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यूक्रेन जंग और यूरोप में आर्थिक संकट से जर्मनी और फ्रांस के रिश्ते बिगड़े : रिपोर्ट

यूरोप संकट में है और दो सबसे मजबूत देशों के रिश्ते अच्छे नहीं चल रहे. फ्रांस और जर्मनी, यूरोपीय संघ की धुरी हैं और पहले भी संबंधों का उतार चढ़ाव देख चुके हैं, लेकिन उनकी असहमतियां इस वक्त यूरोप की मुश्किलें बढ़ायेंगी.

जब जर्मनी ने अपने उद्योग और आम लोगों को ऊर्जी की बढ़ती कीमतों से बचाने के लिए 200 अरब यूरो के पैकेज की घोषणा की तो सरकार पड़ोसी देश फ्रांस को इस बारे में पहले बताना भूल गई. निजी तौर पर राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों इससे हिल गये. एक फ्रेंच अधिकारी ने कहा, “हमें इस बारे में मीडिया से पता चला. ऐसा नहीं होना चाहिए.”

जर्मन अधिकारी इससे पहले फ्रेंच राष्ट्रपति के दफ्तर गये थे लेकिन उस दौरान उन्होंने पैकेज के बारे में कुछ नहीं कहा. फ्रांस का मानना है कि इस पैकेज से जर्मनी की कंपनियों को अनुचित फायदा मिलेगा और इससे यूरोपीय संघ के एकल बाजार को नुकसान होगा.

असहमतियों के मुद्दे
यूरोपीय संघ के दो सबसे प्रभावशाली और अमीर देश जर्मनी और फ्रांस के बीच असहमतियां बढ़ाने वाले मुद्दे और भी कई हैं. इसमें संघ की सुरक्षा रणनीति से लेकर, ऊर्जा संकट का सामना, चीन के साथ रिश्ते और यहां तक कि आर्थिक नीतियां भी शामिल हैं.

यूरोपीय संघ यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद की परिस्थितियों में गैस की कीमतों पर सीमा लगाना चाहता है लेकिन इसके लिये सदस्यों के बीच सहमति नहीं बन पा रही है. जर्मनी और फ्रांस के सुर भी इस मुद्दे पर अलग हैं. यूरोप में अगली पीढ़ी के लड़ाकू विमान बनाने की योजना और पूरे यूरोपीय संघ में गैस पाइपलाइन की परियोजनाओं पर भी इसका असर दिख रहा है. इस बीच जर्मनी ने चीन को अपने बंदरगाह में निवेश को हरी झंडी दिखा दी है हालांकि इसे थोड़ा सीमित किया गया है.

एक हफ्ते पहले फ्रेंच राष्ट्रपति माक्रों ने दोनों देशों के कैबिनेट की संयुक्त बैठक टाल दी इससे उनकी निराशा का अंदाजा लगता है. हालांकि जर्मनी ने इसके पीछे लॉजिस्टिक कारणों को जिम्मेदार ठहराया और दोनों देशों में दरार को कम करके दिखाने की कोशिश की. इस हफ्ते जर्मन चांसलर ने बिजनेस लंच पर पेरिस में माक्रों से मुलाकात की है. जर्मनी और फ्रांस के संबंध ऊपर नीचे पहले भी होते रहे हैं लेकिन दोनों ने कभी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ा है. कई संकटों का एक साथ सामना कर रहा यूरोपीय संघ इस समय दोनों देशों में तनाव झेलने की स्थिति में नहीं है. पूर्वी हिस्से में रूस की जंग, बढ़ती महंगाई और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की बदहाली ने इसे मंदी की कगार पर पहुंचा दिया है.

फ्रांस और जर्मनी से जुड़े स्रोतों का कहना है कि फ्रांस और जर्मन राजनयिकों के बीच डॉजियरों में गूंजते रहे विरोध के स्वर अब व्यक्तित्वों की लड़ाई, यूरोपीय नेतृत्व को लेकर संघर्ष और व्यापक रणनीतिक मतभेदों के रूप में खुल कर सामने आ गये हैं.

निजी जुड़ाव नहीं
माक्रों को लगता है कि शॉल्त्स अपने फ्रेंच समकक्ष को निजी समय देने में अपने पूर्ववर्ती अंगेला मैर्केल की तुलना में अलग हैं और अपना संपर्क स्पेन, पुर्तगाल और नीदरलैंड्स के साथ बढ़ा रहे हैं.

एक फ्रेंच अधिकारी ने कहा, “माक्रों और मैर्केल हर दिन एक दूसरे को संदेश भेजते थे. शॉल्त्स माक्रों से रोज बात नहीं करते. हमें तो उनकी मुलाकात कराने के लिए भी जूझना पड़ रहा है.”

आडंबरहीन जर्मन चांसलर और भड़कीले फ्रेंच राष्ट्रपति के बीच निजी जुड़ाव की कमी के अलावा दोनों नेताओं ने राजनयिकों के मुताबिक यूक्रेन में जंग के रणनीतिक सबक को लेकर भी मतभेद है.

रूस के गैस पर अत्यधिक निर्भरता के लिए जर्मनी को दी चेतावनी अनसुनी होने के बाद माक्रों को लगता है कि यूरोप को ऊर्जा, कारोबार और रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की उनकी कोशिशें सही हैं. इसके बाद चीनी कंपनी को जर्मन बंदरगाह में हिस्सेदारी खरीदने की इजाजत देने से फ्रांस को झटका लगा है. फ्रेंच अधिकारियों के मुताबिक यह फैसला चीन के प्रति अदूरदर्शी और व्यापारिक है. एक फ्रेंच अधिकारी ने कहा, “उन्होंने अब भी सबक नहीं सीखा है.”

जर्मन अधिकारियों का कहना है कि वो चीन पर निर्भरता घटाने की जरूरत से वाकिफ हैं लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यूरोप में चीन के सारे निवेशों पर रोक लगा दी जाये.

इसी तरह रक्षा मामले में जर्मनी ने 14 देशों के साथ यूरोपीय एयर डिफेंस सिस्टम बनाने का फैसला किया है. इसमें ब्रिटेन शामिल है लेकिन फ्रांस नहीं जो यूरोपीय संघ में सैन्य रूप से सबसे ज्यादा मजबूत है. जर्मनी का कहना है कि फ्रांस को न्यौता दिया गया था लेकिन उसने इनकार कर दिया. उधर फ्रांस का कहना है कि इसके लिए इस्राएल का एरो थ्री सिस्टम, अमेरिका का पैट्रियट और जर्मनी का आईरिस टी यूनिट जैसे गैर यूरोपीय साजो सामान का खरीदा जाना उसे पसंद नहीं.

‘जर्मनी फर्स्ट’
जर्मनी के सरकारी अधिकारियों ने मतभेदों को कम करके दिखाने की कोशिश की है. अधिकारी माक्रों की यूरोपीय राजनीतिक समुदाय पहल में साझी जमीन की ओर संकेत कर रहे हैं. उनका कहना है कि फ्रांस को जर्मनी की घरेलू चुनौतियों को समझना होगा जिसमें गठबंधन सरकार में समस्या खड़ी करने वाले सहयोगी हैं इसकी वजह से फैसले लेने में वक्त लग रहा है. एक अधिकारी ने कहा, “दुनिया यहीं खत्म नहीं हो रही है.”

विश्लेषकों का कहना है कि शॉल्त्स के सामने गठबंधन चलाने की चुनौतियां है और इसकी वजह से जर्मनी ज्यादा अपनी ओर देख रहा है और फ्रांस जैसे सहयोगियों से कम बात कर रहा है.

पेरिस में ईसीएफआर थिंक टैंक की तारा वर्मा का कहना है कि पेरिस और दूसरी यूरोपीय राजधानियों में यह धारणा थी कि जर्मन विदेश और सुरक्षा नीति में “पहले जर्मनी” का स्वभाव है.

इस बीच घरेलू मोर्चे पर माक्रों की मुसीबतें बढ़ गई हैं क्योंकि संसद में कामकाजी बहुमत घटने से उन्हें देश में अपने काम में नई बाधाओं का सामना करना होगा और यूरोप की तरफ ध्यान देने के लिए कम समय होगा.

बुधवार को बिजनेस लंच पर शॉल्त्स की माक्रों से मुलाकात निश्चित रूप से दोनों देशों में तनाव के किस्सों को थोड़ा ठंडा करेगी लेकिन संबधों में गर्माहट लौटे इसके लिए शायद थोड़ा इंतजार करना होगा.

एनआर/सीके (रॉयटर्स)