साहित्य

मै क्या हूँ?***काफ़िले में भी सफ्रर तन्हा***

Sonika Mishra

Lives in Bangalore, India

कवयित्री(श्रृंगार), गीतकार, संचालिका
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मै क्या हूँ?
एक आज़ाद हवा, एक बेपरवाह लहर, एक स्वच्छंद इंसान।
मै आज या आगे कभी भी जब कोई बात कहूँगी वो किसी को ज्ञान देने के लिए नहीं क्योंकि जो मै स्वयं के लिए चाहती हूँ वो दूसरों के लिए भी चाहूंगी।
मै जब भी कोई कविता या लेख लिखती हूँ वो मेरे जीवन के अनुभव या मेरी दृष्टि से देखा हुआ नज़रिया होता है परन्तु इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि वही हर व्यक्ति के लिए सत्य हो गया। मै तो स्वयं चाहती हूँ कि कोई भी किसी के अनुसार अपना जीवन निर्धारित न करे क्योंकि फिर तो उस ईश्वर द्वारा बनाई कृति का अपमान होगा।
एक नया रास्ता बनाइये जहाँ आप खिलखिला सके, दौड़ सके और कह सके कि “ये मेरा जीवन है!”


मेरी जिंदगी के बारे में मेरे अलावा कोई नहीं जानता पर मै इतना कह सकती हूँ कि “ये मेरा जीवन है!”
मेरे इस जीवन में प्रयोग हैँ, शोध है, आत्म विश्लेषण है और ज्ञान की यात्रा है।
मै किसी से भी वार्ता बहुत कम करती हूँ तो इस बात को कोई भी ये समझने की भूल मत कीजियेगा कि ये अहंकार है।
मुझे जो कहना होता है बेबाक कहती हूँ।
हर हाल में ख़ुश रहने का रास्ता निकालिए। छोटी और व्यर्थ बातों के लिए जिंदगी नहीं है। इस जिंदगी के जितने भी दिन हैँ वो सार्थक होने चाहिए।
सधन्यवाद
सोनिका मिश्रा

Lekhak Mukesh Sharma
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प्रधानमंत्री मोदी और मुख्यमंत्री योगी इतने व्यवस्थात्मक तरीके से आगे बढ़ रहे हैं कि विरोधी स्वयं अपराधी की श्रेणी में आते जा रहे हैं।
ये दोनों किसी व्यक्ति, धर्म, जाति इत्यादि को नुकसान पहुंचाने की योजना नहीं बनाते।इनके ऐजेण्डे में “वसुधैव-कुटुम्बकम” की धारणा है।इसलिए संसार की कोई अदालत व्यवस्थात्मक दृष्टि से इनका विरोध नहीं कर सकती न इन पर आरोप लगाने की भूल करेगी।भारत में जितना विरोध हो रहा है यह विरोध ही इन महाशक्तियों को बल दे रहा है।वोटबैंक विकास के लिए श्रेयकर है लेकिन जब इसका उपयोग अपराध के लिए हो तब अपने घर से ही समर्थन नहीं मिलेगा।यही कारण है कि आज इन दो महान राजनेताओं को प्रजा ने सिर माथे पर बिठा लिया है।अब तक जिस तुष्टिकरण की राजनीति चलन में थी उसकी कभी व्याख्या नहीं हुई।अब भी समय है कि विरोधी ताकतें तुष्टिकरण का त्याग कर विकास के मार्ग पर बसेरा करें अन्यथा भविष्य आपके इतिहास को पढ़ने से भी कतरायेगा।यदि पढ़ा गया तब हर व्याख्या इतिहास की पुरानी परत खोलेगी।इसलिए बेहतर है कि संयम रखें और योग करें।

DrPawan Sharma Prabal
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सुप्रभत🌷🌷🙏🙏आपका दिन शुभ हो😊😊
***काफिले में भी सफर तन्हा***
क्यों है काफिले में भी ये सफर तन्हा
हुजूम है इतनी भीड़ भी दूर नज़र तक तन्हा
मगर उनके दीदार मुनासिब नहीं यहां
इतनी रौनक है फ़िजाऐ भी तन्हा।
तलाश करता रहा मगर नहीं आयी
कोई काफिले में उससा नज़र नहीं आया
ये दिल दिन बे दिन उदास होता रहा
मगर कहीं भी दिल को सुकून नहीं आया
काफिले में बस रकीब दिखता था मुझे
जिसकी खातिर तन्हाइयों में थे मेरे शाने।
उनपर सुस्ता के लगता था वो मेरी हो गई
आज काफिले में गुनगुनाता हूँ।गम के गाने
रौनक है शबाब है कोई खास सा जलसा है।
ना किसी से कहने का मन ना ही सुनने का
कैसे महफूज़ रख्खे हूँ मैं अपने अश्कों को
क्यों कि जिनमें वो समाई है डर है उनके गिरने का।
डॉ. पवन शर्मा “प्रबल”
शाहीबाग,अहमदाबाद