धर्म

मुसलमान आपस में मुहब्बत करें, हमदर्दी रखें, बराबरी का बर्ताव करें और मिल-जुल कर रहें!

मोहम्मद सलीम
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तमाम मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं।
एक दिन, जबकि तमाम मुसलमान मुहाजिर और अन्सार अबू अयूब अंसारी (र.अ) के मकान के मैदान में जमा थे, हुजूर (ﷺ) ने एक वाज फ़रमाया और बताया कि –
“तमाम मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं। सगे भाइयों से ज्यादा आपस में मुहब्बत होनी चाहिए। जो मुसलमान आपस में अपने भाई यानी मुसलमान की मदद न करेगा, उस के दुख-दर्द में शामिल न होगा, किसी मुसलमान से हसद करेगा या किसी मुसलमान से दुश्मनी करेगा या किसी मुसलमान को तक्लीफ़ देगा या नुक्सान पहुंचाएगा, उस पर कहरे इलाही नाजिल होगा। क़ियामत के दिन मैं उस की सिफ़ारिश न करूंगा। उस के तमाम अमल जाया हो जायेंगे और वह दोजख की दहकती हुई आग का इंधन बनने के लिए डाल दिया जाएगा।

तकम्बूर और घमंड शैतानी वसवसा है। अपने किसी मुसलमान भाई को अपने से कमतर समझना किसी गरीब मुसलमान को खस्ता हाल होने की वजह से हकीर ख्याल करना निहायत बुरी बात है, इस से अल्लाह नाराज होता है। कियामत के दिन दौलतमंदी या खानदान न पूछा जाएगा, बल्कि अमल के बारे में सवाल होगा, रोजा, हज, जकात, नमाज के बारे में पूछा जाएगा।

मुसलमानों को हकीरं समझने वाले मुसलमानों के अमल भी जाया हो जायेंगे और वे भी दोजख की दहकती आग में डाल दिये जायेंगे।
मुसलमान भाई-भाई हैं और उन्हें भाई-भाई ही बन कर रहना है।

एक खुशहाल और असरदार मुसलमान का फर्ज है कि वह अपने से ग़रीब की हर मुम्किन मदद करे। जब कोई मुसलमान किसी मुसलमान की मदद करता है, तो अल्लाह उस से खुश होता है। फ़रिश्ते उस के हक में दुआ-ए-खैर करते है।

अल्लाह अपने मुकर्रब फ़रिश्तों से फ़रमाता है कि तुम गवाह रहो कि मैं ने आज फला मुसलमान के तमाम गुनाह इस लिए माफ़ कर दिए कि उस ने फला गरीब और मुसीबतज़दा अपने मुसलमान भाई की मदद की है, किस कदर खुशी की जगह है कि जब कोई मुसलमान किसी मुसलमान की मदद करता है, तो खुदा उस से इस कदर खुश होता है कि उस के तमाम पिछले गुनाह माफ़ कर देता है।

इस लिए मुसलमानो! आपस में मुहब्बत और ताल्लुक बनाए रखो, किसी मुसलमान को हकीर और जलील न समझो, वरना तुम्हारे भले अमल जाया कर दिए जायेंगे और तुम बड़े घाटे में रहोगे।

जंब तमाम मुसलमान आपस में भाई-भाई हैं, तो हर तबके के मुसलमान आपस में बराबरी का दर्जा रखते हैं। एक मुसलमान की दूसरे मुसलमान पर कोई बरतरी नहीं है।
अल्लाह का यही हुक्म है कि मुसलमान आपस में मुहब्बत करें, हमदर्दी रखें, बराबरी का बर्ताव करें और मिल-जुल कर रहें।

मुसलमानों का यह फ़र्ज है कि अपने गरीब भाई की हर मुम्किन तरीके से मदद करें।

जो मुसलमान किसी मुसलमान को जंग या मुसीबत से बचाता हुआ मारा जाएगा, वह शहीद कहलाएगा, शहीद मरते नहीं, बल्कि जिंदा रहते हैं।
मुसलमानो ! अल्लाह की खुशी हासिल करना चाहते हो, तो आपस में मुहब्बत और भाईचारा पैदा करो। कभी किसी मुसलमान से दुश्मनी न रखो।”

📕 सिरतून नबी (ﷺ) सीरीज | Part 28