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कभी तक़दीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला
मधुसूदन उपाध्याय =============== कभी तकदीर का मातम कभी दुनियाँ से गिला _____________________________________ इस शीर्षक से शकील बंदायूनी की एक गजल के एक मकते को आधार बना कर यह लिख रहा हूँ। शुद्ध मन से तथा ईश्वर को साक्षी रखकर । जो लोग भाग्य नहीं मानते उनके लिए यह सब कुछ एक बार सोचने का विषय […]
हे बापू ! इहाँ समाजबाद हिन्द स्वराज कहलायेगा और वह किसानों के ग्राम स्वराज और पंचायती राज के रस्ते आगे बढ़ेगा!
Kavita Krishnapallavi ================= एक बार फिर दे रही हूँ! अनुरोध है, पढ़िएगा ज़रूर! पहले पढ़ा हो, तो भी! देवतुल्य रास्ट्रपिता गान्ही बाबा को हम भारतीय कमनिस्टों का सादर परनाम और लाले लाले लाल सलाम !! हे बापू ! हमने ‘रघुपति राघव राजाराम’ और ‘बैस्नव जन तो तेने कहिए’ याद कर लिया है और चरखा कातना […]
स्त्रीचरितमानस (गुटका संस्करण) के कुछ फटे हुए पन्ने
,Kavita Krishnapallavi ================ स्त्रीचरितमानस (गुटका संस्करण) के कुछ फटे हुए पन्ने प्रबुद्ध स्त्री कल एक प्रबुद्ध स्त्री मिली I उसका पति बहुत अधिक प्रबुद्ध था I वह दुनिया को अपने पति के नज़रिए से देखती थी I * मुक्त स्त्री कल एक मुक्त स्त्री मिली I अपनी सभी व्यक्तिगत-सामाजिक जिम्मेदारियों-जवाबदेहियों से,सभी सामाजिक सरोकारों-प्रतिबद्धताओं से, सभी […]