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यह एक सूअर का लिवर है जिसे धीरे धीरे ऐसा बनाया जा रहा है, जैसे मनुष्य का लिवर होता है : रिपोर्ट

वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि सूअर के लिवर को साफ करके उसे इंसान जैसा बना दिया जाए ताकि मानव शरीर को फर्क का पता ही नहीं चले. ऐसा हुआ तो अंगों की कमी की समस्या खत्म हो सकती है.

एक बड़े जार में भरे तरल में तैरता अंग भुतहा सा लगता है. लाल रंग का एक स्वस्थ अंग तैर रहा था. लेकिन कुछ ही घंटों में वह पारदर्शी हो जाता है और उसकी सफेद रंग की टहनियों जैसी ट्यूब दिखाई देने लगती हैं.

यह एक सूअर का लिवर है जिसे धीरे धीरे ऐसा बनाया जा रहा है, जैसे मनुष्य का लिवर होता है. वैज्ञानिकलंबे समय से इस कोशिश में लगे हैं क्योंकि सूअर के अंगों को मनुष्य के अंग की जगह इस्तेमाल किया जा सकता है. वैज्ञानिक इस कोशिश में हैं कि सूअरों के अंगों से मानवीय अंगों की कमी की भरपाई की जा सकती है.

इसी दिशा में सूअर के लिवर को बदलने के प्रयास किए जा रहे हैं. इस संबंध में पहला कदम अमेरिका के मिनेपोलिस की एक प्रयोगशाला में उठाया गया है. इसके तहते सबसे पहले से सूअर के लिवर से उन कोशिकाओं को साफ किया जाता है जिनके जरिए यह अपना काम करता है. जैसे जैसे ये कोशिकाएं तरल में घुलती जाती हैं, इसका रंग बदलने लगता है. तब जो बचता है वह रबर जैसा लिवर का एक ढांचा होता है. इसकी रक्त कोशिकाएं खाली हो जाती हैं.

अगला कदम है ऐसे मानवीय लिवर खोजना जिन्हें दान तो किया है लेकिन इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. ऐसे एक लिवर से कोशिकाएं ली जाती हैं और उन्हें सुअर वाले ढांचे में स्थापित किया जाता है. वे जीवित कोशिकाएं हैं जिनके जरिए लिवर काम करना शुरू कर देता है.

सफलता मिली तो क्या होगा?
इस प्रयोगशाला मीरोमैट्रिक्स के सीईओ जेफ रॉस कहते हैं कि यूं समझिए, अंग को उगाया जा रहा है. वह बताते हैं, “हमारा शरीर इसे सूअर का अंग नहीं समझेगा.” यह बहुत बड़ा दावा है. 2023 में किसी वक्त मीरोमैक्स पहले मानव-परीक्षण की तैयारी कर रहा है जो अपनी तरह का इतिहास में पहला परीक्षण होगा.

अगर अमेरिकी एजेंसी फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन से सहमति मिलती है तो शुरुआती परीक्षण मरीज के शरीर के भीतर नहीं बल्कि बाहर होगा. शोधकर्ता सूअर से इंसानी रूप में तब्दील किए गए लिवर को मरीज के बिस्तर के बगल में रखा जाएगा और वहीं से शरीर में जोड़ दिया जाएगा. बाहर से ही यह लिवर रक्तशोधन का काम करेगा.

अगर यह नया लिवर काम कर जाता है तो प्रत्यारोपण की दिशा में एक बड़ा कदम होगा. आगे चलकर यह किडनी प्रत्यारोपण का रूप भी ले सकता है.

डॉ. सैंडर फ्लोरमान न्यू यॉर्क के माउंट सिनाई अस्पताल में प्रत्यारोपण विभाग के प्रमुख हैं. उनका अस्पताल इस प्रयोग में शामिल होने वाले चंद अस्पतालों में से है. डॉ. फ्लोरमान बताते हैं, “यह सुनने में साइंस फिक्शन जैसा लगता है लेकिन कहीं तो इसकी शुरुआत होनी है. मेरे ख्याल से यह निकट भविष्य की बात है.”

मानव अंगों की कमी
मानवीय अंगों की भारी कमी है जिसके कारण दुनिया में काफी संख्या में लोगों की मौत होती है. अमेरिका में अंग प्रत्यारोपण के इंतजार की सूची में एक लाख से ज्यादा लोगों के नाम हैं. इनमें से हजारों लोगों की जान इंतजार के दौरान ही चली जाएगी. हजारों लोग ऐसे हैं जिन्हें वेटिंग लिस्ट में डाला ही नहीं जाता क्योंकि उनके पास इतना वक्त नहीं है कि वे इतना लंबा इंतजार कर सकें.

पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय मेडिकल सेंटर में प्रत्यारोपण सर्जन डॉ. अमित तेवर कहते हैं, “हमारे पास जितने अंग उपलब्ध हैं उनसे मांग कभी पूरी नहीं होगी. इससे हमें बहुत खीज भी होती है.”

यही वजह है कि वैज्ञानिक जानवरों को अंगों के स्रोतों के रूप में देख रहे हैं. ऐसे कुछ प्रयोग हो भी चुके हैं. मसलन, इसी साल जनवरी में मैरीलैंड के एक व्यक्ति को सुअर का दिल लगाया गया था. इस दिल के सहारे वह दो महीने तक जीवित भी रहा. यह दिल जिस सूअर से लिया गया था, उसके जेनेटिक्स में ऐसे बदलाव किए गए थे कि वे इंसानी इम्यून सिस्टम पर अचानक हमला ना कर पाएं. एफडीए अब भी इस बात पर विचार कर रहा है कि जानवरों से अंगों के प्रत्यारोपण को इजाजत दी जाए या नहीं.

बायोइंजीनियरिंग में, यानी कि सूअर के अंग को इंसानों जैसा बनाने की प्रक्रिया में किसी खास तरह के सूअर की जरूरत नहीं होती. इसमें तो खाने के लिए काटे गए सूअर से बचे अंग भी इस्तेमाल किया जा सकते हैं. डॉ. तेवर कहते हैं, “यह कुछ ऐसा है जो भविष्य में अंगों को इंसानों के लिए तैयार करने में काम आ सकता है.” हालांकि डॉ. तेवर इस प्रयोग का हिस्सा नहीं हैं और वह सावधान करते हैं कि अभी यह प्रयोग बहुत शुरुआती चरण में है.

वैसे इस बारे में पहले भी शोध हो चुका है. इसी सदी के शुरुआती सालों में मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के डॉ. डोरिस टेलर और डॉ. हेराल्ड ओट ने एक मृत चूहे के हृदय को कोशिकाओं से पूरी तरह मुक्त करने में कामयाबी पाई थी. अब मीरोमैट्रिक्स उसी कामयाबी के आधार पर तकनीक को आगे बढ़ाने में जुटी है.

वीके/सीके (एपी)