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यूक्रेन युद्ध और अमरीका के ख़िलाफ़ यूरोपीय देशों ने खोल दिया मोर्चा, मैक्रां और उनके मंत्रियों ने संभाली है कमान : विशेष रिपोर्ट

जैसे जैसे ऊर्जा का संकट बढ़ रहा है और सर्दी का मौसम नज़दीक आ रहा है अमरीका और उसके यूरोपीय घटकों के बीच मतभेद गहराता जा रहा है। ख़ास तौर पर जर्मनी और फ़्रांस जो ऊर्जा संकट और उसके आर्थिक दंश को झेल रहे हैं बहुत बुरी स्थिति में पहुंच गए हैं।

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रां ने ब्रसेल्ज़ में यूरोपीय देशों की शिखर बैठक में अमरीका पर बहुत तेज़ हमला कर दिया। मैक्रां ने कहा कि अमरीका अपने यहां गैस की क़ीमत की चार गुना ज़्यादा क़ीमत पर यूरोप को गैस दे रहा है। फ़्रांस के वित्त मंत्री ब्रोनो ली मीर ने भी ठीक उसी समय अमरीका को आड़े हाथों लेते हुए गंभीर आरोप लगाया कि वह पश्चिमी दुनिया पर आर्थिक वर्चस्व क़ायम करने की फ़िराक़ में लग गया है और यूक्रेन युद्ध के ज़रिए यूरोप को कमज़ोर करने लगा है।

फ़्रांस की विदेश मंत्री कैथ्रीन कोलोना तो और भी दो क़दम आगे निकल गईं। उन्होंने वाशिंग्टन में सट्रैटेजिक स्टडीज़ सेंटर में भाषण देते हुए कह दिया कि बहुत ज़रूरी है कि रूस के साथ संपर्क के चैनल खुले रखे जाएं और पुतीन को अलग थलग करने का विचार दिमाग़ से बाहर निकाल देना चाहिए।

अमरीका के साथ लगातार बढ़ता यूरोप का तनाव यूक्रेन युद्ध के ताज़ा समीकरणों का नतीजा दिखाई पड़ता है। जब से रूसी राष्ट्रपति ने जाने माने और तजुर्बेकार कमांडर सर्गेई सोरोवकीन को युक्रेन युद्ध में कमान सौंपी है तब से यूक्रेन युद्ध के समीकरण तेज़ी से बदले हैं और अमरीका विशेष रूप से राष्ट्रपति बाइडन के ख़िलाफ़ यूरोपीय देशों के औपचारिक और अनौपचारिक हमले तेज़ हो गए हैं। यह विचार मज़बूत हो रहा है कि अमरीका ने यूरोप को इस मुसीबत में फंसा दिया जबकि उसकी ओर से रूस पर लगाए गए प्रतिबंध बेनतीजा साबित हुए। इतना ही नहीं इसके उल्टे नतीजे निकले। दुनिया में तेल और गैस की क़ीमतें बिजली की रफ़तार से बढ़ीं जिसके नतीजे में रूस के ख़ज़ाने में कुछ ही महीनों के भीतर अतिरिक्त 116 अरब डालर पहुंच गए। यह भी देखने में आया कि तेल उत्पादक देशों के बीच रूस का रसूख़ भी बढ़ गया है।

अमरीका ने रूस से यूरोप को गैस सप्लाई करने वाली गैस पाइपलाइनों नोर्द स्ट्रीम वन और नार्द स्ट्रीम टू में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका के ज़रिए धमाके करवाकर बहुत बड़ी ग़लती कर दी। उसकी दूसरी बड़ी ग़लती क्रीमिया के पुल पर ज़ेलेन्स्की सरकार के ज़रिए करवाया गया धमाका था जिसके बाद रूस ने यूक्रेन की राजधानी कीव और अन्य शहरों के इंफ़्रास्ट्रक्चर पर भीषण हमले कर दिए। कीव से आने वाली ख़बरों से पता चलता है कि भयानक बिजली संकट के कारण चारों तरफ़ सन्नाटा पसरा हुआ है लगता है कि पूरा शहर ख़ाली हो गया है।

इटली के पूर्व प्रधानमंत्री सिल्वियो बर्लोस्कोनी ने पहले ही ख़तरे की घंटी बजा दी थी। उन्होंने यूक्रेन के राष्ट्रपति को खरी खोटी सुनाते हुए कहा कि ज़ेलेन्स्की ने सारी रेडलाइनें पार कीं और पुतीन को जान बूझ कर उकसाया। उन्होंने कहा कि सारी मुसीबतों के लिए ज़ेलेन्स्की ही दोषी हैं।

स्रोतः रायुल यौम

क्या यूक्रेन युद्ध की समाप्ति का समय आ गया है?

फ़्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रां ने इटली में अपने एक संबोधन में कहा है कि अभी शांति की स्थापना का अवसर मौजूद है और उसका समय आने वाला है। हालांकि उनका यह भी कहना था कि रूस के साथ शांति के लिए शर्तों और समय का निर्धारण यूक्रेन को करना होगा। उन्होंने उन लोगों की भी आलोचना की जो रूस के साथ शांति वार्ता को यूक्रेन के लोगों के संघर्ष के साथ विश्वासघात बता रहे हैं।

मेक्रां का कहना थाः युक्रेन में जंग को जारी नहीं रखा जा सकता है, यह जंग हम यूरोपीयों के जीवन पर असर डाल रही है और इसके परिणाम स्वरूप भुखमरी और ग़रीबी फैल रही है।

इस बीच, रूस के रक्षा मंत्री सरगेई शाइगोव ने रविवार को अपने अमरीकी, फ़्रांसीसी और ब्रिटिश समकक्षों से टेलीफ़ोन पर बातचीत की और कहा कि यूक्रेन युद्ध एक अनियंत्रित लड़ाई की ओर बढ़ रहा है।

यूरोप में घटने वाली हालिया घटनाओं के परिप्रेक्ष्य में शांति को लेकर फ़्रांसीसी राष्ट्रपति की इन बातों का मतलब समझा जा सकता है। अमरीका और यूरोपीय देशों का इस जंग की शुरूआत में मानना यह था कि रूस के ख़िलाफ़ व्यापक प्रतिबंध लगाकर और यूक्रेन को बड़ी सैन्य सहायता देकर मास्को को घुटने पर ले आयेंगे। लेकिन यूक्रेन युद्ध को आठ महीने हो गए हैं, इस दौरान रूस ने न सिर्फ़ यूक्रेन के चार इलाक़ों का अपनी सीमाओं में विलय कर लिया है, बल्कि पूरे यूक्रेन में बिजली घरों जैसे बुनियादी ढांचों पर व्यापक हमले किए हैं। आज इस जंग की तबाही और विनाश को पहले से ज़्यादा स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

यूरोपीय नेताओं को अब युद्ध में यूक्रेन की जीत को लेकर पहले से भी ज़्यादा संदेह होने लगा है, इसीलिए अब वह इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं हैं। इसके अलावा, यूक्रेन को हथियार देने के कारण, कुछ यूरोपीय देशों के हथियारों के भंडार ख़ाली होने लगे हैं, जिससे ख़ुद ज़रूरत के समय उनके लिए समस्या खड़ी हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि अमरीका एक ऐसा देश, जो यूक्रेन में युद्ध जारी रखना चाहता है, उसके अधिकारियों का कहना है कि इसी महीने होने वाले चुनाव में अगर जीत रिपब्लिकन की होती है तो, वर्तमान स्वरूप में कीव के लिए वाशिंगटन की सहायता को जारी रख पाना मुश्किल होगा।

प्रतिबंधों पर रूस की कड़ी प्रतिक्रिया का अंदाज़ा भी यूरोपीय अधिकारियों को नहीं था। रूस ने यूरोप के लिए गैस और तेल की सप्लाई या तो पूरी तरह से रोक दी है या उसमें बड़ी मात्रा में कटौती कर दी है। यूरोप में सर्दियों का मौसम क़रीब शुरू हो चुका है, लेकिन रूसी तेल और गैस की सप्लाई होने की फ़िलहाल कोई उम्मीद नहीं है। इस वजह से भी यूरोप में संकट उत्पन्न हो सकता है, जिससे यूरोपीय अधिकारी बचने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं।