धर्म

रमज़ान का पवित्र महीना : ईश्वरीय अनुकंपाओं और बरकतों की वर्षा का महीना : पार्ट-5

महान ईश्वर हर भलाई का स्रोत है

दोस्तो जैसाकि आप जानते हैं कि रमज़ान का पवित्र महीना जारी है। आज रमज़ान महीने की चार रातों को शबे कद्र यानी क़द्र की रात कहा जाता है। रियावतों के अनुसार रमज़ान महीने की 19-21-23 या 27 की रात को शबे कद्र है और इन्हीं में से किसी एक रात में कुरआन नाजिल हुआ है। पवित्र कुरआन में कद्र की रात को एक हज़ार महीनों से बेहतर बताया गया है। इस रात में एक साल तक लोगों के भाग्य लिखे हैं। कितने खुशनसीब वे लोग हैं जो इस महीने की बरकतों से अधिक से अधिक लाभ उठाने का प्रयास कर रहे हैं।

रमज़ान वह महीना है जिसमें हर इंसान आत्म शुद्धि कर रहा है, कोई रोज़े की हालत में अधिक से अधिक पवित्र कुरआन की तिलावत कर रहा है, कोई अधिक से अधिक नमाज़ पढ़ने की कोशिश कर रहा है, कोई अधिक से अधिक दुआ कर रहा है, कोई अधिक से पापों से दूरी व परहेज़ करने का प्रयास कर रहा है। जो इंसान इस महीने में अधिक से अधिक गुनाहों से दूरी का अभ्यास कर लेगा तो रमज़ान का महीना समाप्त हो जाने के बाद भी गुनाहों से परहेज़ करना उसके लिए सरल हो जायेगा।

शिया मुसलमानों के निकट आज की रात के बारे में सबल विचार यह है कि आज ही कुरआन नाज़िल हुआ है। दोस्तो यहां एक बिन्दु का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि पवित्र कुरआन पैग़म्बरे इस्लाम पर दो बार नाज़िल हुआ है। एक बार पूरा कुरआन शबे क़द्र में नाज़िल हुआ है और दोबारा सूरों व आयतों के रूप में पवित्र कुरआन नाज़िल हुआ।

रिवायतों में है कि जब रमज़ान महीने के आखिर के 10 दिन रह जाते थे तो पैग़म्बरे इस्लाम अपना बिस्तर लपेट देते थे और अपने पूरे परिवार को रमज़ान महीने की रातों विशेषकर 23 की रात को महान ईश्वर की उपासना और उससे प्रार्थना करने के लिए सबको जगाकर रखते थे। बहुत से लोगों का मानना है कि पैग़म्बरे इस्लाम और इमामों ने जो यह स्पष्ट नहीं किया कि किस रात को शबे कद्र है तो उसकी वजह यह है कि हम अधिक से अधिक महान ईश्वर की उपासना कर सकें वरना उन्हें मालूम था कि किस रात को शबे कद्र है।

पवित्र कुरआन के अनुसार रमज़ान का पवित्र महीना इंसान के मेराज का महीना है। यह वह महीना है जिसमें आत्मिक व आध्यात्मिक दृष्टि से इंसान वास्तव में मेराज कर सकता है। जिस तरह उड़ने के लिए दो परों का होना ज़रूरी है उसी तरह इंसान को आध्यात्मिक उड़ान के लिए दो चीज़ों की ज़रूरत है एक इल्म और दूसरे अमल।

दोस्तो यहां कोई यह सवाल कर सकता है कि नमाज़ को मोमिन की मेराज कहा गया है और पवित्र कुरआन में कहा गया है कि नमाज़ इंसान को बुराइयों से रोकती है जबकि व्यवहार में हम देखते हैं कि एसा कुछ भी नहीं है। जो लोग नमाज़ पढ़ते हैं वह नमाज़ पढ़ने के बाद भी वैसे ही रहते हैं जैसे वह नमाज़ पढ़ने से पहले थे। यानी उनके आचरण में किसी प्रकार का परिवर्तन उत्पन्न नहीं होता है जबकि महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि नमाज़ बुराइयों से रोकती है। इस सवाल का जवाब देने से पहले हम एक उहारण बयान करते हैं जिसे सुनने के बाद आप इस सवाल के जवाब को बहुत आसानी से समझ सकते हैं।

मिसाल के तौर पर एक व्यक्ति बीमार है। डाक्टर ने उसे दवाइयां दे रखी हैं और साथ ही उसे कुछ परहेज भी बता रखा है परंतु वह दवाइयां तो खाता है मगर डाक्टर ने जिन चीज़ों से परहेज़ करने के लिए कहा है उनमें से वह किसी भी चीज़ से परहेज़ नहीं करता है। नतीजा यह होगा कि वह जो दवा खा रहा है वह सही तरह से असर नहीं करेगी। कोई भी इंसान यह नहीं कहेगा कि दवा सही नहीं है बल्कि सब कहेंगे कि अगर सही से परहेज़ किये होते तो दवा ज़रूर असर करती। ठीक वही हाल उन नमाज़ियों की है जिनकी हालत में कोई सुधार नहीं होता है, उन्हें नमाज़ बुराइयों से नहीं रोकती है।

जो इंसान रमज़ान महीने के मूल्यवान क्षणों से लाभ उठाना चाहता है, आध्यात्मिक शिखर को तय करना चाहता है, परिपूर्णता के शिखर पर पहुंचना चाहता है तो सबसे पहले उसे आत्म शुद्धि करना चाहिये। जो इंसान आत्म शुद्धि के बिना आध्यात्मिक शिखर पर पहुंचना चाहता है उसकी मिसाल उस पक्षी की भांति हैं जो पर के बिना परवाज़ करना चाहता है।

महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि हमने उन्हीं में से पैग़म्बर भेजा है, वह उन पर हमारी आयतों की तिलावत करता है, उनकी आत्म शुद्धि करता है और उसके बाद उन्हें किताब और हिकमत की शिक्षा देता है। पवित्र कुरआन की इस आयत में ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम सबसे पहले लोगों की आत्म शुद्धि करते हैं और उसके बाद किताब और हिकमत की शिक्षा देते हैं। यहां कोई यह सवाल कर सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम किताब यानी पवित्र कुरआन और तत्वदर्शिता का ज्ञान देने से पहले दूसरों को आत्म शुद्धि क्यों कराते थे? इस सवाल का जवाब बहुत सरल है।

जब आप किसी से पानी मांगते हैं तो पानी देने से पहले वह यह देखता है कि जिस बर्तन में पानी देना चाहता है वह बर्तन साफ- पाक है या नहीं। अगर साफ- स्वच्छ नहीं है तो सबसे पहले वह उसे साफ करता है उसके बाद उसमें पानी देता है। जब आम इंसान यह काम करता है तो महान ईश्वर का सर्वश्रेष्ठ दूत यानी पैग़म्बरे इस्लाम यह कार्य क्यों न करते।

दोस्तो रमजान का पवित्र महीना समाप्त होने में लगभग एक सप्ताह का समय बाकी है और आज इस महीने की 23 तारीख है। दूसरे शब्दों में आज की रात को पवित्र कुरआन नाज़िल हुआ था आज की रात को महान ईश्वर के फरिश्ते उतरते हैं। आज महान ईश्वर की रहमतों व बरकतों की वर्षा होने की तारीख है। पैग़म्बरे इस्लाम शबे क़द्र के महत्व के बारे में फरमाते हैं महान ईश्वर ने यह रात हमारी उम्मत को प्रदान किया है और इससे पहले की किसी भी उम्मत व कौम को यह नेअमत व अनुकंपा प्राप्त नहीं थी।

पवित्र रमज़ान महीने विशेषकर क़द्र की रातों को जो चीज़ें पढ़ जाती हैं उनमें से एक जौशने कबीर नाम की दुआ है। यह दुआ इंसान के सामने ईश्वरीय ज्ञान के दरवाज़ों को खोलती है। यह दुआ इंसान को ईश्वरीय ज्ञान के अथाह सागर में ले जाती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अगर इंसान इस दुआ के गहरे अर्थों पर ध्यान दे तो यह दुआ इंसान को परिवर्तित कर देगी और वह अपने पालनहार के समक्ष नतमस्तक हो जायेगा। इस दुआ में एक हज़ार एक बार महान ईश्वर के नाम आये हैं।

इस दुआ के पढ़ने पर बहुत बल दिया गया है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं मेरी उम्मत का कोई बंदा नहीं है जो रमज़ान महीने में इस दुआ को तीन बार या एक बार पढ़े मगर यह कि निःसंदेह महान ईश्वर उसके शरीर को नरक की आग पर हराम करार देगा और स्वर्ग को उस पर वाजिब कर देगा।”

दोस्तो कद्र की रात धार्मिक स्थल लोगों से भरे हैं। हर कोई अपने अंदाज़ में अपने पालनहार को याद कर रहा है। बहुत से लोग कुरआन की तिलावत कर रहे हैं और बहुत से दुआ पढ़ रहे हैं तो बहुत से दुआये जौशने कबीर पढ़कर अपनी आत्मा को सैक़ल दे रहे हैं। दुआये जौशने कबीर के बारे में रिवायत है कि यह दुआ लेकर हज़रत जिब्रईल किसी जंग में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुए थे। जिस समय हज़रत नाज़िल हुए थे उस समय पैग़म्बरे इस्लाम अपने शरीर पर ज़िरह पहने हुए थे इस प्रकार से कि वह ज़िरह काफी भारी थी और आपको उसके भारीपन की वजह से दर्द होने लगा था। हज़रत जिब्रईल ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि मोहम्मद तुम्हारे ईश्वर ने तुम्हें सलाम कहा और इस जौशन को यानी ज़िरह को अपने शरीर से खोलो और यह दुआ आपके के लिए और आपकी उम्मत के लिए सुरक्षा का कारण है।

रिवायतों में दुआये जौशने कबीर की बहुत फज़ीलत बयान की गयी है। एक रियावत में है कि अगर कोई अपने कफन पर इस दुआ को लिखे तो महान ईश्वर इस दुआ के सम्मान में उस व्यक्ति को नरक में नहीं डालेगा जो भी उसे शुद्ध नियत के साथ रमज़ान महीने के आरंभ में उसे पढ़ेगा तो महान ईश्वर लोक- परलोक में उसकी आजीविका को अधिक कर देगा और उसके लिए 70 हज़ार फरिश्तों को पैदा करेगा जो महान ईश्वर का गुणगान करेंगे और उसका सवाब उस व्यक्ति को मिलेगा।

दोस्तो यहां हम इस दुआ के कुछ अंशों का अनुवाद पेश कर रहे हैं। हे ईश्वर तेरी ज़ात यानी तेरा महान अस्तित्व पाक है मुझे नरक की आग से मुक्ति प्रदान कर, तेरे अलावा कोई भी दूसरा पूज्य नहीं है, मोहम्मद और उनके पवित्र परिजनों पर दुरूद व सलाम भेज, हे सबसे अधिक दयावान हमें नरक से रिहाई प्रदान कर। हे आक़ाओं के आक़ा, हे दुआओं को कबूल करने वाले, हे दर्जों को बुलंद करने वाले, हे नेकियों के मालिक व स्रोत, हे ग़लतियों को क्षमा करने वाले, हे सर्वज्ञाता।

दोस्तो महान ईश्वर हर भलाई का स्रोत है। वह सच्चे दिल से तौबा करने वाले की तौबा स्वीकार करता है, वह तौबा करने वालों से प्रेम करता है और वह तौबा करने वाले को एसा बना देता है जैसे वह अपनी मां के पेट से पैदा हुआ हो। महान ईश्वर की बारगाह में जाकर तौबा करना खुद एक बहुत बड़ी अनुकंपा है और यह अनुकंपा सबको नसीब नहीं होती है। दुआये जौशने कबीर में एक स्थान पर महान ईश्वर को इस प्रकार याद किया गया है हे बेहतरीन मदद करने वाले, हे बेहतरीन शासक, हे बेहतरीन रोज़ी देने वाले, हे बेहतरीन एहसान करने वाले। हे वह जिसकी महानता के समक्ष हर वस्तु नतमस्तक है।

रिवायतों में है जिन चीज़ों से रोज़ी में वृद्धि होती है उनमें से एक तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय व सदाचारिता है। सदाचारी बनने के लिए रमज़ान का पवित्र महीना और वह क़द्र की रात से बेहतर कौन सा अवसर हो सकता है? कितने खुशनसीब वे लोग हैं जिन्हें यह स्वर्णिम अवसर नसीब हुआ है। यह अनमोल अवसर आत्मशुद्धि का बेहतरीन अवसर है। यह महान ईश्वर की याद के अथाह सागर में डूबकर गोता लगाने का अनुपम अवसर है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सबको आत्मा को विशुद्ध करने का सामर्थ्य प्रदान करे, हमारे समस्त गुनाहों को माफ कर दे और हम सबको सद्गुणों से सुसज्जित करने का सामर्थ्य प्रदान कर।