रेचप तैयप एर्दोवान फिर से राष्ट्रपति बनने के लिए चुनाव मैदान में हैं. इस बार उनकी जीत की राह में कई मुश्किलें हैं. हालांकि, अगर सिर्फ जर्मनी में रहने वाले तुर्कों के वोट से फैसला हो, तो एर्दोवान आसानी से जीत जाएंगे.
तुर्की में रहने वाले तुर्क लोग तो नए राष्ट्रपति और संसद के लिए अगले आम चुनाव में सिर्फ 14 मई को ही वोट डाल सकेंगे, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों में रहने वाले तुर्कों ने यह काम गुरुवार, 27 अप्रैल को ही शुरू कर दिया. इन देशों में जर्मनी भी है, जहां आप्रवासी तुर्कों का सबसे बड़ा समुदाय रहता है.
जर्मनी में प्रवासन और शरणार्थी विभाग के संघीय कार्यालय (बीएएमएफ) की पांच साल पहले की प्रवासन रिपोर्ट के मुताबिक यहां तुर्क मूल के 28 लाख लोग रहते हैं. इनमें से करीब आधे लोगों के पास तुर्क नागरिकता है.
27 अप्रैल से 9 मई के बीच जर्मनी में रहने वाले तुर्क लोग तुर्की के 14 दफ्तरों और वाणिज्य दूतावासों में वोट दे सकते हैं. चुनाव का नतीजा तो मई में पता चलेगा, लेकिन ऐसे कयास लग रहे हैं कि राष्ट्रपति रेचप तैयप एर्दोवान चुनाव हार सकते हैं. उनके प्रतिद्वंद्वी सोशल डेमोक्रैट केमाल कुरुचदारो और केमालिस्ट रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी का राजनीतिक और सामाजिक समर्थन काफी बढ़ गया है.