई गहरा मतभेद नहीं है।

ईरान समेत दुनिया के कई देशों में एकता सप्ताह के अवसर पर सम्मेलनों, कांफ़्रेंसों और प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है और एकता और एकजुटता की ज़रूरत पर बल दिया जाता है।

इस बात में कोई शक नहीं है कि पैग़म्बरे इस्लाम के सामने एकेश्वरवाद के विस्तार और उसके आधार पर इस्लामी समाज में एकता पैदा करने के मार्ग में कुछ रुकावटें थीं जिनमें सबसे बड़ी रुकावट क़बायली व जातीय भेदभाव था। वह अपनी बातचीत और व्यवहार में अज्ञानता के दौर के इस विचार का कड़ाई से विरोध करते थे और ईश्वर से डर को एक दूसरे से बेहतर होने का मानदंड बताते हुए इसी परिप्रेक्ष्य में फ़रमाया थाः “मुसलमान आपस में भाई हैं और किसी को किसी पर वरीयता नहीं है।” पैग़म्बरे इस्लाम ने बिलाल हबशी को अपना मोअज़्ज़िन नियुक्त किया। वे अज़ान देते थे। इसी तरह पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत से लोगों को जिनका वंश मशहूर न था, अलग अलग तरह की ज़िम्मेदारियां सौंपी थीं और उन्हें वे अहमियत देते थे। शायद इन्हीं लोगों में सलमान फ़ारसी भी थे जिनकी महानता का पैग़म्बरे इस्लाम ने इन शब्दों में वर्णन किया हैः “सलमान हमारे परिजनों में हैं।”

जब तक किसी समाज की मानसिकता व संस्कृति न बदले इस समय तक उसके सदस्यों के बीच एकता व समरस्ता पैदा करना मुमकिन नहीं है। यही वजह है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने सबको ईश्वर की ओर बुलाया। उन्होंने लोगों को उस ईश्वर की ओर बुलाया जो अकेला है। जैसा कि पवित्र क़ुरआन के आले इमरान सूरे की आयत नंबर 103 में ईश्वर कह रहा है “ईश्वर की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो, पृथक मत रहो और ईश्वर की उस नेमत को याद करो कि तुम आपस में एक दूसरे के दुश्मन थे और उसने तुम्हारे मन में एक दूसरे के लिए प्रेम जगाया और उसकी नेमत की वजह से एक दसूरे के भाई बन गए।” इसीलिए यह पूरी तरह सच है कि इस्लाम के महान पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का अस्तित्व विभिन्न युगों में मुसलमानों के लिए प्रेणा और एकता का स्रोत रहा है। आज भी, यह महान व्यक्तित्व दुनिया के सभी मुसलमानों में भावनाओं की धुरी और एकता की प्रेरणादायक शक्ति है।

पैग़म्बरे इस्लाम जो महान हस्ती का सर्वोच्च उदाहरण हैं संपूर्णता के स्रोत से समन्वित हैं वह कमाल और महानता में इतनी ऊंचाई पर पहुंच चुके हैं कि बहुत से फ़रिश्ते भी वहां नहीं पहुंचे हैं। पैग़म्बरे इस्लाम अपने महान चमत्कार यानी क़ुरआन की मदद से एक आकर्षक और जीवंत मत लेकर आए जो इंसान की प्रकृति और प्रवृत्ति से तालमेल रखता है और हर ज़माने में उसकी ज़रूरतें पूरी करने में सक्षम है। आज़ादी, इंसानियत, प्रेम, मानवाधिकार जैसे विषय जो आज स्वार्थी ताक़तों के हाथों खिलवाड़ बन गए हैं पैग़म्बरे इस्लाम के कठिन प्रयासों से सार्थक बने थे। उनका संदेश दोस्ती, भाईचारे और इंसानों के बीच न्याय का संदेश है। यह शैली हमेशा बाक़ी रहने वाली है।