धर्म

रमज़ान का पवित्र महीना : ईश्वरीय अनुकंपाओं और बरकतों की वर्षा का महीना : पार्ट-4

यह वह महीना है जिसमें महान ईश्वर की रहमत व कृपा का द्वार खुल गया है, यह वह महीना है जिसमें नरक के द्वार बंद कर दिये गये हैं।

हज़रत अली फरमाते हैं इस महीने की श्रेष्ठता दूसरे महीनों पर इस प्रकार है जैसे पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की श्रेष्ठता दूसरे लोगों पर है, इसके दिन बेहतरीन दिन और इसकी रातें बेहतरीन रातें हैं, इसके क्षण व घंटे बेहतरीन क्षण हैं।”

दोस्तो रमज़ान के पवित्र महीने के सर्वोत्तम क्षणों में आप किन कार्यों में व्यस्त हैं? कहीं एसा न हो कि इस महीने के क्षण दूसरे महीनों के क्षणों की भांति हों यानी आप इससे उसी तरह से लाभ उठा रहे हैं जैसे दूसरे महीनों से लाभ उठाते हैं।

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने रमज़ान के पवित्र महीने को चुना है। इस महीने में इंसान जो नेक अमल अंजाम देता है महान ईश्वर उसका सवाब कई गुना प्रदान करता है। इसकी एक वजह यह है कि महान ईश्वर इस कार्य से हमें इस बात के लिए प्रोत्साहित कर रहा है कि हम इस महीने में अधिक से अधिक नेक काम अंजाम दें और मुक्ति, कल्याण और वास्तविक बंदगी की दिशा में कदम बढ़ायें और अपने ईमान में वृद्धि करें।

कितने खुशनसीब व भाग्यशाली वे लोग हैं जो इस महीने का अधिक से अधिक प्रयोग अपने पालनहार का सामिप्य प्राप्त करने के लिए करते हैं। इस महीने की नमाज़ों और रोज़ों के अलावा बहुत सारे दूसरे नेक कार्य हैं जिन्हें अंजाम देकर लोक- परलोक में हम अपने कल्याण की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

दोस्तो यहां हम एक बिन्दु को बयान करना ज़रूरी समझते हैं और वह यह है कि इंसान अपनी नीयत को शुद्ध बनाये और अपने आपसे सवाल करे कि जो कार्य उसने अंजाम दिया है या अंजाम देने का इरादा रखता है उसे उसने क्यों अंजाम दिया है? इसे उसने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने या दूसरों को खुश करने के लिए अंजाम दिया है। इसका फैसला खुद इंसान बहुत अच्छी तरह कर सकता है। अगर किसी इंसान ने दूसरों की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए कोई कार्य अंजाम दिया है तो उसे जान लेना चाहिये कि उसने अपना समय नष्ट किया है और अगर नमाज़ जैसी किसी उपासना को महान ईश्वर के अलावा किसी और की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अंजाम दिया है तो वास्तव में उसने शिर्के खफी यानी छिपा शिर्क अंजाम दिया है।

वैसे तो रमज़ान का पवित्र महीना हर प्रकार की आंतरिक गंदगी से स्वच्छ व पवित्र होने का बेहतरीन महीना है परंतु नीयत को विशुद्ध बनाने का सुनहरा व अनमोल मौक़ा है। जिस इंसान की आस्था महान ईश्वर पर जितनी अधिक होगी वह उतना अधिक अपनी नीयत को विशुद्ध बनाने का प्रयास करेगा।

यहां पर कोई यह कह सकता है कि महान ईश्वर को सभी मुसलमान और बहुत से ग़ैर मुसलमान भी मानते हैं तो उस पर आस्था के गहरी होने का क्या अर्थ है? इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि महान ईश्वर को बहुत से लोग मानते हैं पर सबकी आस्था समान नहीं होती है। महान ईश्वर को मानने वाले बहुत से लोग गुनाह और उसकी अवज्ञा के बारे में सोचते तक नहीं जैसे पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन जबकि महान ईश्वर को मानने वाले बहुत से तथाकथित मुसलमान उसकी अवज्ञा करने में संकोच तक नहीं करते हैं।

बहरहाल कहने का तात्पर्य यह है कि महान ईश्वर पर जिस इंसान की आस्था जितनी अधिक मज़बूत होगी वह उतना ही अपनी नियत को विशुद्ध बनाने की कोशिश करेगा और इस प्रकार का व्यक्ति बहुत अच्छी तरह जानता है कि उसके सुकर्मों की जान और उसके अमल का आधार उसकी शुद्ध नीयत है और अगर नियत शुद्ध न हो तो नेक कार्य भी समय की बर्बादी हैं। हां अगर नीयत शुद्ध न होने के बावजूद जो कार्य अंजाम दिये जाते हैं उनके सामाजिक व सांसारिक लाभ हो सकते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर फरमाते हैं इससे बेहतर कोई उपासना नहीं है कि बंदा ईश्वर से उस चीज़ को मांगे जो उसके पास है। इमाम मोहम्मद बाक़िर के अनुसार दुआ करना बेहतरीन इबादत है। दुआ को इबादतों की जान व रत्न कहा गया है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे फुरक़ान में पैग़म्बरे इस्लाम से कहता है कि बंदों से कह दें कि अगर तुम दुआ नहीं करोगे तो ईश्वर तुम्हें महत्व नहीं देगा। इसी प्रकार हज़रत अली फरमाते हैं कि महान ईश्वर के निकट दुआ करना बेहतरीन कार्य है।

यहां सवाल यह पैदा होता है कि बेहतरीन दुआ क्या है? इस सवाल के जवाब में कहा गया है कि बेहतरीन दुआ वह है जिसे बेहतरीन समय में और बेहतरीन स्थान में अंजाम दिया जाये। अलबत्ता बेहतरीन हालत में उसे पढ़ा जाये। दुआ पढ़ने का एक बेहतरीन समय रमज़ान का पवित्र महीना है और दुआ मांगने की बेहतरीन हालत रोज़े की हालत में मांगी जाने वाले दुआ है।

वह दुआ परिपूर्ण दुआ है जिसके विभिन्न पहलु हों। जैसे जिस दुआ में महान ईश्वर का गुणगान हो। महान ईश्वर के गुणगान का एक बेहतरीन तरीक़ा उसे याद करना है। महान ईश्वर की याद से दिलों को सुकून व शांति मिलती है। महान ईश्वर की याद इंसान को तन्हाई से निकालने का बेहतरीन तरीक़ा है। जिस इंसान के दिल महान ईश्वर की याद से ओत-प्रोत हों यानी उसके दिल महान ईश्वर की याद के प्रकाश से प्रकाशित हों तो वह लेशमात्र भी किसी चीज़ से नहीं डरेगा।

दोस्तो जिस इंसान का दिल महान ईश्वर की याद में डूबा हो तो अगर पूरी दुनिया भी उससे बात न करे और उससे संबंध विच्छेद कर ले तो वह लेशमात्र भी तन्हाई का आभास नहीं करेगा। इसलिए रिवायतों में उसे उस इंसान का अनीस व दोस्त कहा गया है जिसका कोई दोस्त न हो। महान ईश्वर की याद दिलों का उजाला है। महान ईश्वर की याद में रहने वाला इंसान कभी भी स्वयं को अकेला महसूस नहीं करता। वह इस बात की तनिक भी परवाह नहीं करता कि कौन उसका विरोधी और दुश्मन कौन है? बल्कि वह यह देखता है कि उसका मददगार कौन है उसकी ताकत महान ईश्वर है और वह कभी भी अपने बंदे को अकेला नहीं छोड़ता। अकेले तो वे लोग हैं जो अपने पालनहार से दूर हैं। एसे लोगों से पूरी दुनिया के लोग बात करें और संबंध बना कर रखें परंतु वास्तव में इस प्रकार के लोग अकेले हैं।

सच्चे मोमिन की एक अलामत यह है कि वह अपनी रचना व पैदा करने वाले के अलावा हर चीज़ को छोटी व तुच्छ समझता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं ईमान के तीन दर्जे हैं पहला यह कि इंसान अपनी बुद्धि और दिल से महान ईश्वर को पहचाने। दूसरे यह कि ज़बान से स्वीकार करे और तीसरे उस पर अमल करे”

अगर कोई इंसान महान ईश्वर की पहचान के अथाह सागर में ग़ोते लगाना चाहता है तो उसे पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के हवाले से आई दुआओं को पढ़ना चाहिये। हर इंसान अपनी योग्यता के अनुसार महान ईश्वर को पहचानता है और उस पर ईमान लाता है परंतु यह पहचान अधूरी है क्योंकि इस पहचान का आधार इंसान का सीमित ज्ञान होता है। अतः महान ईश्वर को पहचानने का बेहतरीन तरीक़ा यह है कि वह देखे कि महान ईश्वर ने स्वयं अपनी पहचान कैसे की और बताई है।

इस बात को समझने के लिए सही तरह से पवित्र कुरआन का अध्ययन किया जाना चाहिये। पवित्र कुरआन ईश्वरीय ज्ञान का अथाह सागर है और जो व्यक्ति पवित्र कुरआन के ज्ञान को हासिल करना चाहता है तो उसे नात़िके कुरआन के द्वार पर जाना पड़ेगा। अगर कोई इंसान नातिक़े कुरआन यानी हज़रत अली से प्रेम और श्रृद्धा के बिना यह दावा करता है कि उसे कुरआन का ज्ञान है तो वह झूठा है। क्योंकि खुद कुरआन ने कहा है कि पवित्र लोगों के अलावा इसे कोई समझ ही नहीं सकता तो जिस इंसान के दिल में हज़रत और उनकी पवित्र संतान से द्वेष व दुश्मनी हो तो वह कुरआन का ज्ञान कैसे हासिल कर सकता है।

इमाम अली नकी महान ईश्वर की विशेषताओं को बयान करते हुए फरमाते हैं महान ईश्वर की विशेषता नहीं बयान की जा सकती मगर यह कि खुद उसने अपनी जो विशेषता बयान की है और किस प्रकार उसकी विशेषता बयान की जा सकती है जो समस्त रचनाओं की समझ से परे है और उसकी वास्तविकता कल्पना से बाहर है, कोई भी सोच उसकी वास्तविकता को नहीं समझ सकती। उसने जगह पैदा किया है परंतु खुद किसी जगह में नहीं है। वह अकेला है कोई भी उसका समतुल्य नहीं है और उसके समस्त नाम पवित्र हैं।

अतः अगर महान ईश्वर की विशेषता को ईश्वरीय दूतों और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों ने बयान न किया होता तो किसी भी इंसान की बुद्धि और ज्ञान उसकी पहचान के बारे में कुछ नहीं कह सकती थी। महान ईश्वर के बारे में पहली पहचान यह है कि वह समस्त वस्तुओं का रचयिता है, उसने सबको पैदा किया है मगर किसी ने भी उसे पैदा नहीं किया है। उसका कोई भी समतुल्य नहीं है। कोई भी चीज़ उसकी तरह नहीं है। वह हमेशा से है और हमेशा रहेगा, उसका न आरंभ है न अंत, वह किसी का मोहताज नहीं है, हर समस्त शक्ति का वास्तविक स्रोत वही है। उसकी न कोई पत्नी है न बेटा, उसका कोई शरीक नहीं है। वह हर चीज़ व कार्य को करने पर पूर्ण सक्षम है।

समूचे ब्रह्मांड की उपासना से उसे कोई फायदा नहीं होता है और अगर समूचा ब्रह्मांड उसका इंकार कर दे और उसकी अवज्ञा करने लगे तो उसे कण बराबर भी नुकसान नहीं पहुंचेगा। उसे हमारी उपासनाओं की बिल्कुल भी ज़रूरत नहीं है। हमारी उपासनाओं का फायदा हम को ही है। उसने हमें फायदा पहुंचाने के लिए अपनी उपासना करने के लिए कहा है। ब्रह्मांड की हर वस्तु का वास्तविक मालिक महान ईश्वर है। समूचे ब्रह्मांड को चलाने वाला वही है। हर चीज़ उसके नियंत्रण में है। वही वास्तविक महाशासक है।

उसकी नेअमतें असंख्य हैं उनकी गणना नहीं की जा सकती। महान ईश्वर ने हज़रत मूसा पर वहि की कि मेरा शुक्र करो तो हज़रत मूसा ने कहा कि हे पालनहार तेरा शुक्र अदा ही नहीं हो सकता तो महान ईश्वर ने कहा कि जब तुम यह समझ गये कि ईश्वर का शुक्र अदा नहीं किया जा सकता तो यह मेरा शुक्र है।