धर्म

रमज़ान का पवित्र महीना : ईश्वरीय अनुकंपाओं और बरकतों की वर्षा का महीना : पार्ट-6

एक रिवायत के अनुसार रमज़ान महीने की इसी रात को कुरआन नाज़िल हुआ था।

सबसे पहले आज रमज़ान महीने की पढ़ी जाने वाली दुआ और उसका अनुवाद सुनते हैं…..

हे पालनहार! आज के दिन की बरकतों में मेरे हिस्से में वृद्धि कर, इसकी नेकियों की तरफ मेरे सफर को प्रशस्त और सरल कर दे, इस दिन कबूल होने वाली नेकियों से मुझे वंचित न रख, हे खुले सच्चे धर्म की ओर हिदायत करने वाले।

दोस्तो सबसे पहले हम आपको यह बताना चाहते हैं कि आज रमज़ान महीने की 19 तारीख है। इसी तारीख को सुबह की नमाज़ पढ़ाते समय मस्जिदे कूफा में इब्ने मुल्जिम नामक महाधर्मभ्रष्ट ने हज़रत अली के पावन सिर पर प्राणघातक हमला किया जिसकी वजह से वह रमज़ान महीने की 21 तारीख की सुबह को शहीद हो गये। इस दुःखद अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।

दोस्तो आज रमज़ान महीने की 19 तारीख है। रमज़ान महीने की 19वीं की रात को शबे कद्र कहा जाता है। यानी एक रिवायत के अनुसार रमज़ान महीने की इसी रात को कुरआन नाज़िल हुआ था। जबकि कुछ रिवायतों में 21 रमज़ान को, कुछ में 23 रमज़ान को और कुछ में 27 रमज़ान को शबे कद्र बताया गया है। बहरहाल शबे कद्र की बहुत अधिक फज़ीलत है।

क़द्र की रात को एक हज़ार महीनों से अफज़ल बताया गया है। बहुत से लोग इस रात को जागकर गुजारते हैं, नमाज़ पढ़ते हैं, दुआयें करते हैं और पवित्र कुरआन की तिलावत करते हैं, अपने गुनाहों से प्रायश्यित करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि शबे क़द्र मुसलमानों के लिए ईश्वरीय उपहार है और इससे पहले किसी भी दूसरी कौम को यह उपहार नहीं दिया गया था।

पवित्र कुरआन में एक सूरा भी है जिसमें शबे क़द्र की फज़ीलत बयान की गयी है। इसी सूरे में शब्रे क़द्र को एक हज़ार महीनों से श्रेष्ठ व बेहतर बताया गया है। वास्तव में मोमिन और रोज़ेदार इंसान शबे क़द्र से नये साल का आरंभ करता है और क़द्र की रात को ही ईश्वरीय फरिश्ते उसके भाग्य को लिखते हैं और इंसान एक- नये साल और नये चरण में प्रवेश करता है, वास्तव में इंसान का नया और पुनर्जन्म होता है।”

कितने खुशनसीब वे लोग हैं जो इस समय को महान ईश्वर की उपासना में बिताते हैं, महान ईश्वर की याद में उन्हें जो सुकून, आराम और मिठास मिलती है वह किसी भी दूसरी चीज़ में नहीं मिलती। यह वह चीज़ है जिसका एहसास हर इंसान नहीं कर सकता। जो इंसान महान ईश्वर की याद की मिठास का एहसास करना चाहता है उसे चाहिये कि सबसे पहले वह स्वयं को गुनाहों से दूर कर ले, आत्मा की शुद्धिकरण करे, अपने बातिन को सदगुणों से सुसज्जित करे और अपनी अंतरआत्मा को न केवल हर प्रकार के पापों बल्कि गंदी सोचों से भी पवित्र करे जब इंसान इन कार्यों को अंजाम दे लेगा तब कहीं महान ईश्वर की याद की मिठास को चख सकता है।

शबे क़द्र में बहुत सी महिलायें और पुरूष यहां तक कि बहुत से बच्चे भी रात भर जागते और अपने बड़ों के साथ सामूहिक रूप से महान ईश्वर की उपासना करते हैं। रिवायतों में है कि सामूहिक रूप से की जाने वाली दुआ के शीघ्र कबूल होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि उसमें महान ईश्वर का कोई विशेष बंदा हो सकता है और उसके आमीन कहने से दूसरों की दुआयें भी कबूल हो सकती हैं।

दोस्तो महान ईश्वर हर नेअमत व अनुकंपा का स्रोत है। जिस तरह इंसान महान ईश्वर की हस्ती व अस्तित्व को नहीं समझ सकता उसी तरह उसकी असीम कृपा व अनुकंपा को भी नहीं समझ सकता। महान ईश्वर समस्त अच्छाइयों का स्रोत है। इंसान सहित कोई भी चीज़ नहीं है जो उसकी अनुकंपा से लाभांवित न हो। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि हमने इंसान और जिन्नात को पैदा ही नहीं किया मगर यह कि वे हमारी इबादत करें। पवित्र कुरआन की आयत से पूरी तरह स्पष्ट है कि इंसान के पैदा करने का मूल उद्देश्य महान ईश्वर की उपासना है और पवित्र रमज़ान का महीना वह भी शबे क़द्र महान ईश्वर की उपासना के लिए स्वर्णिम अवसर है।

दूसरे शब्दों में महान ईश्वर की उपासना व आराधना के लिए शबे क़द्र से बेहतर कोई दूसरा अवसर नहीं है। जब कोई मोहताज इंसान किसी प्रतिष्ठित व धनाढ़य इंसान के दरवाज़े पर जाता है तो प्रतिष्ठित इंसान मोहताज इंसान को अपने दरवाज़े से खाली हाथ वापस नहीं लौटाता है और अगर वापस लौटा दे तो कितनी बुरी बात है। आज की रात लोग उस महान हस्ती की बारगाह में आये हैं जिसे किसी भी चीज़ की ज़रूरत नहीं है वह किसी का भी मोहताज नहीं है और ब्रह्मांड की हर वस्तु उसकी मोहताज है। वह खैरे महज़ है यानी मात्र भलाई और भलाई का स्रोत है। आज क़द्र की रात है उससे बड़ा समृद्ध कौन है कोई भी उसकी बारगाह से खाली हाथ वापस नहीं जायेगा।

कितना बदनसीब वह इंसान है जो आज की रात भी महान ईश्वर की असीम कृपा से वंचित रह जाये। आज की रात इंसान के पुनर्जन्म की रात है। आज बहुत से लोग महान ईश्वर की उपासना व प्रार्थना के लिए पवित्र धार्मिक स्थलों पर गये हैं। मिसाल के तौर पर जो लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बारगाह में गये हैं वहां वे अपने पालनहार की इबादत कर रहे हैं वहां पर इबादत करने का आनंद ही कुछ और है।

इस प्रकार के पवित्र स्थलों पर इबादत करने वाले स्वयं को महान ईश्वर के अधिक निकट समझ रहे हैं। हर इंसान स्वयं को महान ईश्वर की याद में लीन किये हुए है। वह सबका विधाता और सबकी सुनता है। अगर ब्रह्मांड की समस्त वस्तुएं एक साथ भी उसे बुलायें तब भी किसी प्रकार के विघ्न के बिना वह सबकी आवाज़ सुनता और जवाब देता है।

इंसान को महान ईश्वर के अस्तित्व और उसकी ज़ात के बारे में सोचने से मना किया गया है। उसकी वजह यह है कि इंसान के अंदर इस बात की योग्यता ही नहीं है कि वह महान ईश्वर की ज़ात को समझ सके इसलिए समस्त इंसानों को महान ईश्वर की ज़ात के बारे में सोचने से मना किया गया है। क्योंकि जो इंसान महान ईश्वर के अस्तित्व और उसकी ज़ात के बारे में सोचेगा उसके गुमराह होने की संभावना अधिक है।

बहरहाल कद्र की रात वह रात है जिसमें महान ईश्वर की उपासना करने वाला हर इंसान अपने पालनहार की याद में लीन है, कोई पवित्र कुरआन को अपने सिर पर रखकर दुआ कर रहा है, कोई अपने रचयिता की बारगाह में आंसू बहा रहा है, कोई अपने गुनाहों से प्रायश्चित कर रहा है, कोई नमाज़ पढ़ रहा है, कोई पवित्र कुरआन की तिलावत कर रहा है। सारांश यह कि शबे क़द्र में महान ईश्वर की उपासना करने वाला हर इंसान स्वयं को हल्का महसूस कर रहा है और उसकी अंतरआत्मा इस बात की गवाही दे रही है कि महान ईश्वर की कृपा दृष्टि उस पर हो गयी है।

हज़रत अली फरमाते हैं महान ईश्वर ने अपनी दया के स्रोतों की कुंजी तुम्हारे हाथों में दे दी है कि उसने तुम्हें अपनी बारगाह में आकर दुआ करने की अनुमति दे दी है और जब भी तुम चाहो उसकी नेअमत के दरवाज़ों को अपनी दुआओं से खोल लो और उसकी कृपा की वर्षा की दुआ करो। अगर तुम्हारी दुआ देर से कबूल हो रही है तो यह देरी तुम्हारी नाउम्मीदी का कारण न बने।

दोस्तो दुआ करने पर जहां बहुत बल दिया गया है, दुआ को उपासना की जान कहा गया है, और यह कहा गया है कि दुआ बलाओं व मुसीबतों को टालती है वह मोमिन का हथियार है वहीं दूसरों के लिए भी दुआ करने पर बहुत बल दिया गया है। एक बार हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा ने पूरी रात दूसरों के लिए दुआ की। इमाम हसन ने पूछा कि क्यों आपने अपने लिए दुआ नहीं की? इस पर हज़रत फातेमा ज़हरा स. ने फरमाया मेरे बेटे पहले पड़ोसी फिर घर वाले।

इमाम मोहम्मद बाक़िर फरमाते हैं कि सबसे जल्दी वह दुआ कबूल होती है जो दूसरे मोमिन भाई के लिए और उसकी अनुपस्थिति में की जाती है और सबसे पहले उसके लिए दुआ करता है। इस स्थिति में वह फरिश्ता जिसे उस पर लगाया गया है, आमीन कहता है और दुआ करने वाले से कहता है कि जो दुआ किये हो उसका दोगुना तुम्हारे लिए। इसी प्रकार इमाम जाफर सादिक़ इस संबंध में फरमाते हैं। जब एक मोमिन दूसरे मोमिन के लिए दुआ करता है तो दुआ, दुआ करने वाले से बला को टाल देती है और उसकी रोज़ी को अधिक कर देती है।

दोस्तो वैसे तो दुआ वास्तव में महान ईश्वर से संपर्क और उसे बुलाना है और जो चाहे जब चाहे और जैसे चाहे उसे बुला सकता है। वह सबका पालनहार है परंतु दुआ करने के कुछ आदाब व शिष्टाचार हैं अगर इंसान इन शिष्टाचारों का ध्यान रखे तो बहुत अच्छा है। दुआ करने का पहला शिष्टाचार यह है कि जिस समय इंसान दुआ कर रहा है वह पूरे दिल से महान ईश्वर से दुआ करे। एसा न हो कि ज़बान से दुआ करे और दिलो- दिमाग़ कहीं और हों। इस प्रकार की दुआ एक प्रकार का मज़ाक़ है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं कि जो दुआ निश्चेत दिल से की जाती है महान ईश्वर उसे कबूल नहीं करता है। इमाम जाफर सादिक भी इसी संबंध में फरमाते हैं दुआ करते समय इस बात पर ध्यान दो कि किसे बुला रहे हो, किस तरह बुला रहे हो, किस लिए बुला रहे रहो।“

जब इंसान दुआ करता है और इन बिन्दुओं को ध्यान में रखता है तो दुआ के कबूल होने में उसका असाधारण प्रभाव है। उसके बाद इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम इस प्रकार फरमाते हैं अगर इन बातों का अच्छी तरह ध्यान रखते और इन शर्तों को पूरा करते हो तो तुम्हें तीन में से एक खुशखबरी देता हूं। पहला यह कि तुम जो चीज़ चाहते हो महान ईश्वर शीघ्र ही तुम्हें दे देगा या जो चीज़ तुम मांग रहे हो उससे अधिक तुम्हें परलोक में देगा या तुमसे उस बला को दूर कर रहा है कि अगर वह बला तुम तक पहुंच जाती तो तुम्हें खत्म कर देगी।

इसी प्रकार एक अन्य स्थान पर इमाम जाफर सादिक़ फरमाते हैं कोई बंदा महान ईश्वर की ओर हाथ नहीं फैलाता मगर यह कि वह इस बात से शर्म करता है कि अपने बंदे की दुआ को रद्द कर दे यहां तक कि उसे अपनी दया व कृपा से उसे वह चीज़ प्रदान कर देता है जिसकी वह मांग कर रहा है।