विशेष

रात जैसे कुँवारी आई थी, वैसे ही पवित्र कुँवारी गुज़र गई

स्वामी देव कामुक
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शिप्रा का रिजर्वेशन जिस बोगी में था,
उसमें लगभग सभी लड़के ही थे ।
टॉयलेट जाने के बहाने शिप्रा पूरी बोगी घूम आई थी, मुश्किल से दो या तीन औरतें होंगी । मन अनजाने भय से काँप सा गया ।
पहली बार अकेली सफर कर रही थी, इसलिये पहले से ही घबराई हुई थी। अतः खुद को सहज रखने के लिए चुपचाप अपनी सीट पर मैगज़ीन निकाल कर पढ़ने लगी ।
नवयुवकों का झुंड जो शायद किसी कैम्प जा रहे थे, के हँसी – मजाक , चुटकुले उसके हिम्मत को और भी तोड़ रहे थे ।
शिप्रा के भय और घबराहट के बीच अनचाही सी रात धीरे – धीरे उतरने लगी ।
सहसा सामने के सीट पर बैठे लड़के ने कहा —
” हेलो , मैं साकेत और आप ? “
भय से पीली पड़ चुकी शिप्रा ने कहा –” जी मैं ………”
“कोई बात नहीं , नाम मत बताइये । वैसे कहाँ जा रहीं हैं आप ?”\


शिप्रा ने धीरे से कहा–“इलाहबाद”
“क्या इलाहाबाद… ?
वो तो मेरा नानी -घर है। इस रिश्ते से तो आप मेरी बहन लगीं ।” खुश होते हुए साकेत ने कहा ।और फिर इलाहाबाद की अनगिनत बातें बताता रहा कि उसके नाना जी काफी नामी व्यक्ति हैं , उसके दोनों मामा सेना के उच्च अधिकारी हैं और ढेरों नई – पुरानी बातें ।
शिप्रा भी धीरे – धीरे सामान्य हो उसके बातों में रूचि लेती रही । शिप्रा रात भर साकेत का हाथ पकड़ के सोती रही
रात जैसे कुँवारी आई थी, वैसे ही पवित्र कुँवारी गुजर गई ।
सुबह शिप्रा ने कहा – ” लीजिये मेरा पता रख लीजिए, कभी नानी घर आइये तो जरुर मिलने आइयेगा ।
” कौन सा नानीघर बहन ? वो तो मैंने आपको डरते देखा तो झूठ – मूठ के रिश्ते गढ़ता रहा । मैं तो पहले कभी इलाहाबाद आया ही नहीं ।”
“क्या….. ?” — चौंक उठी शिप्रा ।
“बहन ऐसा नहीं है कि सभी लड़के बुरे ही होते हैं, कि किसी अकेली लड़की को देखा नहीं कि उस पर गिद्ध की तरह टूट पड़ें । हम में ही तो पिता और भाई भी होते हैं ।”


कह कर प्यार से उसके सर पर हाथ रख मुस्कुरा उठा साकेत ।
शिप्रा साकेत को देखती रही जैसे कि कोई अपना भाई उससे विदा ले रहा हो शिप्रा की आँखें गीली हो चुकी थी
काश इस संसार मे सब ऐसे हो जाये
न कोई अत्याचार ,न व्यभिचार ,भय मुक्त समाज का स्वरूप हमारा देश,हमारा प्रदेश, हमारा शहर,हमारा गांव
जहाँ सभी बहन ,बेटियों,खुली हवा में सांस ले सकें
निर्भय होकर कहीं भी कभी भी आ जा सके जहाँ हर कोई एक दूसरे का मददगार हो 🤔
🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏 🙏
तुम्हारा स्वामी देव


स्वामी देव कामुक
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अहोभाव
प्रेम कोई गुण नहीं है।
प्रेम एक आवश्यकता है;
रोटी और पानी से भी बडी,
प्रकाश और हवा से भी बडी।
कोई भी अपने प्रेम करने का अभिमान न करे।
प्रेम को उसी सरलता तथा स्वतन्त्रता के
साथ स्वीकार करो जिस सरलता तथा
स्वतन्त्रता से तुम साँस लेते हो।
क्योंकि
‘प्रेम को उन्नत होने के लिये किसी की आवश्यकता नहीं।
प्रेम तो उस हृदय को उन्नत कर देगा
जिसे वह अपने योग्य समझता है।
प्रेम के बदले कोई पुरस्कार मत माँगो।
प्रेम ही प्रेम का पर्याप्त पुरस्कार है,
जैसे घृणा का पर्याप्त पुरस्कार दण्ड है।
(साभार ओशो )
तुम्हारा स्वामी देव

स्वामी देव कामुक
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♥️❤️❤️🌿❤️❤️
40+ उम्र की स्त्रियों के यौवन पर
पुरुष अक़्सर लिख तो देते हैं
कि इस उम्र की स्त्रियों को चाहिए क्या ! .. .
पर कभी पूछा नहीं होगा की सत्य में क्या चाहिए. ..
दरअसल 40+ उम्र की स्त्रियों को
प्रेम चाहिए होता है. .
हवस या हवसी नहीं. ..
लेकिन कुछ पुरुषों को छोड़ अधिकाौश पुरुष
को लगता है
की स्त्रियाँ बस शरीर की लोभ में रहती. .. !!
खैर पुरुष कभी जान भी नहीं पायेंगे. .
सिवाय आँकलन करने के !!
जिस पुरुष ने स्त्री को आत्मिक गहराई तक समझ लिया,
वही पुरुष इस सँसार में पुरुषत्व रखता है…
शायद इसलिए ही कहा गया है कि
स्त्रियों में सारी कलाएँ विराजित हैं
जिस से पुरुष कभी जीत नहीं पायेंगे. !!
❤️❤️❤️🌿❤️❤️❤️
तुम्हारा स्वामी देव

स्वामी देव कामुक
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जगत जननी तुझे सादर प्रणाम..🙏
एक ऐसा शरीर
इसलिए सेहत भी अच्छी होनी चाहिए
एक ऐसी स्त्री का गर्भाशय
जिसको बाकायदा हर महीने समयानुसार
माहवारी (Period) आती हो
जी हाँ
वही माहवारी जिसको सभी स्त्रियाँ
हर महीने बर्दाश्त करती हैं
बर्दाश्त इसलिए क्योंकि
महावारी (Period) उनका Choice नहीं है
यह कुदरत के द्वारा दिया गया एक नियम है
वही महावारी जिसमें शरीर पूरा अकड़ जाता है
कमर लगता है टूट गयी हो
पैरों की पिण्डलियाँ फटने लगती हैं
लगता है पेड़ू में किसी ने पत्थर ठूँस दिये हों
दर्द की हिलोरें सिहरन पैदा करती हैं
ऊपर से लोगों की घटिया मानसिकता की वजह से
इसको छुपा छुपा के रखना अपने आप में
किसी जँग से कम नहीं
बच्चे को जन्म देते समय
असहनीय दर्द को बर्दाश्त करने के लिए
मानसिक और शारीरिक दोनो रूप से तैयार हों
बीस हड्डियाँ एक साथ टूटने जैसा दर्द
सहन करने की क्षमता से परिपूर्ण हों।
गर्भधारण करने के बाद शुरू के 3 से 4 महीने
जबरदस्त शारीरिक और हार्मोनल बदलाव के चलते
उल्टियाँ, थकान, अवसाद के लिए
मानसिक रूप से तैयार हों


5वें से 9वें महीने तक अपने बढ़े हुए पेट और
शरीर के साथ सभी काम यथावत करने की शक्ति हो
गर्भधारण के बाद कुछ
विशेष परिस्थितियों में तरह तरह के
हर दूसरे तीसरे दिन इंजेक्शन लगवानें की
हिम्मत रखती हों
जो कभी एक इंजेक्शन लगने पर भी
घर को अपने सिर पर उठा लेती थी
प्रसव पीड़ा को दो-चार, छः घंटे के अलावा
दो दिन, तीन दिन तक बर्दाश्त कर सकने की क्षमता हो और अगर फिर भी बच्चे का आगमन ना हो तो
गर्भ को चीर कर बच्चे को बाहर निकलवाने की
हिम्मत रखती हों
अपने खूबसूरत शरीर में Stretch Marks और
Operation का निशान ताउम्र अपने साथ ढोने को तैयार हों
कभी कभी प्रसव के बाद दूध कम उतरने या ना उतरने की दशा में तरह-तरह के काढ़े और दवाई पीने का साहस रखती हों
जो अपनी नीन्द को दाँव पर लगा कर
दिन और रात में कोई फर्क ना करती हो
3 साल तक सिर्फ बच्चे के लिए ही जीने की शर्त पर गर्भधारण के लिए राजी होती हैं
एक गर्भ में आने के बाद
एक स्त्री की यही मनोदशा होती है
जिसे एक पुरुष शायद ही कभी समझ पाये
औरत तो स्वयं अपने आप में एक शक्ति है
बलिदान है
इतना कुछ सहन करतें हुए भी वह
तुम्हारें अच्छे-बुरे, पसन्द-नापसन्द का ख्याल रखती है
अरे जो पूजा करनें योग्य है जो पूजनीय है
उसे हम बस अपनी उपभोग समझते हैं

डिस्क्लेमर : लेखक के निजी विचार हैं, तीसरी जंग हिंदी का कोई सरोकार नहीं है