साहित्य

रीना तिवारी की दो रचनायें, ”उलझन” और ”आंसू” पढ़िये!

Rina Tiwari ·
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शीर्षक -उलझन
भ्रमित मन में ही,
अपना घर बना लेती है उलझने!
मन के तम में भटके ,
शब्दों का वृहत आयाम ले लेती है उलझने!
सोचती हूं
,
शायद अब उलझने अपना विराम ले लेंगी !
उलझते मेरे सवालों का,
एक नियमित आधार लें लेगी !
शायद,
मन में उठते फिरते मेरे
सवालों को कोई अंबर मिल जाए !
मायने बदल जाए
शायद मेरे अपने अक्स को ही शब्द मिल जाए !
पर उलझती सुलझती
जिंदगी अपने ही धुन में गाते जा रही है …
एक नए सृजन की ओर
.,. स्वरचित रीना तिवारी


Rina Tiwari
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शीर्षक -आंसू
ये आंसू भी ना
बड़े कमाल के होते हैं !
नैनों से बहकर,
अपनी हर जज्बात जाहिर कर देते हैं!
कहते हैं लोग आंसू
कमजोरी का एक सबब हैं!
पर मैं कहती हूं आंसू
हर एहसासों का एक सबक है !
असमंजस से गिरी अनसुलझी गुत्थीओं में
एक मार्गदर्शक बनकर आते है !
कोई राह नहीं अंधेरा हो चारों तरफ ,
यह तिमिर में लौ ले आते है !
गिरते अश्कों को रोक लो कभी ,
यह और गहरा घाव दे जाते हैं!
बहने दो कुछ देर निरंतर ,
देखो कितनी संबल दे जाते हैं!
कहा जाता हैं
अनमोल मोती है ये आंसू
गर गिर जाते भी है तो
दिल की हर मैल भी धो देते हैं ये आसूं !
चंचल उन्मादित हलचल होते है ये आंसू ,
कभी निष्ठुर गहरी टीस भी बन जाते है ये आंसू !
निर्मलता एवं शीतलता को उजागर कर
हर मोड़ को सुलभ कर देते है आसूं !
कभी-कभी तो सहनशीलता एवं शून्यता से भी
परिचय कराते है ये आंसू !
गिरकर हर सवाल कर
जवाब बन जाते है आंसू !
ये आंसू बड़े बेमिसाल होते हैं,
यह तो हर दर्द का दवा बन जातेहै !
स्वरचित- रीना तिवारी
2-12 -2022