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मुस्लिम क्रिकेटर ने करी फ़ैक्टरी में 35 रूपये की नौकरी,फिर जिताया भारत को वर्ल्ड कप, अब कहा- अलविदा क्रिकेट

नई दिल्ली: भारतीय क्रिकेट टीम में अनिल कुंबले और हरभजन सिंह की स्पिन बोलिंग की दुनियाभर में तारीफ होती थी लेकिन इसके साथ साथ फ़ास्ट बॉलर की ज़रूरत थी जो इंग्लिश टीमों को चकमा दे सके,तेज़ पिचों पर बोलिंग का जोहर दिखा सके।

मुनाफ पटेल ने भारत को तेज़ गेंदबाज़ के रूप में।दुनियाभर के बल्लेबाजों को धड़ाम किये,लेकिन लम्बे समय से टीम से बाहर चल रहे,खेल के सभी रूपों को छोड़ने का फैसला किया है। अपने इस फैसले पर मुनाफ ने कहा कि उन्हें इसका कोई अफसोस नहीं है। चूंकि साथ खेलने वाले सभी खिलाड़ी रिटायर्ड हो चुके हैं। सिर्फ धोनी ही बचे हैं।

पूर्व गेंदबाज ने कहा, ‘सबका टाइम खत्म हो चुका है। गम होता जब सारे खेल रहे होते और मैं रिटायर हो रहा होता।’ हालांकि मुनाफ पटेल ने साफ किया है कि वो दुबई में होने वाली टी-10 लीग में हिस्सा लेंगे और कोचिंग में अपना करियर बनाना चाहते हैं। पूर्व गेंदबाज ने कहा, ‘फिर भी एक व्यक्ति जिसने अपना पूरा जीवन क्रिकेट खेलने में गुजार दिया, उसके लिए यह महत्वपूर्ण फैसला लेना आसान नहीं था। कई साल पहले भारत के लिए आखिरी मैच खेलने के बावजूद भी मेरा मन आज भी नहीं मान रहा कि क्रिकेट छोड़ दूं। मुझे कुछ समझ नहीं आता, क्रिकेट ही समझ आता है।’

अपने इस निर्णय के लिए करीबी दोस्त इस्माइल भाई से चर्चा करने के बाद 35 साल के मुनाफ पटेल ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘कोई खास वजह नहीं है। उम्र हो चुकी है। फेटनेस हर समय एक जैसी नहीं रहती। युवा मौके का इंतजार कर रहे हैं। अगर में ऐसा नहीं करता तो यह अच्छा नहीं है। सबसे खास बात यह है कि अब कोई वजह भी नहीं रह गई है। मैं 2011 में विश्व कप विजेता टीम का हिस्सा था। इससे अच्छा तो कुछ नहीं हो सकता है।’ 2011 विश्व कप में टीम इंडिया के गेंदबाजी कोच एरिक सिमंस ने तो मुनाफ पटेल को विश्व कप का एक ‘अज्ञात योद्धा’ बताया था। टूर्नामेंट में उन्होंने तीसरे सबसे ज्यादा विकेट हासिल किए थे। पहले नंबर जहीर खान, दूसरे पर युवराज सिंह थे।

भारत के लिए क्रिकेट खेलना एक सपने जैसा बताते हुए मुनाफ कहते हैं कि अगर वह क्रिकेट नहीं खेल रहे होते तो अफ्रीका की कुछ कंपनी में मजदूरी कर रहे होते। मुनाफ गुजरात के जिस क्षेत्र से आते हैं वहां अधिकतर लोग काम की तलाश में अफ्रीका जाते हैं। मुनाफ कहते हैं, ‘शायद, मैं टाइल्स की सफाई कर रहा होता। मैंने कभी सोचा नहीं कि मैं इतने लंबे समय तक क्रिकेट खेलता रहूंगा। मुनाफ हसंते हुए आगे बताते हैं, ‘जब मैं युवा था तब टाइल्स की एक फैक्ट्री में काम करता था। डब्बों में टाइल्स को पैक किया जाता था, जिसके बदले में 35 रुपए की मजदूरी मिलती थी। दुख ही दुख था, मगर झेलने की आदत भी हो गई थी। आठ घंटे की मजदूरी के बदले जो पैसे मिलते थे वो काफी नहीं थे, मगर कर भी क्या सकता था? घर में पिता जी अकेले कमाने वाले थे और हम स्कूल में पढ़ते थे। मगर आज जो भी मैंने हासिल किया है वो सब क्रिकेट की वजह से हैं।’